SYL विवाद: अब केंद्र सरकार पर टिकीं हरियाणा की उम्मीदें, पंजाब को मनाना चुनौती; केंद्रीय मंत्री ने संभाला मोर्चा
सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर निर्माण पर हरियाणा की उम्मीदें केंद्र सरकार पर टिकी हैं। केंद्रीय मंत्री सीआर पाटिल की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्री हिस्सा लेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को फटकार लगाई है। हरियाणा सरकार का दावा है कि एसवाईएल के नहीं बनने से प्रदेश को भारी नुकसान हुआ है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू कराने के लिए हरियाणा की पूरी उम्मीदें अब केंद्र सरकार पर टिकी हैं।
केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल की अध्यक्षता में नौ जुलाई को दिल्ली में होने वाली दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक के लिए अधिकारी जी-जान से तैयारी में जुटे है। अतीत को देखते हुए केंद्रीय मंत्री के लिए पंजाब को मना पाना बेहद मुश्किल है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की ओर से अधिकारियों को पूरे दस्तावेज तैयार करने के साथ ही मामले में अब तक हुई सभी बैठकों का ब्योरा तैयार करने का निर्देश दिया गया है, ताकि मजबूती से अपना पक्ष रख सकें।
हालांकि बैठक में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को विभिन्न बिंदुओं पर एकमत कर पाना केंद्रीय मंत्री के लिए परीक्षा से कम नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट केंद्रीय जल शक्ति मंत्री को पहले ही निर्देशित कर चुका है कि वे केवल 'मूक दर्शक' बने रहने के बजाय सक्रिय भूमिका निभाएं।
मामले में छह मई को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई पंजाब सरकार को फटकार लगाते हुए कह चुके हैं कि यह मनमानी नहीं तो क्या है।
नहर बनाने का आदेश पारित होने के बाद इसके निर्माण के लिए अधिग्रहीत जमीन को गैर अधिसूचित कर दिया गया। यह कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने की कोशिश है। यह मनमानी का स्पष्ट मामला है।
हरियाणा की 10 लाख एकड़ कृषि भूमि बंजर होने के कगार पर
हरियाणा सरकार का दावा है कि एसवाईएल के नहीं बनने से प्रदेश को अब तक 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। पिछले 46 वर्षों से सिंचाई पानी नहीं मिलने से दक्षिण हरियाणा की 10 लाख एकड़ कृषि भूमि बंजर होने के कगार पर पहुंच गई है।
सिंचाई पानी के अभाव में प्रदेश को हर साल 42 लाख टन खाद्यान्न का भी नुकसान हो रहा है। यदि वर्ष 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल बन जाती तो हरियाणा 130 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों और दूसरे अनाजों का उत्पादन कर सकता है।
यह है विवाद
वर्ष 1981 में दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे पर समझौता हुआ था, जिसके तहत एसवाईएल नहर बनाने का निर्णय लिया गया। 214 किलोमीटर लंबी एसवाईएल में 122 किलोमीटर हिस्सा पंजाब और 92 किलोमीटर हरियाणा को बनाना था।
हरियाणा ने अपना हिस्सा पूरा कर लिया, जबकि पंजाब ने 1982 में इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। जनवरी 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया और पंजाब से समझौते की शर्तों के अनुसार नहर बनाने को कहा, लेकिन पंजाब विधानसभा ने 2004 में 1981 के समझौते को खत्म करने के लिए एक कानून पारित कर दिया।
पंजाब के इस कानून को वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। तब से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में अटका हुआ है। अब 13 अगस्त को अगली सुनवाई की तारीख तय है।
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