फरीदाबाद में उत्तरी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में उठा SYL का मुद्दा, क्या बोले CM सैनी?
फरीदाबाद में उत्तरी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में एसवाईएल का मुद्दा उठा। एसवाईएल न बनने से हरियाणा की दस लाख एकड़ भूमि प्यासी है और हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्न का नुकसान हो रहा है। समझौते के अनुसार पानी न मिलने से भूजल स्तर गिर रहा है और किसानों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है। हरियाणा सरकार पंजाब विश्वविद्यालय में हिस्सेदारी बहाल करने का प्रयास कर रही है।
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समझौते के मुताबिक रावी-ब्यास से मिलना था 3.5 एमएएफ पानी, मिल रहा सिर्फ 1.62 एमएएफ (फोटो: जागरण)
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। फरीदाबाद के सूरजकुंड में सोमवार को हुई उत्तरी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में सतलुज-यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) का मुद्दा फिर उठा। एसवाईएल नहीं बनने से हरियाणा की दस लाख एकड़ से अधिक भूमि आज भी ''प्यासी'' है। रावी और ब्यास से अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं मिलने से हरियाणा को हर वर्ष 42 लाख टन खाद्यान्नों का नुकसान उठाना पड़ रहा है।
अगर वर्ष 1981 के समझौते के अनुसार 1983 में एसवाईएल का निर्माण हो जाता तो हरियाणा 140 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्नों व दूसरे अनाजों का उत्पादन करता। इतना ही नहीं, एसवाईएल के रास्ते हरियाणा को अपने हिस्से का पूरा पानी मिलता है तो राजस्थान को भी उसके हिस्से का पूरा पानी मिल सकेगा। ऐसे में एसवाईएल निर्माण को लेकर एक टाइमलाइन तय होना जरूरी है ताकि प्रदेश के किसानों को पानी की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
विडंबना यह कि सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों के बावजूद पंजाब ने एसवाईएल का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है। इसके बजाय पंजाब सरकार ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रियान्वयन में रोड़ा अटका दिया।
पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 के प्रविधान के अंतर्गत 24 मार्च 1976 के केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के पानी में से 3.5 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) जल का आवंटन किया गया था। एसवाईएल नहीं बनने से हरियाणा को केवल 1.62 एमएएफ पानी मिल रहा है। पंजाब की हठधर्मिता से हरियाणा को अपने हिस्से का लगभग 1.9 एमएएफ पानी नहीं मिल रहा।
वर्तमान में पंजाब और राजस्थान हर वर्ष हरियाणा के लगभग 2600 क्यूसिक पानी का प्रयोग कर रहे हैं। अगर यह पानी राज्य में आता तो 10 लाख एकड़ से अधिक भूमि सिंचित होती। एसवाईएल के माध्यम से पानी नहीं मिलने से दक्षिणी हरियाणा में भूजल भी काफी नीचे जा रहा है क्योंकि हरियाणा के किसान महंगे डीजल का इस्तेमाल कर और बिजली से नलकूप चलाकर सिंचाई करते हैं। इससे उन्हें हर वर्ष 100 करोड़ रुपये से लेकर 150 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ते हैं।
पिछले आठ सालों से हरियाणा सरकार पंचकूला और अंबाला जिले के कालेजों के लिए पंजाब विश्वविद्यालय से संबद्धता बहाल करने का प्रयास कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के कारण राज्य ने पांच दशक पहले 1973 में पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी संबद्धता खो दी थी।
वर्ष 2017 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने संबद्धता को बहाल करने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष मुद्दा उठाया था। हालांकि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान इस प्रस्ताव को पूरी तरह खारिज कर चुके हैं।
सभी राज्यों के पानी के हिस्से को संबंधित राज्य तक पहुंचाने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। हरियाणा लगातार दिल्ली को उसके हिस्से से अधिक पानी अपने हिस्से से देता रहा है, जबकि एसवाईएल नहीं बनने के कारण हरियाणा को पंजाब से अपने हिस्से का पूरा पानी नहीं मिल रहा है।
पंजाब सरकार को गुरुओं की महान परंपराओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। गुरुओं की धरती पंजाब वह पावन धरा है, जहां भाई कन्हैया जी जैसे गुरु सेवक हुए, जिन्होंने युद्ध भूमि में घायल पड़े दुश्मनों के सैनिकों को भी पानी पिलाया।
पंजाब विश्वविद्यालय में हरियाणा सरकार अपना योगदान करना चाहती है। यदि हरियाणा के कुछ कालेज इस विश्वविद्यालय से संबद्ध हो जाएंगे तो हरियाणा के विद्यार्थियों और विश्वविद्यालय दोनों को लाभ होगा।

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