‘120 बहादुर’ की रिलीज पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका, कहा- फिल्म में कुमाऊं रेजीमेंट को लेकर पेश किए गलत तथ्य
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में '120 बहादुर' फिल्म के खिलाफ याचिका दायर की गई है, जिसमें 1962 के भारत-चीन युद्ध में रेजांग ला की लड़ाई के गलत चित्रण का आरोप है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत किया गया है और अहीर समुदाय के योगदान को कम करके दिखाया गया है। उन्होंने फिल्म का प्रमाणन रद्द करने और नाम बदलने की मांग की है।
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‘120 बहादुर’ की रिलीज पर रोक लगाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। फिल्म '120 बहादुर' की प्रमाणन प्रक्रिया और प्रस्तावित रिलीज़ को चुनौती देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि फिल्म 18 नवंबर 1962 को चीन-भारत युद्ध के दौरान लड़ी गई रेजांग ला की ऐतिहासिक लड़ाई के सत्य को विकृत रूप में पेश करती है।
याचिका के अनुसार, लद्दाख के चुशूल सेक्टर में 18,000 फीट की ऊंचाई पर लड़ी गई इस लड़ाई में 13 कुमाऊं रेजिमेंट की ‘सी कंपनी’ के 120 सैनिकों में से 114 ने सर्वोच्च बलिदान दिया था।
याचिकाकर्ताओं ने रक्षा मंत्रालय के 1992 के आधिकारिक रिकार्ड का हवाला देते हुए कहा है कि यह युद्ध सामूहिक वीरता का अद्वितीय उदाहरण माना जाता है। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि कंपनी के अधिकांश सैनिक हरियाणा के रेवाड़ी क्षेत्र के अहीर (यादव) समुदाय से थे।
याचिका संयुक्त अहीर रेजीमेंट मोर्चा और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई है, जिसमें अदालत से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा गया है कि यह मामला “सामूहिक सम्मान, ऐतिहासिक सत्य और रेजीमेंट की गरिमा” के संरक्षण से जुड़ा है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, फिल्म में 13 कुमाऊं रेजीमेंट की ‘सी कंपनी’ द्वारा लड़ी गई लड़ाई का गलत चित्रण किया गया है।
याचिकाकर्ताओं का मुख्य आरोप है कि फिल्म में मेजर शैतान सिंह, पीवीसी को एकमात्र नायक के रूप में दिखाया गया है और उनका नाम बदलकर ‘भाटी’ कर दिया गया है, जो “सामूहिक पहचान, रेजीमेंट के गौरव और समुदाय के योगदान” को मिटाने का प्रयास है। याचिका में कहा गया है कि फिल्म का यह चित्रण सिनेमैटोग्राफ एक्ट और उसके दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है, जिनमें इतिहास को विकृत रूप में प्रस्तुत करने पर रोक है।
साथ ही भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 356 का भी उल्लेख किया गया है, जो मृत व्यक्तियों के बारे में आपत्तिजनक आरोप लगाने पर रोक लगाती है। याचिका में सार्वजनिक स्मृति को अपूर्णीय क्षति से बचाने के लिए याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि फिल्म को दिया गया प्रमाणपत्र रद्द किया जाए और फिल्म का नाम बदलकर 120 वीर अहीर किया जाए।
वैकल्पिक रूप से यह घोषणा करने का आग्रह किया गया है कि फिल्म पूरी तरह काल्पनिक है और वास्तविक घटनाओं पर आधारित नहीं है। हाई कोर्ट ने मामले पर प्रारंभिक सुनवाई की है और आगे की कार्यवाही जल्द होने की संभावना है।

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