शिक्षक बेटे की मृत्यु के 14 साल बाद मां को मिलेगी पेंशन, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार को 2011 में सेवा के दौरान निधन हुए एक संस्कृत शिक्षक की माता को अनुकंपा सहायता नियम 2006 के तहत लाभ जारी कर ...और पढ़ें

शिक्षक बेटे की मृत्यु के 14 साल बाद मां को पेंशन देने का हाई कोर्ट का आदेश
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। सरकारी कर्मचारियों की मृत्यु के बाद उनके परिवारों को दी जाने वाली अनुकंपा वित्तीय सहायता पर एक महत्वपूर्ण फैसले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 2011 में सेवा के दौरान निधन हुए एक संस्कृत शिक्षक की माता की अपील को स्वीकार कर लिया है और हरियाणा को मृतक सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा सहायता नियम 2006 के तहत लाभ जारी करने का निर्देश दिया है।
जस्टिस पंकज जैन ने फैसला सुनाते हुए अदालत और अपीलीय अदालत के उन फैसलों को पलट दिया, जिनमें तथ्यों को छिपाने और निर्भरता की कमी के आधार पर कलावती के मुकदमे को खारिज कर दिया गया था। कलावती के पुत्र हरि हर मोहन कुरुक्षेत्र के सरकारी विद्यालय में संस्कृत शिक्षक थे।
वह अविवाहित थे और उनका वेतन 38 हजार 570 रुपये था। उनका 11 अक्टूबर 2011 को निधन हो गया। कलावती ने दावा किया कि वह पूरी तरह से उन पर आश्रित थीं और उन्होंने उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि तक उनके अंतिम वेतन के बराबर वित्तीय सहायता और उसके बाद पारिवारिक पेंशन की मांग की।
हरियाणा सरकार ने इस दावे का खंडन करते हुए बताया कि कलावती के पति सत नारायण शास्त्री, जो एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी थे, उनको 15,475 रुपए की मासिक पेंशन मिल रही थी और उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद कलावती को पारिवारिक पेंशन के लिए नामांकित किया था।
अदालतों ने माना कि इससे कलावती अपात्र हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें अपने दिवंगत बेटे पर पूर्ण आश्रित नहीं माना जा सकता। साथ ही, अदालतों ने कलावती की इस बात के लिए भी आलोचना की कि उन्होंने अपने पति की पेेंशन का खुलासा याचिका में नहीं किया।
हालांकि, जस्टिस जैन ने माना कि निचली अदालतों का दृष्टिकोण गलत था। उन्होंने कहा कि यह सिद्ध हो चुका है कि वादी के पति सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी के रूप में पेंशन प्राप्त कर रहे हैं। केवल इस कारण से कि उन्होंने अपने पति के पेंशन प्राप्त करने के तथ्य का खुलासा नहीं किया, उन्हें अपना दावा रखने से वंचित नहीं किया जा सकता। यह स्वीकार किया जाता है कि उनकी आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है।
माता पिता को स्पष्ट रूप से किया गया है शामिल
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि 2006 के नियमों के तहत पात्रता पारिवारिक पेंशन योजना, 1964 द्वारा निर्धारित की जाती है, जिसमें अविवाहित मृतक कर्मचारी के माता-पिता को परिवार की परिभाषा में स्पष्ट रूप से शामिल किया गया है।
जस्टिस जैन ने पूर्व के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पति पूर्व सैनिक हैं जिन्हें नाममात्र की पैंशन प्राप्त होती है। उनकी पत्नी को सामान्य पारिवारिक पैंशन के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ता/माता की आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है और उनकी पैंशन की मांग को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए पूर्ववर्ती निर्णयों को रद्द कर दिया और हरियाणा सरकार को बकाया राशि का भुगतान 6 प्रतिशत ब्याज सहित करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने कहा कि यदि भुगतान निर्णय की तिथि से तीन महीने से अधिक विलंबित होता है, तो ब्याज दर बढक़र 9 प्रतिशत प्रति वर्ष हो जाएगी।

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