हरियाणा में विधवा को पेंशन मामले में हाईकोर्ट ने बिजली विभाग को लगाई फटकार, अब ब्याज सहित देने होंगे पैसे
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम की आलोचना करते हुए कहा कि कर्मचारी की दिव्यांगता को अक्षमता कहना असंवेदनशील है। कोर्ट ने विभाग को मृतक कर्मचारी की विधवा को ब्याज सहित पेंशन का पूरा लाभ देने का आदेश दिया। यह मामला 1983 का है जब कर्मचारी ड्यूटी के दौरान घायल हो गया था और उसे अक्षम बताकर सेवा से हटा दिया गया था।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी कर्मचारी की सेवा के दौरान लगी चोट से हुई दिव्यांगता को 'अक्षम्यता' बताना न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि 'बेहद असंवेदनशील' रवैया है। कोर्ट ने विभाग को आदेश दिया कि मृतक कर्मचारी की विधवा को पेंशन का पूरा लाभ ब्याज सहित दिया जाए।
मामला वर्ष 1983 का है, जब याचिकाकर्ता के पति, जो उस समय बिजली निगम में कार्यरत थे ड्यूटी के दौरान करंट लगने से गंभीर रूप से घायल हुए और 90 प्रतिशत दिव्यांग हो गए। उसी वर्ष उनकी सेवाएं यह कहते हुए समाप्त कर दी गईं कि वे 'अक्षम' हो गए हैं।
इसके साथ ही उन्हें कोई पेंशन भी नहीं दी गई। वर्षों बाद पत्नी ने 'इनवैलिड पेंशन' की मांग की, जिसके बाद 2014 में परिवारिक पेंशन स्वीकृत की गई। लेकिन 2018 में विभाग ने अचानक यह लाभ बंद कर दिया।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने सुनवाई के दौरान कहा कि दिव्यांगता को अक्षम्यता मानना न केवल अवैध है बल्कि अत्यंत निंदनीय भी है। विभाग का यह दृष्टिकोण बेहद असंवेदनशील है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विभाग का 'अत्यधिक तकनीकी और कठोर रवैया' न्याय और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
हाईकोर्ट ने विभाग को आड़े हाथों लेते हुए टिप्पणी की कि जब 1997 की बाढ़ में शाहबाद स्थित दफ्तर के आधिकारिक रिकॉर्ड नष्ट हो चुके हैं, तो लगभग 40 साल पुराने दस्तावेज विधवा से मांगना हास्यास्पद और अनुचित है। कोर्ट ने कहा कि विभाग, जो सेवा रिकार्ड का एकमात्र संरक्षक है, यदि स्वयं दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है, तो विधवा या उसके दिवंगत पति से प्रमाण की अपेक्षा करना अन्यायपूर्ण है।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि एक बार सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश को उसका उत्तराधिकारी मनमाने ढंग से रद या संशोधित नहीं कर सकता। केवल उन्हीं मामलों में ऐसा किया जा सकता है जब आदेश बिना अधिकार पारित हुआ हो, नियमों के खिलाफ हो या धोखाधड़ी से प्राप्त किया गया हो।
अंत में कोर्ट ने विभाग को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को उनके पति की सेवा से जुड़े सभी पेंशन लाभ और पारिवारिक पेंशन तुरंत बहाल की जाए। साथ ही, 2018 से अब तक रोकी गई राशि का भुगतान 7.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित किया जाए।
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