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    अंतरराष्ट्रीय कराटे खिलाड़ी अनमोल सिंह की याचिका पर हाईकोर्ट सख्त, नौकरी से वंचित करने पर हरियाणा सरकार को भेजा नोटिस

    Updated: Wed, 17 Dec 2025 10:19 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय कराटे खिलाड़ी अनमोल सिंह की याचिका पर हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया। अदालत ने माना कि अनमोल को हरियाणा ...और पढ़ें

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    अंतरराष्ट्रीय कराटे खिलाड़ी अनमोल सिंह की याचिका पर हाईकोर्ट सख्त, हरियाणा सरकार से जवाब तलब।

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर चुके कराटे खिलाड़ी अनमोल सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया है। अदालत ने प्रथम दृष्टया माना है कि याचिका में ऐसे गंभीर और विचारणीय प्रश्न उठाए गए हैं, जिन पर न्यायिक परीक्षण आवश्यक है। यह मामला हरियाणा आउटस्टैंडिंग स्पोर्ट्सपर्सन्स (भर्ती एवं सेवा शर्तें) नियम, 2018 के तहत नौकरी से वंचित किए जाने से जुड़ा है।

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    जस्टिस संदीप मौदगिल की एकल पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता अनमोल सिंह ने बताया कि वह कराटे विधा के अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ी हैं और वर्ष 2015 में आयोजित 8वीं कॉमनवेल्थ कराटे चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस प्रतियोगिता में उन्होंने टीम स्पर्धा में स्वर्ण पदक और व्यक्तिगत वर्ग में रजत पदक हासिल किया था। याचिका में यह भी रेखांकित किया गया कि इन उपलब्धियों को स्वयं हरियाणा सरकार ने मान्यता दी थी और इसके तहत न केवल नकद पुरस्कार प्रदान किया गया, बल्कि ‘ए-ग्रेड स्पोर्ट्स ग्रेडेशन सर्टिफिकेट’ भी जारी किया गया था।

    इसके बावजूद, अनमोल सिंह की उम्मीदवारी को 26 नवंबर 2018 के एक आदेश के जरिए यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि वह संबंधित नियमों के तहत पात्र नहीं पाए गए। हाईकोर्ट ने इस आदेश को सतही रूप से पढ़ने पर ही यह टिप्पणी की कि अस्वीकृति पत्र में किसी भी प्रकार का कारण दर्ज नहीं है और केवल ‘अयोग्य’ होने का उल्लेख किया गया है। अदालत ने कहा कि जब किसी व्यक्ति के सार्वजनिक रोजगार की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, तब बिना कारण बताए लिया गया ऐसा निर्णय क्या ‘कारणयुक्त निर्णय’ की संवैधानिक कसौटी पर खरा उतरता है, यह एक गंभीर प्रश्न है।

    अदालत के समक्ष यह तथ्य भी आया कि राज्य सरकार ने बाद में एक अन्य जवाब में यह रुख अपनाया कि याचिकाकर्ता ने संबंधित नीति के तहत कभी आवेदन ही नहीं किया। हाईकोर्ट ने राज्य के इन परस्पर विरोधी रुखों को प्रथम दृष्टया ‘प्रक्रियात्मक अव्यवस्था’ करार देते हुए कहा कि यह स्थिति स्वयं में स्पष्टीकरण की मांग करती है।

    न्यायालय ने यह भी स्पष्ट टिप्पणी की कि वर्ष 2018 के नियम कोई प्रशासनिक कृपा नहीं हैं, बल्कि खेल प्रतिभाओं को सम्मान देने और उनकी मेहनत को ठोस सार्वजनिक अवसरों में बदलने की राज्य की प्रतिबद्धता का संरचित रूप हैं। अदालत के अनुसार, इन नियमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अनुशासन, परिश्रम और व्यक्तिगत बलिदान से अर्जित खेल उपलब्धियां केवल प्रतीकात्मक न रह जाएं, बल्कि उन्हें संस्थागत मान्यता भी मिले। ऐसे में यह देखना आवश्यक है कि क्या इन नियमों की भावना को याचिकाकर्ता के मामले में वास्तव में लागू किया गया या नहीं।