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    'घर में ही अधिकतर महिलाओं का उत्पीड़न, साबित करना हो जाता मुश्किल'; घरेलू हिंसा मामलों में कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

    Updated: Sat, 16 Aug 2025 04:03 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा मामलों पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालतों को शिकायत का आकलन करते समय ध्यान से देखना चाहिए क्योंकि उत्पीड़न घर के अंदर होता है। जस्टिस कीर्ति सिंह ने कहा कि प्रमाण का मानक कठोर नहीं हो सकता। कोर्ट ने आर्थिक शोषण को भी हिंसा माना है।

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    घरेलू हिंसा मामलों में कोर्ट की कड़ी टिप्पणी। सांकेतिक फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा मामलों पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में अदालतों को शिकायत का आकलन करते समय “लाइन के बीच पढ़ना” ज़रूरी है, क्योंकि अधिकतर उत्पीड़न घर की चहारदीवारी के भीतर होता है और पीड़िताओं के लिए इसे साबित करना बेहद कठिन होता है।

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    जस्टिस कीर्ति सिंह ने कहा, “घरेलू हिंसा मामलों में प्रमाण का मानक उतना कठोर नहीं हो सकता। अदालतों को सभी संभावनाओं के आधार पर यह तय करना चाहिए कि लगाए गए आरोपों में दम है या नहीं।”

    हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 घरेलू हिंसा की परिभाषा को सीमित नहीं करता, बल्कि इसमें शारीरिक, यौन, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक और यहां तक कि आर्थिक हिंसा को भी शामिल किया गया है।

    कोर्ट ने कहा कि आर्थिक शोषण का अर्थ है वैधानिक या पारंपरिक अधिकार से मिलने वाले संसाधनों से वंचित करना, चाहे वह अदालत के आदेश से देय हो या आवश्यकता से जुड़ा हो।

    जस्टिस कीर्ति सिंह ने अपने आदेश में कहा कि अधिनियम की धारा 20 के तहत पत्नी और बच्चों को भरण-पोषण व अन्य आर्थिक सहायता दिलाई जा सकती है, ताकि वे अपने जीवनस्तर के अनुरूप रह सकें।

    मामले में पति-पत्नी के वैवाहिक संबंध स्वीकार किए गए। निचली अदालतों ने पत्नी को “पीड़िता” मानते हुए भावनात्मक और आर्थिक उत्पीड़न का शिकार ठहराया।

    कोर्ट ने माना कि पति घर में रहते हुए भी पत्नी से संवाद करने या बच्चों के पालन-पोषण में रुचि नहीं लेता था। पत्नी ने स्वीकार किया कि पति ने कुछ खर्चे जैसे शिक्षा और बिजली बिल चुकाए, लेकिन इससे भावनात्मक शोषण की भरपाई नहीं होती।

    हाई कोर्ट ने कहा, पारिवारिक विवादों का सबसे अधिक बोझ बच्चों पर पड़ता है। इसलिए अदालतों को तकनीकी दृष्टिकोण से हटकर ऐसे मामलों का निपटारा इस तरह करना चाहिए कि सभी पक्षों के हित में न्याय हो।

    कोर्ट ने गुरुग्राम की अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए पत्नी और दो बेटियों के लिए मासिक भरण-पोषण एवं आवास सहायता को सही ठहराया। आदेश के तहत पत्नी और बच्चों को 40,000 रुपये मासिक आवास सहायता और बेटियों को 20,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण मिलेगा।

    हालांकि अदालत ने यह स्पष्ट किया कि बेटियों को भरण-पोषण केवल वयस्क होने तक मिलेगा। बाद में अन्य प्रविधान जैसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 और हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम के तहत राहत ले सकती हैं।