नशे से मुक्ति दिला रही नशे की डोज
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विजय गाहल्याण, पानीपत
नशेड़ियों का नशा छुड़ाने और उनको फिर से मुख्य धारा में लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग नशे का सहारा ले रहा है। सामान्य अस्पताल में खुले अफीम मुक्त केंद्र में 90 नशेड़ियों के नशे पर हर रोज करीब 18 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। यानि एक मरीज के इलाज पर औसतन 200 खर्च होते हैं। इन मरीजों को बूफ्रीनारसीन टेबलेट दी जाती है। इसकी कीमत 45 रुपये है। एक मरीज को तीन से लेकर 13 तक टेबलेट खिला दी जाती हैं। एक साल में अभी तक नशे की गिरफ्त में आ चुके 235 मरीजों की दवा पर करीब 65 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं।
एक साल तक चलता इलाज
नशा छुड़ाने के लिए मरीज का अफीम मुक्ति केंद्र में एक साल तक इलाज चलता है। हर रोज मरीज को दवा खानी पड़ती है। शुरुआत में मरीज को नशे की तलब मिटाने के लिए 13 टेबलेट खानी पड़ती हैं। धीरे-धीरे यह डोज कम कर दी जाती हैं।
ऐसे असर करती टेबलेट
इलाज के शुरुआत में मरीज को दो मिलीग्राम बूफ्रीनारसीन टेबलेट दी जाती है। इससे मरीज की नशे की तलब भी मिटती है और लत भी कम हो जाती है। तब मरीज को डोज घटाकर प्वांइट दो मिलीग्राम कर दी जाती है।
इलाज के साथ-साथ मनोरंजन नशेड़ियों के इलाज के साथ-साथ उनका अफीम मुक्ति केंद्र में मनोरंजन भी कराया जाता है। यहां पर टीवी देखने की व्यवस्था है। अगर इसे भी मन ऊब जाता है तो मरीज कैरम बोर्ड पर रानी को भी नचाकर खुश हो सकता है।
रोका जा सकता अपराध : डॉ. मोना
अफीम मुक्ति केंद्र की प्रभारी और मनोरोग विंशेषज्ञ डॉ. मोना नागपाल का कहना है कि स्मैक, अफीम और शराब की लत लगने पर व्यक्ति का मानसिक संतुलन भी ठीक नहीं रहता है। उसे नशे की लत को पूरा करने पैसे की जरूरत होती है। इसलिए वह चोरी, छीनाझपटी व अन्य आपराधिक वारदात करता है। नशे की गिरफ्त आ चुके लोगों का इलाज किया जाए तो अपराध को कम किया जा सकता है। इसलिए अफीम मुक्ति केंद्र में मरीज को हर रोज करीब 200 रुपये की टेबलेट दी जाती हैं। इससे मरीज की नशे की भरपाई भी हो जाती है और धीरे-धीरे नशे से छुटकारा भी दिलाया जाता है।
35 लोगों ने नशे को किया बाय-बाय
अफीम मुक्ति केंद्र के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो 235 में से 35 लोगों ने नशे को बाय-बाय कर दिया है। ये वे लोग हैं जो दस-बीस साल से नशा कर रहे थे। इससे उनका व उनके परिवार का जीना मुहाल हो चुका था। बाकी के मरीजों का भी इलाज चल रहा है।
केस-1
दर्द मिटाने के लिए लगवाया था इंजेक्शन
किला क्षेत्र निवासी 50 वर्षीय धनपत (परिवर्तित नाम) 20 साल पहले दूध बेचने का काम करता था। तब उसके पेट में दर्द हो गया। दर्द से राहत नहीं मिली तो झोलाझाप डॉक्टर ने उसको नशे का इंजेक्शन लगा दिया। तभी से उसे नशे के इंजेक्शन लगाने की लत पड़ गई। इससे उसका धंधा ठप हो गया और परिजनों को भी दिक्कत हुई। अब धनपत ने नशे को छोड़कर सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया है। इससे वह और उसका परिवार खुश है।
केस-2
मजाक में पिला दी स्मैक, नशे से हो गई दोस्ती
तहसील कैंप का 28 वर्षीय विनय(परिवर्तित नाम) ट्रक चलाता था। दस साल पहले दोस्त ने मजाक में स्मैक पिला दी। इसके बाद उसने नशे से दोस्ती कर ली और वह छूट नहीं पाई। अफीम मुक्ति केंद्र में इलाज हुआ को उसने नशे को छोड़ दिया।

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