हरियाणा में हत्या के 3 आरोपियों को हाईकोर्ट ने किया बरी, आरोपियों ने पुलिस जांच में कबूल की थी वारदात
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में फरीदाबाद कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा पाए तीन आरोपियों को बरी कर दिया है। सबूतों की कमी और मृत शरीर की बरामदगी न होने के कारण कोर्ट ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला प्रस्तुत करने में विफल रहा।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हत्या के मामले में फरीदाबाद कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा पाए तीन आरोपितों को सबूतों की कमी और मृत शरीर की बरामदगी न होने के आधार पर बरी कर दिया। यह फैसला जस्टिस मंजरी नेहरू कौल और जस्टिस एचएस ग्रेवाल की खंडपीठ ने सुनाया।
मामले के अनुसार, तीनों आरोपितों नियाज, इमरान और अन्य ने उत्तराखंड जाने के लिए एक ड्राइवर ग्यान चंद की सेवा ली थी, जो बाद में कार सहित लापता हो गया। हालांकि, कार बाद में बिहार से बरामद हुई, लेकिन ड्राइवर का कोई सुराग नहीं मिला। पुलिस जांच दौरान आरोपितों ने कथित तौर पर यह स्वीकार किया कि उन्होंने ग्यान चंद की हत्या कर उसका शव आगरा नहर में फेंक दिया, परंतु शव की कभी बरामदगी नहीं हो सकी।
कोर्ट ने कहा, 'प्रॉसिक्यूशन की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि मृत शरीर की बरामदगी नहीं हुई। इस स्थिति में मामला केवल मृत्यु की कल्पना पर आधारित है, न कि प्रत्यक्ष सबूतों पर।' एक सिद्धांत की चर्चा करते हुए कोर्ट ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं होता कि अपराध वास्तव में हुआ है, तब तक सजा देना कानूनी रूप से खतरनाक हो सकता है।
कोर्ट के समक्ष यह भी तर्क दिया गया कि घटना का कोई पुष्ट कारण सामने नहीं आया। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपितों और मृतक के बीच कोई दुश्मनी या अन्य कारण था जिससे हत्या की गई हो। 'लास्ट सीन थ्योरी' को लेकर भी कोर्ट ने संदेह जताया। यह सिद्धांत केवल मृतक के भाई दयाचंद की गवाही पर आधारित था, जो एक रुचिकर गवाह माना गया।
उनकी गवाही की पुष्टि किसी स्वतंत्र स्रोत से नहीं की गई। इसके अतिरिक्त, मृतक का पर्स और कलाई घड़ी जो कथित रूप से आरोपियों के बयानों के आधार पर बरामद किए गए थे, वे भी कई महीनों बाद सार्वजनिक स्थलों से मिले, जिससे उनकी प्रामाणिकता पर सवाल उठता है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि कई मुख्य गवाह मुकर गए, उन्होंने पुलिस के समक्ष दिए गए बयानों और अदालत में गवाही के दौरान आरोपियों की पहचान से भी इनकार किया। अंततः कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपितों के खिलाफ संपूर्ण और अविच्छिन्न परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला प्रस्तुत करने में विफल रहा है।
शव की बरामदगी नहीं होना और प्रमाणों की गंभीर कमी, अभियोजन के मामले को कानूनी रूप से अस्थिर बनाते हैं। इस आधार पर, हाईकोर्ट ने तीनों अपीलों को स्वीकार करते हुए आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया।
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