पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पानीपत नाबालिग हत्याकांड मामले में जमानत खारिज का फैसला रद्द किया, जेजेबी से पुनर्विचार का आदेश
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पानीपत के एक नाबालिग हत्या आरोपी की जमानत अर्जी खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने जेजेबी के फैसले को बिना ठोस आधार का बताया और पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चों के मामलों में जमानत के मानक अलग होते हैं और जेजेबी ने एसआईआर रिपोर्ट भी नहीं मंगवाई जो नाबालिग के अधिकारों का उल्लंघन है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में पानीपत के एक नाबालिग हत्या आरोपित की जमानत अर्जी खारिज करने के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और अपीलीय अदालत के आदेश को निरस्त कर दिया है।
हाई कोर्ट ने मामले को पुन विचार के लिए जेजेबी को भेजते हुए कहा कि आदेश बिना ठोस आधार के पारित किया गया और यह न्यायसंगत नहीं है।जस्टिस सूर्य प्रताप सिंह की एकल पीठ ने जेजेबी के इस कदम को "अजीब" करार देते हुए कहा कि बोर्ड और अपीलीय कोर्ट ने उचित कारण दर्ज किए बिना जमानत से इनकार कर दिया।
हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि बच्चों से संबंधित मामलों में जमानत पर विचार करने के मानक बिल्कुल अलग होते हैं, लेकिन इस मामले में अदालतें अभियोजन पक्ष की दलीलों से प्रभावित हो गईं।मामला पानीपत का है, जहां दो अक्टूबर 2023 को एक किशोर पर एक गांव के अनुसूचित जाति समुदाय के युवक की हत्या कर शव फेंकने का आरोप लगा था।
इस मामले में एक वयस्क आरोपित भी शामिल है। आरोपित 16 वर्षीय नाबालिग की जमानत याचिका फरवरी 2024 में जेजेबी ने खारिज कर दी थी, जिसे बाद में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पानीपत ने भी बरकरार रखा।
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किशोर न्याय अधिनियम (जे जे एक्ट) के अनुसार जमानत से इनकार तभी किया जा सकता है जब यह प्रतीत हो कि नाबालिग का आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों से संबंध है या उसकी रिहाई से उसके नैतिक, शारीरिक या मानसिक जीवन पर खतरा होगा। लेकिन इस मामले में अदालतों ने ऐसी कोई ठोस वजह दर्ज नहीं की।
हाई कोर्ट ने कहा, सिर्फ इसलिए कि गंभीर अपराध का आरोप है, यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि जमानत से इनकार करने की शर्तें पूरी हो गई हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह बताई गई कि नाबालिग के सामाजिक-आर्थिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि की जांच के लिए आवश्यक सामाजिक जांच रिपोर्ट (एसआईआर) तक जेजेबी ने नहीं मंगाई और आदेश में इस संबंध में कोई कारण भी दर्ज नहीं किया।
हाई कोर्ट ने इसे नाबालिग के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए मामले को जेजेबी को वापस भेजा और निर्देश दिए कि सभी पहलुओं का ध्यान रखते हुए कानून निर्धारित मानकों के आधार पर दोबारा सुनवाई कर आदेश पारित किया जाए।
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