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    क्या IPS पूरन आत्महत्या मामले की होगी CBI जांच? सुनवाई के दौरान मांग पर क्या बोले हाईकोर्ट

    Updated: Fri, 31 Oct 2025 06:25 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने आईपीएस वाई पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में दर्ज एफआईआर पर सवाल उठाए हैं। अदालत ने पूछा है कि क्या इस मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप बनता है? कोर्ट ने याचिकाकर्ता से ऐसे आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उदाहरण मांगा है। 

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    क्या IPS पूरन आत्महत्या मामले की होगी CBI जांच?

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या से जुड़े मामले में दर्ज एफआईआर में आत्महत्या के लिए उकसाने (धारा 306 आईपीसी) का आरोप बनता है या नहीं, इस पर शुक्रवार को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने सवाल उठाया है। चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी की खंडपीठ इस मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीबीआई जांच की मांग की गई है।

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    यह जांच वर्तमान में चंडीगढ़ पुलिस की विशेष जांच टीम द्वारा की जा रही है। याचिका नवनीत कुमार द्वारा दाखिल की गई है। सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि इतने प्रकार के आरोपों पर क्या धारा 306 लगाई जा सकती है?

    हमें कोई सुप्रीम कोर्ट का ऐसा फैसला बताइए, जिसमें ऐसे आरोपों के आधार पर सजा हुई हो। चीफ जस्टिस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि सिर्फ गाली देने या थप्पड़ मारने तक की बात हो, तब भी 306 का मामला नहीं बनता।

    याची के वकील ने कोर्ट को बताया कि आईपीएस पूरन कुमार ने सात अक्टूबर को अपने चंडीगढ़ स्थित आवास पर खुद को गोली मार ली थी। सुसाइड नोट में उन्होंने हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर और उस समय के रोहतक के एसपी नरेंद्र बिजारणिया सहित कई अधिकारियों पर जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

    वाई पूरन कुमार की पत्नी आइएएस अधिकारी अमनीत पी कुमार लगातार न्याय की मांग कर रही हैं। इस बीच एक अन्य पुलिस अधिकारी संदीप लाठर, जिन्होंने वाई पूरन कुमार के एक सहयोगी को गिरफ्तार किया था, आत्महत्या कर ली थी।

    उन्होंने अपने सुसाइड नोट में वाई पूरन कुमार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और उन्हें व उनके परिवार को जिम्मेदार ठहराया था। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच सीबीआइ को सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि अगर वरिष्ठ अधिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं, तो आम व्यक्ति कैसे सुरक्षित रहेगा।

    हालांकि, चीफ जस्टिस ने कहा चूंकि जांच चंडीगढ़ पुलिस कर रही है, इसलिए निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठता। अगर जांच हरियाणा पुलिस करती, तो बात अलग होती। याची के वकील ने यह भी बताया कि लाठर की आत्महत्या की जांच हरियाणा पुलिस कर रही है, जिससे दो अलग-अलग एजेंसियां दो मौतों की जांच कर रही हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि जांच में कोई गड़बड़ी या पक्षपात है तो उसका ठोस सबूत पेश किया जाए।

    पीठ ने टिप्पणी की कि सीबीआइ पहले से ही बहुत व्यस्त है, इसलिए जांच स्थानांतरण का आदेश हल्के में नहीं दिया जा सकता। आपको जांच में किसी गड़बड़ी या त्रुटि का उदाहरण देना होगा। चंडीगढ़ पुलिस की ओर से पेश वकील ने बताया कि तीन आइपीएस अधिकारी जांच टीम में शामिल हैं और इस समय सीबीआइ जांच की कोई आवश्यकता नहीं है।

    साथ ही अदालत को यह भी बताया गया कि न तो वाई पूरन कुमार की पत्नी और न ही कोई “पीड़ित” पक्ष के रूप में याचिकाकर्ता हैं। हरियाणा सरकार की ओर से भी याचिका का विरोध किया गया और कहा गया कि यह व्यक्ति पंजाब का निवासी है, मामला चंडीगढ़ का है और इसमें हरियाणा की कोई सीधी भूमिका नहीं है। सुनवाई के अंत में अदालत ने याचिकाकर्ता को अपना पक्ष तैयार करने के लिए कुछ समय देते हुए मामले की अगली सुनवाई टाल दी।