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    हरियाणा: राजस्व विभाग के पटवारी को 30 साल बाद मिला पदोन्नति का हक, मिलेगा बकाया वेतन और पेंशन लाभ 

    Updated: Mon, 03 Nov 2025 03:52 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि कर्मचारी को पदोन्नति से वंचित रखना प्रशासनिक उदासीनता है। कोर्ट ने राजस्व विभाग के कर्मचारी पूरन सिंह को 24 अप्रैल 1995 से कानूनगो पद पर पदोन्नत करने का आदेश दिया है, साथ ही सभी वित्तीय लाभ देने का भी आदेश दिया। 

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    राजस्व विभाग के पटवारी को 30 साल बाद मिला पदोन्नति का हक। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि एक कर्मचारी को वर्षों तक उसके वैधानिक प्रमोशन से वंचित रखना “प्रशासनिक उदासीनता और प्रक्रियागत अनुचित का चिंताजनक उदाहरण” है।

    कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया है कि राजस्व विभाग के कर्मचारी पूरन सिंह को उनके कनिष्ठों के समान तिथि यानी 24 अप्रैल 1995 से कानूनगो पद पर पदोन्नत माना जाए और सभी वित्तीय, सेवा एवं पेंशन संबंधी लाभ तीन महीने के भीतर प्रदान किए जाएं।

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    यह फैसला जस्टिस संदीप मौदगिल ने सुनाया। उन्होंने स्पष्ट किया कि पूरन सिंह को बिना किसी वैध कारण के पदोन्नति से वंचित किया गया, जबकि वे सभी आवश्यक योग्यताएं पूरी करते थे और उनके खिलाफ कोई ठोस आपत्ति नहीं थी। मामला क्या था पूरन सिंह ने वर्ष 1958 में गुरुग्राम जिले में पटवारी के रूप में सेवा ज्वाइन की थी। वे पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं और मिडिल पास थे।

    उन्होंने 1984 में कनूनगो विभागीय परीक्षा भी पास कर ली थी। हालांकि, 1981 के नियमों के तहत उस समय मैट्रिक पास होना अनिवार्य था। लेकिन राज्यपाल ने 12 फरवरी 1985 को एक आदेश जारी कर 4 जनवरी 1966 से पहले भर्ती हुए पटवारियों के लिए यह शैक्षणिक योग्यता शिथिल कर दी थी।

    इस तरह पूरन सिंह भी पदोन्नति के पात्र हो गए थे। इसके बावजूद विभाग ने उन्हें प्रमोशन नहीं दिया और उनके कनिष्ठों को 24 अप्रैल 1995 को कानूनगो पद पर पदोन्नत कर दिया गया।

    सरकार ने इसका कारण कुछ एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) में नकारात्मक टिप्पणियों और एक धोखाधड़ी के आपराधिक केस को बताया।याची ने इसके खिलाफ 1996 में याचिका दायर की थी।

    कोर्ट ने पाया कि पूरन सिंह के खिलाफ जो नकारात्मक एसीआर प्रविष्टियां थीं, वे या तो कभी बताया ही नहीं गई या बाद में हटा दी गईं। साथ ही, आपराधिक केस में भी उन्हें 22 सितंबर 1995 को बरी कर दिया गया था। इसलिए इन आधारों पर प्रमोशन रोकना पूर्णत कानूनी रूप से अस्थिर था।

    कोर्ट ने कहा कि यह मामला “न्याय में देरी, भेदभाव और प्रशासनिक उदासीनता” का प्रतीक है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि किसी कर्मचारी को बिना कारण अवसर से वंचित करना अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि पूरन सिंह को 24 अप्रैल 1995 से कानूनगो पद पर पदोन्नत मानते हुए वरिष्ठता, वेतन, पेंशन और अन्य सेवा लाभ दिए जाएं। यह पूरा कार्य तीन माह के भीतर पूरा करना होगा।