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घर जाने का जुनून और खुली लूट का नजारा: आइए... आइए...आइए दो हजार रुपये में बलिया

श्रमिकों में अपने घर जाने का जुनून है। यह उनकी मजबूरी भी है। उनकी इस मजबूरी का फायदा उठाने वाले भी सक्रिय हैं। वे इन मजबूर श्रमिकों से घर पहुंचाने का मोटा किराया वसूल रहे हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 20 May 2020 01:08 AM (IST)Updated: Wed, 20 May 2020 08:00 AM (IST)
घर जाने का जुनून और खुली लूट का नजारा: आइए... आइए...आइए दो हजार रुपये में बलिया
घर जाने का जुनून और खुली लूट का नजारा: आइए... आइए...आइए दो हजार रुपये में बलिया

नई दिल्‍ली, [बिजेंद्र बंसल]। गरीब हैं। दो हजार रुपये उनके लिए बड़ी रकम है, लेकिन घर लौटने का जुनून ऐसा कि पाई-पाई कर जोडी गई यह रकम भी देने से नहीं हिचकते। अपने गांव-शहर पहुंचने के लिए यह कीमत भी ज्‍यादा मायने नहीं रखता। वे अब यहां नहीं रहना चाहते। हर हाल में जाना चाहते हैं। किसी भी कीमत पर। ट्रक से। साइकिल से। सबको जल्द से जल्द घर पहुंचने जिद है। बहुत से तो ऐसे हैं पैदल ही हजार किलोमीटर की दूरी नापने पर आमादा हैं।

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सोमवार की रात बल्लभगढ़ से पूर्वांचल के अन्य शहरों में जाने की जिद्दोजहद के साथ ही कामगारों लाचारी, मजबूरी देखी। और इन सबके बीच उनको घर पहुंचाने के नाम पर की जा रही लूट का नजारा भी देखा। प्रस्तुत है आंखों देखी रिपोर्ट...

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दृश्य एक

रात्रि के 10.15 बजे हैं। और नजारा है दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग से लगते बल्लभगढ़ शहर की सब्जी मंडी के प्रवेशद्वार पर हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े शहरों में काम करने वाले दूसरे राज्यों के कामगार खड़े हैं। परिवार के साथ 30-40 किलोमीटर पैदल चलकर यहां तक पहुंचे ये कामगार अब थक चुके हैं। तभी एक खाली ट्रक यहां आकर रुकता है और उसके  चालक और परिचालक आवाज लगाते हैं कि आइए, आइए, दो हजार रुपये में बलिया-बलिया पहुंचिए। कामगार अपना सामान उठाते और इस ट्रक में बिना सोचे-समझे चढ़ने लगते हैं। ट्रक चालक-परिचालक फिर एक स्वर में इन कामगारों से कहते हैं कि एक सवारी का दो हजार लगेगा। सोच-समझकर चढ़ना।

कुछ उतर जाते हैं यह कहते हुए कि दो हजार तो पास में हैं ही नहीं। फिर दूसरा ट्रक आता है। वही प्रक्रिया फिर दोहराई जाती है। चलती रहती है। दिल्ली एनसीआर में सामान छोड़कर आगरा की तरफ जाने वाले खाली ट्रक चालक इन मजबूर कामगारों से खुलेआम आवाज लगाकर हरियाणा-उत्तर प्रदेश बॉर्डर कोसीकलां तक एक हजार रुपये प्रति सवारी और बिहार बॉर्डर पर लगने वाले उत्तर प्रदेश के शहर बलिया तक दो हजार रुपये प्रति सवारी मांगते हैं। एक हजार या दो हजार रुपये इन कामगारों के लिए भले ही बड़ी रकम है। फिर भी उनमें इन ट्रकों में बैठकर जाने की प्रतिस्पर्द्धा रहती है।

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दृश्य दो:

साहब,मजबूरों पर हो रहे इस जुल्म को रोको

करीब 10.30 बजे एकाएक एक गाड़ी आकर रुकती है। एनआइटी फरीदाबाद के कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा बाहर आते हैं। कामगारों पेट भरने के लिए भोजन,पानी और राह आसान बनाने के लिए जूते-चप्पल वितरित कर रहे समाजसेवी उन्हें प्रणाम करते हैं। फिर हाथ जोड़कर बोलते हैं- साहब, अब तक तो यहां कोई जनप्रतिनिधि दिखाई नहीं दिया मगर ऐसा जुल्म तो हमने कभी नहीं देखा। हम इन मजबूर लोगों के लिए 10-15 रुपये का खाना दे रहे हैं, चप्पल-जूते लाकर दे रहे हैं मगर खाली ट्रक वाले इनसे दो-दो हजार रुपये वसूल रहे हैं।

नीरज शर्मा फोन लगाते हैं। दूसरी तरफ शायद कोई पुलिस का बड़ा अफसर है। दस मिनट के भीतर ही सायरन बजाते हुए पुलिस की एक जिप्सी आकर रुकती है और शर्मा जिप्सी में आए पुलिस अधिकारी से राजमार्ग पर ही खाली ट्रकों को रोकने का आग्रह करते हैं। पुलिस अधिकारी अपने मातहत पुलिसकर्मियों से कुछ ट्रकों को रुकवाते हैं। शेष बचे कामगारों को उनमें चढ़ाकर ट्रक के चालक परिचालक से यही कहते हैं कि इनसे पैसे नहीं लेना। यह तुम्हारे लिए पुण्य का काम है, इन्हेंं जहां तक ट्रक जा रहा है,वहां तक छोड़ देना। देखते ही देखते पांच ट्रकों में सवार होकर सभी कामगार करीब 11.30 बजे तक चले जाते हैं, लेकिन दिल्ली की ओर से यहां परिवारों के साथ कामगारों के आने का सिलसिला जारी रहता है।

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दृश्य तीन

कोई खाना खाए बिना ट्रक पर नहीं चढ़े

समय : रात्रि के 10 बजे हैं और बल्लभगढ़ सब्जी मंडी के प्रवेश द्वार पर किसी वाहन के आने की उम्मीद में बैठे मजदूर परिवारों से कुछ समाजसेवी आवाज देकर यह आग्रह करते हैं कि कोई बिना खाना खाए ट्रक पर न चढ़े। इन्हीं में कुछ समाजसेवी भोजन के पैकेट के साथ कामगारों के बच्चों को फ्रूटी बांट रहे हैं तो कुछ पानी की थैलियां। इन समाजसेवियों से अलग कुछ लोग बड़ी टंकी में गरमा-गर्म चाय- पांच रुपये में, की आवाज लगा रहे हैं।

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दृश्य चार :

साहब, अब रुकने की बात न करो, हमें अपने घर जाना है...

अलग-अलग ग्रुपों में परिवार के साथ बैठे कामगारों को भोजन, पानी व अन्य खानपान का सामान वितरित कर रहे समाजसेवी उनसे यह आग्रह भी करते हैं कि दो दिन रुक जाओ, रेलगाड़ी भी शुरू हो जाएंगी। तब चले जाना। एक-दो दिन रुकने के लिए यहीं व्यवस्था करवा देते हैं। यह सुनते ही कामगारों के हलक में रोटी का टुकड़ा रुक जाता है, पानी पीते हुए बोलते हैं- साहब, अब हमें रुकने के लिए नहीं कहो, हमें अपने घर जाना है। कोई गाड़ी मिलेगी तो ठीक नहीं तो सुबह पैदल ही निकल लेंगे।

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