पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने जजों की सुरक्षा पर लिया स्वतः संज्ञान, दोनों राज्यों से सुरक्षा नीति पर जवाब
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रशासनिक कार्यों में लगे न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा के मामले में स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने हरियाणा और पंजाब से निचली अदालतों के न्यायाधीशों की सुरक्षा नीति पर जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि दूरदराज के क्षेत्रों में सेवा देने वाले जजों और महिला जजों की सुरक्षा का मुद्दा संवेदनशील है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हाईकोर्ट में डेपुटेशन पर आकर विभिन्न प्रशासनिक कार्य करने वाले न्यायिक अधिकारियों को सुरक्षा न देने पर लिए गए संज्ञान का दायरा पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बढ़ा दिया है। कोर्ट ने इस मामले में हरियाणा व पंजाब को पक्ष बनाते हुए निचली अदालतों के जजों की सुरक्षा को लेकर नीति पर जवाब मांगा है।
हाईकोर्ट ने यह संज्ञान दरअसल उस प्रस्ताव पर लिया है, जिसे हाईकोर्ट की बिल्डिंग कमेटी ने पारित किया था। इस प्रस्ताव में स्पष्ट किया गया था कि जिला न्यायपालिका के कई अधिकारी जो हाईकोर्ट में प्रतिनियुक्ति पर प्रशासनिक कार्य देख रहे हैं, उन्हें यूटी प्रशासन द्वारा अपेक्षित सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है।
कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा न केवल उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा का प्रश्न है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया और संस्थान की गरिमा से भी जुड़ा हुआ मामला है। इसीलिए प्रशासन को इस मुद्दे पर गंभीरता से कदम उठाने होंगे। कोर्ट ने कहा था कि इन अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित होने से न्यायिक कार्य और अधिक बेहतर तरीके से हो सकेगा, जो व्यापक जनहित में होगा।
हाईकोर्ट में रजिस्ट्रार जनरल, रजिस्ट्रार विजिलेंस सहित अन्य प्रशासनिक पदों पर हरियाणा व पंजाब के जजों की प्रतिनियुक्ति होती है। बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिका का दायरा बढ़ा दिया। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट में प्रशासनिक सेवा देने वाले न्यायिक अधिकारियों के साथ ही निचली अदालतों में सेवा दे रहे जजों की सुरक्षा का मुद्दा भी अहम है।
दूर-दराज के क्षेत्रों में सेवा देने वाले जजों व महिला जजों की सुरक्षा का मुद्दा बेहद संवेदनशील है। कोर्ट ने हरियाणा व पंजाब सरकार को न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर नीति पेश करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि यदि नीति मौजूद नहीं है तो प्रस्तावित नीति सौंपी जाए। दोनों राज्यों को बताना होगा कि किस स्तर के न्यायिक अधिकारी को कितनी सुरक्षा दी जाती है।
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