हरियाणा में धान के पौधों में बौनेपना का खतरा, मुद्दा इतना गंभीर कि विधानसभा तक पहुंच गया
हरियाणा के कैथल अंबाला समेत सात जिलों में धान की फसल में बौनेपन की बीमारी बढ़ रही है। कृषि मंत्री ने प्रभावित पौधों को उखाड़ फेंकने की सलाह दी है। 40 लाख एकड़ भूमि में से 92 हजार एकड़ फसल प्रभावित है। तीन विधायकों ने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के सात जिलों कैथल, अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, जींद और पंचकूला में धान की फसल में बौनेपन की बीमारी बढ़ रही है। प्रदेश में 40 लाख एकड़ में धान की फसल लगाई गई है जिसमें से 92 हजार एकड़ फसल काली धारीदार बौना विषाणु (वायरस) से प्रभावित है। कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने किसानों को प्रभावित धान के पौधों को उखाड़ फेंकने की सलाह दी है ताकि बीमारी अधिक न फैले।
कैथल के कांग्रेस विधायक आदित्य सुरजेवाला और इनेलो विधायक अर्जुन चौटाला तथा आदित्य देवीलाल ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से यह मामला उठाया। सुरजेवाला ने कहा कि पीआर किस्मों विशेषकर पीआर-114 और पीआर-1509 की फसल पर बीमारी का खतरा ज्यादा है। यह वायरस धान की उपज में 80 प्रतिशत तक कमी ला सकता है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 में भी राज्य में इस बीमारी का प्रकोप हुआ था, लेकिन इससे निपटने के लिए न कोई सरकारी अनुसंधान हुआ और न ही त्वरित प्रतिक्रिया दल का गठन किया गया। वहीं, अर्जुन चौटाला और आदित्य देवीलाल ने कहा कि जिन किसानों की फसल प्रभावित है, उन्हें जल्द मुआवजा दिया जाए।
इस पर स्थिति स्पष्ट करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि वर्ष 2022 में कुछ ही मामले सामने आए थे, लेकिन समय पर की गई कार्रवाई और चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (हिसार) तथा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा चलाई गई जागरूकता मुहिम से बड़े नुकसान को रोक लिया गया।
खरीफ 2023 और 2024 में प्रभावी रोकथाम और किसानों में जागरूकता के कारण रोग का कोई प्रकोप नहीं हुआ। हालांकि इस साल यह रोग फिर उभर आया है। सबसे पहले कैथल जिले में फसल प्रभावित होने के मामले सामने आए और फिर अंबाला, यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, करनाल, जींद और पंचकूला जिलों से भी किसानों ने पौधों के असामान्य रूप से बौने होने की शिकायत की।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सर्वे रिपोर्ट के अनुसार यह रोग सबसे अधिक हाइब्रिड धान की किस्मों में पाया गया और उसके बाद परवल (गैर-बासमती) और फिर बासमती धान की किस्मों में। यह समस्या मुख्यतः उन खेतों में अधिक देखी गई, जहां किसान 25 जून से पहले धान की रोपाई कर चुके थे।
किसानों को अनुशंसित कीटनाशकों का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। प्रभावित जिलों में 656 एकड़ में धान का पुनः रोपण किया गया है। प्रभावित खेतों में अनुमानित फसल क्षति अपेक्षाकृत कम रही है जो लगभग पांच से 10 प्रतिशत तक है। अंबाला में 6350 एकड़ धान की फसल वायरस से प्रभावित हुई है। राहत की बात यह कि जैविक खेती और धन की सीधी बिजाई में इस वायरस से नुकसान की कोई सूचना नहीं है।
यह उपाय करें किसान
किसानों को फसलों की लगातार निगरानी और कीटनाशकों का छिड़काव करने की सलाह दी गई है। डाइनाइट्रोफ्यूरान 20 प्रतिशत एसजी (ओशीन या टोकन)
आवश्यकता पड़ने पर दोबारा भी छिड़काव किया जा सकता है। खेतों में जलस्तर कम रखें। यूरिया का संतुलित उपयोग करें और प्रकाश फंदे (लाइट ट्रैप) लगाएं। इसके अतिरिक्त खेतों में पाए जाने वाले बौने पौधों को उखाड़कर नष्ट किया जाए ताकि आगे नुकसान न हो।
25 प्रतिशत अधिक नुकसान पर ही मिलेगा मुआवजा
नियमों के अनुसार किसानों को इनपुट सब्सिडी दी जाती है जिसकी सीमा प्रति किसान पांच एकड़ तक है। साथ ही गेहूं, धान या गन्ना जैसी फसलों में बाढ़, जलभराव, आग, भारी वर्षा, ओलावृष्टि, कीट प्रकोप या धूलभरी आंधी जैसी घटनाओं के कारण हानि 25 प्रतिशत या उससे अधिक होनी आवश्यक होती है। चूंकि धान में बौनेपन की बीमारी से हानि पांच से 10 प्रतिशत के बीच दर्ज की गई है, इसलिए किसानों को मुआवजा नहीं मिल पाएगा।
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