मानेसर जमीन घोटाला: हाईकोर्ट से भूपेंद्र हुड्डा को राहत नहीं, CBI कोर्ट में चलेगा ट्रायल; सुनवाई रोकने की याचिका खारिज
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने मानेसर भूमि अधिग्रहण मामले में ट्रायल स्थगित करने की मांग की थी। अदालत ने कहा कि सह-आरोपितों के खिलाफ रोक, हुड्डा के खिलाफ कार्यवाही स्थगित करने का आधार नहीं है। अब सीबीआइ की विशेष कोर्ट में हुड्डा के खिलाफ ट्रायल जारी रहेगा। सीबीआइ के अनुसार, हुड्डा ने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को लटकाए रखा था।
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मानेसर जमीन घोटाला: हाईकोर्ट से भूपेंद्र हुड्डा को राहत नहीं। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने शुक्रवार को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने मानेसर भूमि अधिग्रहण मामले में ट्रायल स्थगित करने की मांग की थी। हुड्डा ने दलील दी थी चूंकि सह-आरोपितों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल पर रोक लगाई है, इसलिए उनके खिलाफ भी सुनवाई नहीं चल सकती।
हाईकोर्ट द्वारा हुड्डा की याचिका खारिज करने के बाद अब सीबीआइ की पंचकूला स्थित विशेष कोर्ट में उनके विरुद्ध ट्रायल जारी रहेगा। जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने इस तर्क को अस्वीकार करते हुए कहा कि सह-आरोपितों के खिलाफ ट्रायल पर रोक लगना किसी याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही स्थगित करने का आधार नहीं हो सकता। भले ही सह-आरोपियों के खिलाफ ट्रायल पर रोक हो, अदालत उनके खिलाफ आरोप तय कर सकती है और साक्ष्य दर्ज कर सकती है।
हुड्डा की ओर से दलील दी गई थी कि यह मामला एक ही लेनदेन और साजिश से जुड़ा है, इसलिए ट्रायल अलग-अलग नहीं हो सकता। हुड्डा के वकीलों ने कोर्ट में कहा चूंकि सह-साजिशकर्ताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल रोका है, ऐसे में अकेले उनके खिलाफ आरोप तय नहीं किए जा सकते और न ही गवाहों के बयान दर्ज हो सकते हैं। हाई कोर्ट ने इस दलील को “निराधार और बाद में तैयार किया गया तर्क” बताया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि सह-आरोपितों के खिलाफ लंबित रोक अन्य अभियुक्तों के खिलाफ कार्यवाही में बाधा नहीं बन सकती। यदि सह-आरोपितों की अपील खारिज होती है, तो उनके खिलाफ बाद में आरोप तय किए जा सकते हैं और अगर वे स्वीकार होती हैं, तो इसका असर केवल साजिश वाले अपराध तक सीमित रहेगा। सुनवाई के दौरान सीबीआइ के वकील रवि कमल गुप्ता ने पैरवी करते हुए हुड्डा की याचिका का विरोध किया।
इस मामले में सीबीआइ की जांच के अनुसार, हुड्डा जब मुख्यमंत्री थे, तब उनके साथ तत्कालीन मुख्य सचिव, अतिरिक्त मुख्य सचिव, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के निदेशक और जिला टाउन प्लानर (मुख्यालय) ने मिलकर मानेसर क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया को जानबूझकर लटकाए रखा, ताकि निर्धारित समय में मुआवजे का ऐलान न हो सके और अधिग्रहण अपने आप रद हो जाए।
इससे पहले किसानों को सरकारी अधिग्रहण की धमकी देकर अपनी जमीन औने-पौने दामों में बेचने को मजबूर किया गया और बाद में वह जमीन निजी बिल्डरों को लाइसेंस और अनुमति देकर दी गई।
इस पूरे प्रकरण से राज्य सरकार को भारी नुकसान हुआ और निजी बिल्डरों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया। विशेष सीबीआइ जज पंचकूला ने 19 सितंबर को हुड्डा की वह याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें उन्होंने कार्यवाही स्थगित करने की मांग की थी। इसके बाद केस में धोखाधड़ी (धारा 420), जालसाजी (धारा 471), आपराधिक साजिश (धारा 120-बी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप तय करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी।
जस्टिस दहिया ने कहा कि “बीएनएसएस की धारा 346 के तहत कार्यवाही स्थगित करने का कोई आधार नहीं बनता। याचिका में कोई दम नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाता है। हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि सह-आरोपितों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की रोक का फायदा भूपेंद्र सिंह हुड्डा नहीं उठा सकते और मानेसर भूमि घोटाला मामले में ट्रायल उनके खिलाफ जारी रहेगा।
मानेसर जमीन अधिगृहण से जुड़ा मामला न्यायालय में विचाराधीन है। इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है। इस केस में पूरा न्याय होगा। इतना जरूर कहना चाहता हूं कि भाजपा सरकार ने प्रतिशोध की भावना से ऐसे मामले दर्ज कराये हैं। देश और प्रदेश की जनता सब सच्चाई जानती है। - भूपेंद्र सिंह हुड्डा, पूर्व मुख्यमंत्री एवं विपक्ष के नेता, हरियाणा

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