हरियाणा में आज भी मौजूद हैं महाभारत कालीन ये 12 शिव मंदिर, सावन में कर लिए दर्शन तो बन जाएंगे सारे काम
हरियाणा के विभिन्न जिलों में महाभारतकालीन मंदिरों में श्रद्धालुओं की गहरी आस्था है। यमुनानगर के व्यासपुर में गुप्त काल के 16 मंदिरों के अवशेष मिले हैं। किरमारा धाम में पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न कर पिंडी रूप में स्थापित किया था। थानेसर में भगवान श्रीकृष्ण एवं पांडवों ने स्थाण्वीश्वर महादेव की पूजा की। कैथल में युधिष्ठिर ने नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी।

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। हरियाणा के विभिन्न जिलों में महाभारतकालीन मंदिरों से प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी है। समय-समय पर इन मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित होते हैं और देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यमुनानगर के व्यासपुर में गुप्त काल के 16 मंदिरों के अवशेष भी मिले हैं।
प्रदेश के विभिन्न जिलों में महाभारतकालीन मंदिरों से देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। समय-समय पर इन मंदिरों में कार्यक्रम आयोजित होते हैं और देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचकर मनोकामना पूरी करते हैं। सावन के पहले सोमवार पर हम आपको प्रदेश के विभिन्न जिलों में स्थित महादेव के महाभारत कालीन एवं प्राचीन शिव मंदिरों से रिपोर्ट के माध्यम से रूबरू करवाते हैं।
किरमारा धाम: पांडवों ने भगवान शिव को प्रसन्न कर पिंडी रूप में स्थापित किया था
गांव किरमारा स्थित शिवालय शिव कामेश्वर धाम का इतिहास महाभारत कालीन है। ग्रामीण बताते हैं कि महाभारत काल में पांडवों ने अज्ञातवास दौरान यहां शिव को प्रसन्न कर पिंडी रूप में स्थापित किया था। वहीं, पुरातत्व विभाग में मंदिर का 800 साल पुराना इतिहास मिलता है।
सरपंच प्रतिनिधि टेकराम लोहचब ने बताया कि विक्रम संवत 1837 में पटियाला के महाराजा ने यहां आकर शिव पूजन किया और स्थापित मंदिर के गुंबद का निर्माण करवाया था। उन्होंने बताया कि जो व्यक्ति किरमारा धाम में सहज, सरल भाव से अपनी मनोकामना लेकर आता है, भगवान भोलेनाथ उसकी मनोकामना सहज ही पूरी कर देते हैं।
स्थाण्वीश्वर महादेव की पांडवों ने की थी पूजा
स्थाण्वीश्वर महादेव मंदिर थानेसर नगर के संरक्षक देवता भगवान शिव को समर्पित है, जिनके नाम पर थानेसर नगर का नामकरण हुआ था। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण एवं पांडवों ने यहां स्थाण्वीश्वर महादेव की पूजा कर महाभारत युद्ध में विजयी होने का वरदान प्राप्त किया था।
भूतेश्वर मंदिर: स्वयं प्रकट हुए पवित्र शिवलिंग
शहर के बीचोंबीच स्थित प्राचीन भूतेश्वर मंदिर का इतिहास महाभारत कालीन है। हालांकि, अब मंदिर भव्य रूप ले चुका है, लेकिन प्रारंभ में यहां सिर्फ शिवलिंग ही होता था। मंदिर के पुजारी मुकेश शांडिल्य के अनुसार मुगल शासनकाल में शिवलिंग का क्षति पहुंचने के प्रयास किए गए, लेकिन इसका स्वरूप बढ़ता ही गया।
यहां शिवलिंग महाभारत कालीन है। इसके प्रमाण भी मिलते हैं। इस पवित्र शिवलिंग को किसी व्यक्ति द्वारा स्थापित नहीं किया गया है, बल्कि यह स्वयं प्रकट है। ऊंचे थेह पर बने इस मंदिर का भवन इतना छोटा होता था कि एक ही व्यक्ति पूजा कर सकता था।
पिंडारा तीर्थ स्थित शिवलिंग की पांडवों ने की थी स्थापना,12 वर्ष तक रहे यहां
शहर के पूर्वी छोर पर बसे पिंडारा गांव स्थित महाभारत कालीन तीर्थ पर प्राचीन व छोटा सा शिव मंदिर है। मान्यता है कि यहां शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने की थी। महाभारत के युद्ध के बाद पांडव सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा पांडू पिंडारा में करते रहे।
पांडवों ने इस स्थान पर 12 साल बिताए। मान्यताओं के अनुसार माता कुंती के आदेश पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। वर्तमान में पांडेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। डेरा घीसा पंथी के महंत स्वामी राघवानंद ने बताया कि पांडवों ने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की थी
सूर्य कुंड मंदिर: युधिष्ठिर ने की थी नवग्रह कुंडों की स्थापना
माता गेट स्थित सूर्य कुंड मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। यह कुरुक्षेत्र की 48 कोस की परिधि में आता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार महाभारत काल में ज्येष्ठ पांडव पुत्र युधिष्ठिर ने कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी। इनमें से सबसे बड़ा कुंड माता गेट पर सूर्यकुंड के नाम से स्थापित किया गया था।
महाभारत के युद्ध के समय जो रक्तपात हुआ था, उससे भूमि की शुद्धि के लिए कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की गई थी। इनमें सूर्य कुंड कैथल के केंद्र में माता गेट पर बनाया था। इसके अलावा शहर में अलग-अलग जगहों पर शनि कुंड, शुक्र कुंड, गुरु कुंड, बुध कुंड, मंगल, राहु , केतु व चंद्र कुंड प्रमुख हैं। इस मंदिर में प्राचीन शिवलिंग स्थापित है।
