12 साल बाद भी नहीं खुला पंचकूला की गीतांजलि की मौत का रहस्य, CJM पति समेत तीनों आरोपी बरी
पंचकूला की गीतांजलि की मौत का रहस्य 12 साल बाद भी अनसुलझा है। इस मामले में गीतांजलि के सीजेएम पति समेत तीनों आरोपियों को बरी कर दिया गया है। अदालत के ...और पढ़ें

12 साल बाद भी गीतांजलि हत्याकांड अनसुलझा, तीनों आरोपी बरी।
जागरण संवाददाता, पंचकूला। सेक्टर-8 पंचकूला की गीतांजलि की मौत के मामले में करीब 12 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया। पंचकूला की सीबीआई विशेष अदालत ने गीतांजलि के पति तत्कालीन सीजेएम रवनीत गर्ग, उनके पिता सेवानिवृत्त सेशन जज कृष्ण कुमार गर्ग और मां रचना गर्ग को सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि जांच एजेंसी गीतांजलि की हत्या या दहेज हत्या को साबित करने में पूरी तरह असफल रही है।
सीबीआई कोर्ट के जज राजीव गोयल ने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर सका कि गीतांजलि की मौत हत्या थी या दहेज के लिए की गई हत्या। ऐसे में संदेह का लाभ देते हुए तीनों आरोपितों को बरी किया जाता है। अदालत के फैसले के साथ ही यह मामला कानूनी रूप से समाप्त हो गया, हालांकि गीतांजलि की मौत हत्या थी या आत्महत्या, यह सवाल अब भी अनसुलझा है।
17 जुलाई 2013 की घटना
रवनीत गर्ग ने अदालत में बताया कि 17 जुलाई 2013 को वह ड्यूटी पर थे और शाम करीब छह बजे घर लौटे। घर पहुंचने पर उनकी पत्नी गीतांजलि घर पर नहीं थीं। परिवार के सदस्यों से पूछताछ के बाद उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पत्नी के लापता होने की सूचना दी।
कुछ समय बाद सूचना मिली कि गुरुग्राम के पुलिस ग्राउंड में एक महिला का शव पड़ा हुआ है। वहां पहुंचने पर शव की पहचान गीतांजलि के रूप में हुई। रवनीत गर्ग का कहना था कि उन्होंने इसे हत्या का मामला बताते हुए पुलिस को बयान दिया, जिसे सीबीआई ने जांच के दौरान नजरअंदाज किया।
बाद में मामला सीबीआई को सौंपा गया। रवनीत गर्ग के अनुसार, सीबीआई ने शुरू में हत्या के एंगल से जांच की और डॉक्टर की राय भी हत्या की ओर इशारा कर रही थी, लेकिन बाद में जांच की दिशा बदल दी गई। चार्जशीट दाखिल करते समय हत्या की धाराओं में बदलाव कर दहेज हत्या की धारा 304-बी जोड़ी गई और पति व माता-पिता को आरोपी बनाया गया। रवनीत गर्ग को इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया था।
ट्रायल में सामने आए तथ्य
अदालत में सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि घटना वाले दिन गीतांजलि ने अपने माता-पिता, भाई, भाभी और अन्य परिजनों से बातचीत की थी। सभी बातचीत सामान्य पाई गई और किसी प्रकार की प्रताड़ना या दहेज मांग की कोई शिकायत सामने नहीं आई। अभियोजन पक्ष दहेज मांग या क्रूरता से जुड़ा कोई भी आरोप प्रमाणित नहीं कर सका।
अदालत ने माना कि न तो दहेज मांग साबित हुई और न ही यह सिद्ध हो पाया कि गीतांजलि की मौत के लिए पति या ससुराल पक्ष जिम्मेदार था। इसी आधार पर तीनों आरोपियों को सभी धाराओं से बरी कर दिया गया।
रहस्य अब भी बरकरार
अदालत के फैसले के बाद यह मामला कानूनी रूप से समाप्त हो गया है, लेकिन 12 साल लंबी जांच और सुनवाई के बावजूद गीतांजलि की मौत का असली कारण और जिम्मेदार व्यक्ति सामने नहीं आ सका। हत्या या आत्महत्या? यह सवाल आज भी जवाब की प्रतीक्षा में है।

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