हरियाणा में अब बागी भाजपा विधायकों की पसंद के लगेंगे अफसर
हरियाणा में भाजपा के असंतुष्ट विधायक की भी अब सरकार सुनेगी। एेसे विधायकों की पसंद से ही अब अधिकारियों की तैनाती की जाएगी।
जेएनएन, चंडीगढ़। हरियाणा की अफसरशाही में जल्द ही बड़ा बदलाव हो सकता है। इस बार ऐसा बदलाव होगा, जिसे भाजपा के बागी विधायक स्वीकार कर सकें। विधायकों में अपनी सरकार के प्रति नाराजगी कम और अफसरों के प्रति अधिक है। उसी का नतीजा है कि सीएम को अपने ओएसडी मुकुल कुमार और भिवानी के डीसी पंकज की छुट्टी करनी पड़ी।
दरअसल, डिप्टी स्पीकर संतोष यादव के लंच के दौरान मुकुल कुमार गुरुग्राम के विधायक उमेश अग्रवाल को नमस्ते करने उनके पास आए। मुकुल ने औपचारिक रूप से पूछा ...और सुनाइए विधायक जी क्या हाल हैं। इसके जवाब में जवाब मिला कि पूरे प्रदेश में तुम्हारे ही चर्चे हैं। विधायक का जवाब सुनते ही मुकुल कुमार साइड हो लिए।
इसी तरह भिवानी के डीसी पंकज से पूर्व मंत्री घनश्याम सर्राफ और बाढड़ा के विधायक सुखविंद्र श्योराण खुश नहीं हैं। अब विधायकों से उनकी पसंद और नापसंद के बारे में पूछा जाएगा, ताकि गुरुग्राम और दिल्ली की मीटिंग में बागी विधायकों को यह कहकर संतुष्ट किया जा सके कि अफसरशाही में जल्द ही बड़ा बदलाव होने वाला है।
टल गया डीजीपी पर आया संकट
विधानसभा स्पीकर और उनके परिवार के सदस्यों पर भर्ती में पैसे लेने के लगे आरोपों में डीजीपी की भूमिका को संदेह से देखा जा रहा था। डीजीपी मूल रूप से सहारनपुर जिले के रहने वाले हैं और उनका नजदीकी स्पीकर के यमुनानगर जिले से इनेलो के टिकट पर चुनाव लड़ने को तैयार है। भर्तियों में पैसे लेने के पूरे विवाद को इसी राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा था, लेकिन पिछले दिनों खबर आई कि पंचकूला में एक गुप्त स्थान पर दोनों पक्षों को आमने-सामने बैठाकर सारी गलतफहमियां दूर कर ली गई हैं। तभी पता चला कि पुलिस अधिकारियों की तबादला सूची में डीजीपी का नाम नहीं है। यानी अचानक आया संकट बातचीत के बाद अचानक ही टल भी गया। इसे कहते हैं मैनेजमेंट।
नाराज विधायकों के मौके के दांव
हरियाणा के बागी भाजपा विधायक दोनों हाथों में लड्डू रखना चाह रहे हैं। विधानसभा में जब ग्वाल पहाड़ी कालोनी की जमीनों का म्युटेशन बदलने के मुद्दे पर चर्चा चल रही थी, तब गुरुग्राम के विधायक उमेश अग्रवाल ने अपनी सरकार पर खुले आरोप जड़े।अपनी बात को वजन देने के लिए उन्होंने संख्या बल के हिसाब से विधानसभा में मौजूद 16 विधायकों को अपनी सीटों पर उठकर समर्थन करने के लिए हाथ का इशारा किया तो कुछ विधायक खड़े हो गए और कुछ नजरें बचाकर अपनी सीटों पर बैठे रहे। यानी सीटों से खड़े न होने वाले विधायक सीधे तौर पर टकराव के मूड में नहीं हैं। इसे कहते हैं मौका देखकर दांव चलना।
मामा-भानजे के दूर हुए गिले-शिकवे
हुड्डा और कैप्टन अभिमन्यु के बीच छत्तीस का आंकड़ा किसी से छिपा नहीं है। विधानसभा में छोटूराम पर कैप्टन अभिमन्यु और जयप्रकाश जेपी भी भिड़ गए। इससे दोनों में पैदा हुई कटुता को कैप्टन के डिनर पर दूर किया गया। गिले-शिकवे दूर हुए तो गले मिलते हुए विदाई ली गई। यही तो राजनीति के रंग हैं।
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