रेलू राम हत्याकांड : हत्यारे दामाद-बेटी को हाईकोर्ट ने जमानत पर रिहा करने का दिया आदेश
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सोनिया और उसके पति संजीव को हत्या के मामले में अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। कोर्ट ने सरकार के समयपूर्व रिहाई ...और पढ़ें

हत्यारे दामाद व बेटी को हाईकोर्ट ने जमानत पर रिहा करने का दिया आदेश।
दयानंद शर्मा, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में हत्या के मामले में उम्रकैद काट रही सोनिया व उसके पति संजीव की समयपूर्व रिहाई से जुड़े विवादित सरकारी आदेश को रद्द करते हुए उसे अंतिम निर्णय होने तक अंतरिम जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार और स्टेट लेवल कमेटी ने उसके मामले पर निर्णय लेते समय कानूनी सीमाओं का उल्लंघन किया, पुराने जेल आचरण रिकॉर्ड का गलत इस्तेमाल किया और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की मनमानी व्याख्या की।
चर्चित रेलू राम पूनिया हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया की बेटी सोनिया और दामाद संजीव कुमार की समयपूर्व रिहाई मांग करते हुए हरियाणा सरकार के 6 अगस्त 2024 के आदेश को चुनौती दी थी। कोर्ट ने पाया कि सरकार ने न केवल अपनी ही 2002 की रिमिशन पालिसी का गलत अनुप्रयोग किया, बल्कि कई ऐसे पहलुओं पर टिप्पणी की, जिन पर अधिकार सिर्फ अदालतों का है।
जस्टिस सूर्य प्रताप सिंह ने आदेश देते हुए कहा कि राज्य स्तर की समिति ने 'कानूनन निषिद्ध क्षेत्रों' में दखल दिया है, जिससे पूरा निर्णय अवैध और विकृत हो गया है। फैसले के अनुसार, संजीव कुमार जो 2004 के हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहा है और जिसकी फांसी की सजा बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में विलंब के आधार पर उम्रकैद में बदली थी , ने वास्तविक 20 वर्ष से अधिक और कुल 25 वर्ष से अधिक (रिमिशन सहित) सजा काट ली है।
सोनिया 21 वर्ष से अधिक की वास्तविक सजा और 28 वर्ष से अधिक की कुल सजा (रिमिशन सहित) काट चुकी है जो कि हरियाणा सरकार की 2002 की समयपूर्व रिहाई नीति के अनुसार उसकी पात्रता पूरी करता है। इसलिए 12 अप्रैल 2002 की नीति के अनुसार वह विचार योग्य थे । लेकिन समिति ने पिछले पांच साल की बजाय 2005 से 2018 तक के पुराने जेल नियम को आधार बना कर रिहाई ठुकरा दी, जिसे कोर्ट ने 'स्पष्ट त्रुटि' करार दिया।
कोर्ट के अनुसार पालिसी में स्पष्ट है कि आकलन केवल हाल के पांच वर्षों के आचरण को देखकर होना चाहिए। कोर्ट ने इस बात पर भी कड़ी आपत्ति दर्ज की कि राज्य समिति ने यह टिप्पणी कर दी कि दोषी की फांसी उम्रकैद में 'मेरिट पर नहीं बल्कि केवल देरी के कारण' बदली गई थी। इसके अतिरिक्त समिति ने आरोपी के न्यायिक इकबालिया बयान और कथित सुसाइड नोट की सामग्री का मूल्यांकन किया , ऐसा मूल्यांकन, अदालत ने कहा, किसी कार्यकारी निकाय का नहीं बल्कि न्यायालय का क्षेत्राधिकार है।
यह टिप्पणी अपने आप में आदेश को “पक्षपातपूर्ण” और “अवैध” बनाती है। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि समिति को यह लिखने का कोई अधिकार नहीं था कि दोषी 'जीवनभर जेल में रहे' क्योंकि सजा अवधि तय करना अदालतों का विशेषाधिकार है, न कि किसी प्रशासनिक समिति का। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य अपनी बनाई नीति का स्वयं उल्लंघन नहीं कर सकता और रिमिशन को पूरी पारदर्शिता व समानता के आधार पर देखना होगा।
इन गंभीर त्रुटियों को देखते हुए हाई कोर्ट ने न केवल आदेश रद किया, बल्कि राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह दो महीने के भीतर 2002 नीति के परविधान के तहत मामले पर नए सिरे से फैसला करे। तब तक अदालत ने संजीव कुमार को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का भी आदेश दिया है, बशर्ते वह आवश्यक बांड भर दे।
अगस्त 2001 में लितानी गांव के पास स्थित फार्म हाउस में पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया (50), उनकी पत्नी कृष्णा देवी (41), बच्चे प्रियंका (14), सुनील (23), बहू शकुंतला (20), पोता लोकेश (4) और दो पोतियों शिवानी (2) तथा 45 दिन की प्रीति की हत्या कर दी गई थी। 2004 में हिसार की अदालत ने संजीव और सोनिया को फांसी की सजा सुनाई, जिसे 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा।
बाद में 2014 में दया याचिका में देरी का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। दलील दी कि वह 20 साल से अधिक वास्तविक सज़ा काट चुके है।याचिका में कहा गया कि दोषी करार दिए जाने के समय लागू हरियाणा समय पूर्व नीति 2002 के तहत वे रिहाई के पात्र हैं।
सुप्रीम कोर्ट के कई व संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि 'आखिरी सांस तक जेल' जैसी सजा केवल संवैधानिक अदालत ही दे सकती है, कोई कार्यकारी कमेटी नहीं। याचिकाकर्ताओं ने 6 अगस्त 2024 के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि वे 'आखिरी सांस तक जेल में रहेंगे।' दलील में कहा गया कि स्टेट लेवल कमेटी ने उनकी जेल आचरण रिपोर्ट, शिक्षा, सुधारात्मक गतिविधियों और पुनर्वास कार्यक्रमों पर विचार ही नहीं किया।

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