पंचकूला में वार्डबंदी पर संकट! बैठक विवादों में घिरी, आरक्षण सूची और जनसंख्या के आंकड़ों पर बहस, कांग्रेस-जजपा का विरोध
पंचकूला नगर निगम चुनाव 2026 से पहले वार्डबंदी की पहली बैठक विवादों में घिर गई। कांग्रेस और जजपा पार्षदों ने पीपीपी के आंकड़ों को गलत बताते हुए विरोध जताया। उनका आरोप है कि एससी और बीसी वर्ग के लोगों को सामान्य श्रेणी में डाल दिया गया है। जनसंख्या के आधार पर वार्डों का निर्धारण और महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर भी सवाल उठे।

पंचकूला नगर निगम चुनाव 2026 में होने हैं, जिसकी तैयारियां शुरू हो चुकी हैं।
राजेश मलकानियां, पंचकूला। पंचकूला नगर निगम चुनाव 2026 की तैयारियों के बीच वार्डबंदी को लेकर बुलाई गई पहली बैठक विवादों में घिर गई। नगर निगम और जिला प्रशासन द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों को लेकर कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी (जजपा) के पार्षदों ने कड़ा विरोध जताते हुए इन्हें “हवा-हवाई” करार दिया। बैठक की शुरुआत में ही अधिकारियों द्वारा पेश किए गए आंकड़ों पर सवाल उठने लगे और अंततः इसे 10 दिसंबर तक स्थगित करना पड़ा।
बैठक में संयुक्त आयुक्त गौरव चौहान ने परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) के आधार पर पंचकूला की जनसंख्या के आंकड़े प्रस्तुत किए। महापौर कुलभूषण गोयल ने जब अधिकारियों से वार्ड-वार जनसंख्या डेटा की मांग की, तो अधिकारियों के पास ठोस उत्तर नहीं था और उन्होंने समय मांगा। इसी असमंजस के बीच बैठक रुकवानी पड़ी।
पीपीपी के आधार पर 140 प्रतिशत बढ़ी जनसंख्या
जिला प्रशासन के अनुसार, 2011 की जनगणना में पंचकूला की जनसंख्या 2,67,413 थी, जिसमें अनुसूचित जाति की संख्या 41,467 बताई गई। परिवार पहचान पत्र 2021 के नियमों के अनुसार पंजीकृत मतदाताओं के 140 प्रतिशत के आधार पर जनसंख्या का आकलन किया गया, जिसके बाद यह आंकड़ा लगभग 2,91,024 तक पहुंच जाता है। इस डेटा में पिछड़ा वर्ग ‘क’ की जनसंख्या 38,733 और पिछड़ा वर्ग ‘ख’ की जनसंख्या 17,736 बताई गई है।
राजेश कुमार ने उठाए सवाल
जजपा के पार्षद राजेश कुमार ने आरोप लगाया कि परिवार पहचान पत्र में बड़े पैमाने पर गलतियां हैं। उनके अनुसार एससी और बीसी वर्ग के हजारों लोगों को जानबूझकर सामान्य श्रेणी में डाल दिया गया, जिससे वास्तविक जनसंख्या और वर्गवार आंकड़े बिगड़ गए हैं।
पार्षद का कहना है कि जब तक डेटा को सही नहीं किया जाता, तब तक वार्डबंदी निष्पक्ष तरीके से नहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि कई परिवार अभी तक पीपीपी में दर्ज नहीं हुए हैं और जिनका दर्ज हुआ, उनमें भी गड़बड़ियां आम हैं।
10 से 12 मतदान केंद्र बनाए जाएंगे
जिला प्रशासन ने बैठक में कहा कि जनसंख्या के आधार पर एक वार्ड में न्यूनतम 11,000 और अधिकतम 17,000 लोग शामिल किए जाएंगे। प्रत्येक वार्ड में लगभग 10 से 12 मतदान केंद्र बनाए जाएंगे।
हालांकि आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भरोसा न होने के कारण यह निर्णय भी सवालों के घेरे में आ गया। महापौर कुलभूषण गोयल ने निर्देश दिए कि परिवार पहचान पत्र के आधार पर वार्ड-वार विस्तृत आंकड़े उपलब्ध कराए जाएं, ताकि वार्डबंदी सही और पारदर्शी तरीके से हो सके।
सात वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित
7 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं, जिनमें एक एससी महिला, बीसी (ए) और बीसी (बी) महिला के लिए आरक्षित है। चार सीटें सामान्य जाति महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। कांग्रेस पार्षद गौतम प्रसाद ने कहा कि बीसी ए और बीसी बी महिला के लिए आरक्षित कर दी गई है, जबकि एक सीट पुरुष और एक महिला के लिए होनी चाहिए थी। उन्होंने इसे अनुचित करार दिया।
भाजपा की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
वार्डबंदी को लेकर उठे विवाद के बीच राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नए वार्डों में कालोनी और ग्रामीण इलाकों की जनसंख्या शहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक दिख रही है। इसका असर भाजपा पर पड़ सकता है, क्योंकि पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में इन क्षेत्रों से पार्टी को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला था। यदि आगामी वार्डबंदी में शहरी वार्डों के साथ कालोनी और गांव जुड़े, तो भाजपा के पार्षद उम्मीदवारों के लिए चुनाव जीतना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
जातिगत विसंगतियों पर बहस
बैठक में पार्षद गौतम प्रसाद ने भी पीपीपी डेटा को लेकर तीखे सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में एससी और बीसी वर्ग के लोगों को सामान्य जाति में दिखा दिया गया है, जिससे आंकड़े भ्रामक हो गए हैं। लोग अपने डेटा को सही कराने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन सुधार धीमा है।
एक अधिकारी ने कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार से आए लोगों को सामान्य में गिना जाएगा। गौतम ने कहा कि जो जिस जाति में पैदा हुआ है, उसे उसी में दर्ज किया जाना चाहिए।

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