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जमीन और संपत्ति के कलेक्टर रेट तय करने के नियम नहीं, सब कुछ डीसी मर्जी पर

हरियाणा में जमीन और संपत्ति के कलेक्टर रेट निर्धारित करने का कोई वैधानिक फार्मूला नहीं है। डीसी अपनी मर्जी से कलेक्टर रेट निर्धारित कर करते हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 08:45 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 09:00 PM (IST)
जमीन और संपत्ति के कलेक्टर रेट तय करने के नियम नहीं, सब कुछ डीसी मर्जी पर
जमीन और संपत्ति के कलेक्टर रेट तय करने के नियम नहीं, सब कुछ डीसी मर्जी पर

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा में जहां विकास परियोजनाओं के लिए जमीनों की अक्सर मारामारी रहती है, वहां जमीनों के कलेक्टर रेट निर्धारित करने का कोई वैधानिक फार्मूला नहीं है। जिला उपायुक्त (डीसी) अपनी मर्जी से जमीनों के कलेक्टर रेट निर्धारित कर करते हैं। हालांकि पड़ोसी राज्य पंजाब में जमीनों व संपत्ति के कलेक्टर रेट तय करने संबंधी कानून वर्ष 2002 में बनाया गया था। 

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आरटीआइ में सामने आया हरियाणा में प्रशासनिक व्यवस्था का सच

हरियाणा में हर साल जिला उपायुक्त अपने-अपने जिलों में जमीनों व सपंत्ति के न्यूनतम कलेक्टर रेट निर्धारित करते हैं। इससे कम पर संपत्ति की बिक्री नहीं हो सकती है। लोगों को उनकी संपत्ति के संबंध में आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की मंशा से जमीनों के कलेक्टर रेट निर्धारित किए जाते हैं।

दिल्ली से सटा होने के कारण हरियाणा में बड़ी बड़ी कंपनियां अपने प्रोजेक्ट लगाना चाहती हैं, मगर यहां जमीनों की कमी बन गई है अथवा जमीनें बहुत अधिक महंगी हो गई। लिहाजा राज्य सरकार ने हाल ही में साल में दो बार जमीनों व सपंत्ति के कलेक्टर रेट निर्धारित करने का फैसला लिया है।

पंजाब 16 साल पहले बना चुका नियम, हरियाणा ने अभी सोचा भी नहीं

प्रदेश सरकार के इस फैसले के बाद जब पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के अधिवक्ता हेमंत कुमार ने जिला उपायुक्तों द्वारा जमीनों के रेट निर्धारित करने की प्रक्रिया जाननी चाही तो चौंकाने वाली बात सामने आई है।

हेमंत कुमार ने राजस्व विभाग के अंडर सेक्रेटरी (जन सूचना अधिकारी) के समक्ष इस बारे में आरटीआइ लगाई थी।

दी गई जानकारी में साफ इंगित किया गया है कि जिला उपायुक्त द्वारा कलेक्टर रेट निर्धारित करने संबंधी कोई नियम नहीं है। ऐसे में स्पष्ट है कि जिला उपायुक्तों द्वारा निर्धारित कलेक्टर रेट की कोई वैधानिक स्वीकृति अथवा मान्यता नहीं है। राज्य में जिला उपायुक्तों (डीसी) के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) का भी वैधानिक तौर पर पदनाम स्वीकृत नहीं है।

कलेक्टर रेट निर्धारित करने की पावर नहीं डीसी के पास

हरियाणा में जिला उपायुक्तों को विभिन्न अधिनियम मसलन भारतीय स्टांप अधिनियम 1899 के अंतर्गत पर्याप्त शक्तियां प्राप्त हैं, मगर जिले में कलेक्टर रेट निर्धारित करने को लेकर किसी पावर अथवा प्रावधान का उल्लेख इस अधिनियम में भी नहीं है। उपनियम भी इस प्रावधान से अछूते हैं।

अधिकारियों व विशेषज्ञों की कमेटी तय करती है कलेक्टर रेट

वहीं पंजाब जमीनों के कलेक्टर रेट वैधानिक तरीके से निर्धारित करने के मामले में हरियाणा से आगे है। दिसंबर 1983 में पंजाब स्टांप (कम-मूल्यांकन दस्तावेज संबंधित) नियम बनाए गए थे, जिन्हें अगस्त 2002 में संशोधित कर कलेक्टर द्वारा भूमि व संपत्ति का न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया। नियमों में स्प्ष्ट है कि कलेक्टर रेट का निर्धारण विशेषज्ञों की समिति के साथ सलाह मशविरा लेकर किया जाएगा।

हरियाणा पर लागू नहीं होगा पंजाब का नियम

पंजाब द्वारा जमीनों के कलेक्टर रेट निर्धारित करने के नियम हरियाणा के गठन के बाद बनाए गए हैं, इसलिए इन्हें हरियाणा पर लागू नहीं माना जा सकता। हरियाणा सरकार ने हालांकि नवंबर 1978 में हरियाणा स्टांप (कम-मूल्यांकन दस्तावेज निवारण) नियम बनाए थे, परंतु उनमें पंजाब सरकार द्वारा 2002 में बनाए गए कलेक्टर रेट निर्धारण नियमों की तरह का कोई प्रावधान नहीं है। अधिवक्ता हेमंत कुमार ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री और राजस्व मंत्री समेत विभिन्न अधिकारियों को कलेक्टर रेट निर्धारित करने के नियम अधिसूचित करने के लिए पत्र लिखे हैं।


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