एमबीबीएस कोर्स की दोबारा होगी काउंसलिंग, आर्थिक आरक्षण का दायरा बढ़ा
हाई कोर्ट ने हरियाणा में एमबीबीएस कोर्स में नामांकन के लिए दोबारा काउंसलिंग करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही पिछड़े वर्ग के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण का दायरा भी बढ़ाया गया है।
चंडीगढ़, [कमल जोशी]। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा के मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स में नामांकन के लिए काउंसलिंग की प्रक्रिया को दोबारा आयोजित करने का आदेश दिया है।हाई कोर्ट ने इसके साथ ही आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए हरियाणा सरकार द्वारा लगभग दो साल पहले जारी अधिसूचना को खारिज कर दिया है। इस अधिसूचना में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में पिछड़ी जाति के उन आवेदकों को प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया था, जिनके परिवार की वार्षिक आय तीन लाख से कम हो। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि दोबारा काउंसलिंग में छह लाख रुपये तक की आय वाले पिछड़ा वर्ग के परिवारों के आवेदकों को आरक्षण का लाभ दिया जाए।
हाई कोर्ट का आदेश, छह लाख तक की आय वाले परिवारों को मिलेगा आरक्षण का समान लाभ
जस्टिस महेश ग्रोवर और जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु की खंडपीठ ने यह आदेश इस संबंध में एमबीबीएस में नामांकन के अावेदक निशा और अन्य विद्यार्थियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। उल्लेखनीय है कि हरियाणा सरकार ने 7 अगस्त, 2016 को अधिसूचना जारी की थी। इसके अनुसार हरियाणा में नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में पिछड़ी जातियों के उन परिवारों के आवेदकों को प्राथमिकता मिलेगी, जिनकी कुल वार्षिक आय तीन लाख रुपये तक हो। इसके बाद बचे आरक्षित पदों पर छह लाख रुपये तक की आमदन वाले आवेदकों को प्रवेश दिया जाएगा।
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सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने उक्त अधिसूचना को खारिज करते हुए कहा है कि किसी वर्ग के सामाजिक पिछड़ेपन को निर्धारित करने के लिए समग्र सोच अपनाने की जरूरत है। ये नहीं माना जा सकता कि सिर्फ तीन लाख से कम वार्षिक आमदनी वाले परिवार ही सामाजिक पिछड़ेपन का शिकार हैं। पिछड़ेपन का ऐसा वर्गीकरण संवैधानिक प्रावधानों का परीक्षण नहीं झेल सकता।
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हाई कोर्ट ने कहा है कि सामाजिक पिछड़ेपन का आर्थिक बदहाली से सीधा संबंध होने की कोई मान्यता नहीं है। ऐसे में पिछड़ों के एक वर्ग को आरक्षण के लाभ से वंचित करना ऐसा ही है जैसे कि सरकार ने उन्हें एक हाथ से लाभ देकर दूसरे से वापस ले लिया। हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार ने इस प्रकार का वर्गीकरण करके गलती की है और उसने योग्य आंकड़े भी प्रस्तुत नहीं किए। हाई कोर्ट ने कहा कि आरक्षण का लाभ लेने के योग्य समूह को बिना किसी पुख्ता आधार के वर्गीकृत करना पूरी तरह से मनमाना और भेदभावपूर्ण है जो सरकारी लाभों के समान वितरण की संवैधानिक प्रावधान का हनन है।
बता दें कि अपनी एक पूर्व अधिसूचना में हरियाणा सरकार ने समाज के कुछ वर्गों को जाति और व्यवसाय के आधार पर पिछड़ा घोषित किया था और आरक्षण का लाभ छह लाख रुपये तक की आमदन वाले परिवारों तक सीमित कर दिया गया था। यह प्रावधान भारत सरकार द्वारा निर्धारित आर्थिक मानदंडों के आधार पर किया गया था।