श्री ग्यारह रुद्री मंदिर: श्रीकृष्ण ने महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद की थी स्थापना
कैथल शहर के चंदाना गेट स्थित श्री ग्यारह रुद्री शिव मंदिर महाभारत कालीन है। इसकी स्थापना भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद की थी। जब पांडवों ने कौरवों को हराकर विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध में मारे गए सैनिकों की आत्मा की शांति के लिए भगवान कृष्ण ने ग्यारह रुद्रों की स्थापना की थी।
स्थापना करने के बाद पांडवों से यहां पूजा-अर्चना करवाई थी। महाभारत काल में मंदिर में स्थापित किए गए ग्यारह रुद्र आज भी स्थापित हैं। यहां प्राचीन शिवलिंग है, जो हजारों वर्ष पुराना है। सावन माह में यहां हजारों की संख्या में लोग पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं।
प्राचीन श्री अंबकेश्वर मंदिर: आस्था का प्रतीक, स्वयंभू हैं मुख्य शिवलिंग
प्रताप गेट स्थित प्राचीन श्री अंबकेश्वर मंदिर में प्राचीन शिवलिंग का इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है। मान्यता है कि मंदिर में जो मुख्य शिवलिंग है, वह सीधा पाताल से प्रकट हुआ था। मंदिर के महंत प्रेमनंद ने बताया कि औरंगजेब और अकबर के काल में कुछ लोगों ने शिवलिंग को हटाने का प्रयास किया था।
हाथियों को लगाकर इसे हटाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। तब एक व्यक्ति ने शिवलिंग पर तेजधार हथियार से प्रहार कर दिया। प्रहार होते ही शिवलिंग से रक्तधारा बहने लगी, जिसे देखकर इसे तोड़ने आए लोग भाग गए।
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सीसवाल धाम में हजारों साल पुराना है चार फीट ऊंचा शिवलिंग
हिसार के मंडी आदमपुर के गांव सीसवाल में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। करीब 750 वर्ष प्राचीन ऐतिहासिक सीसवाल धाम जल्द ही गुजरात के कोटेश्वर महादेव मंदिर के स्वरूप में नजर आएगा। धाम में महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर है, जो समाज के लिए एक धरोहर है।
प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने महाभारत काल के दौरान की थी। मंदिर का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व इस तथ्य से साफ हो जाता है कि पुरातत्व विभाग के पास इस मंदिर का पिछले करीब 750 वर्षों का रिकॉर्ड उपलब्ध है। बताया जाता है कि इससे पूर्व का रिकॉर्ड स्वतंत्रता आंदोलन में जल गया था।
ऐतिहासिक व आध्यात्मिक महत्व है आदिबद्री मंदिर का
व्यासपुर खंड में स्थित आदिबद्री मंदिर का आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। यहां सरस्वती नदी का उद्गम स्थल है। आदिबद्री को भगवान विष्णु का निवास माना जाता है। यहां छटी और नौवीं शताब्दी के बीच के गुप्त काल के 16 मंदिरों के अवशेष भी मिले हैं।
मान्यता है कि ऋषि वेद व्यास ने महाभारत की रचना यहीं की थी और पांडवों ने भी वनवास का कुछ समय यहां बिताया था। यहां बौद्ध स्तूपों व मठों के लगभग 1500-2000 साल पुराने अवशेष मिले हैं।
कालेश्वर महादेव मठ: शिलाओं पर प्राचीनकाल की भाषा
शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में यमुना नदी किनारे स्थित मंदिर कालेश्वर महादेव मठ के नाम से प्रसिद्ध है। जहां अति प्राचीन स्वयंभू शिवलिंग हैं। मंदिर महाभारत कालीन बताया जाता है।
यहां खोदाई में निकले पत्थर शिलाओं पर प्राचीनकाल की संस्कृति में सांकेतिक भाषाएं लिखी हैं। यहां गुरु द्रोणाचार्य ने पांडवों को शस्त्रों का ज्ञान दिया था। मान्यता है कि शिवलिंग के मूल में ब्रह्मा जी की नाभि, मध्य में विष्णु जी का चक्र और ऊपर भगवान शिव विराजमान हैं।
पातालेश्वर महादेव मंदिर: यहां से रास्ता स्वर्ग को जाता है
बूड़िया क्षेत्र के गांव दयालगढ़ में पतालेश्वर महादेव मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग आस्था का केंद्र है। यहां पूरा वर्ष श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। क्षेत्र ही नहीं दूसरे राज्यों से श्रद्धालु यहां पूजा करने आते हैं।
मंदिर में स्थित बावड़ी प्राचीन व ऐतिहासिक है। मान्यता है कि यहां से रास्ता पाताल से होते हुए स्वर्ग को जाता है। इन्हीं रहस्यों से मंदिर का नाम पातालेश्वर मंदिर पड़ा है। यह मंदिर महाभारत काल से भी प्राचीन बताया जाता है।
भटली मंदिर में पांडवों ने की थी पूजा
जगाधरी-अंबाला रोड पर गांव भटौली में स्थित मंदिर को शिव मंदिर भटली के नाम से जाना जाता है। जिसमें स्वयंभू शिवलिंग हैं। जो सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक है।
महाशिवरात्रि के दौरान यहां बड़ा मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करने आते हैं। मान्यता है कि पांडवों ने भी अपने अज्ञातवास के दौरान इसी मंदिर में पूजा की थी।
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