पंजाब की भूल से हरियाणा में सबक, हुड्डा को कांग्रेस हाईकमान 'फ्रीहैंड' देने के मूड में, मिलेगी पूरी ताकत
Haryana Congress कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में हुई भूल से हरियाणा में सबक लिया है। पार्टी आलाकमान कैप्टन अमरिंदर सिंह वाला एपिसोड हरियाणा में दोहराने से बचने के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को राज्य संगठन में फ्रीहैंड देने की तैयारी में है।

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Haryana Congress: लगता है कि कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब की 'भूल' से हरियाणा में सबक लिया है। दरअसल पार्टी आलाकमान कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा एपिसोड नहीं दोहराना चाहता है। यही कारण है कि पार्टी हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को 'फ्रीहैंड' देने के मूड में है।
कांग्रेस हाईकमान के साथ आज होने वाली मीटिंग पर टिकी निगाहें
ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ हरियाणा कांग्रेस के नेताओं की आज होने जारी बैठक के बाद पार्टी का चेहरा-मेहरा बदला नजर आ सकता है। असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं की बढ़ती गतिविधियों और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अनदेखी से हुए नुकसान के बाद हाईकान हरियाणा को लेकर किसी तरह का रिस्क लेने के मूड में नजर नहीं आ रहा है।
जी-23 के नाम से चर्चित पार्टी के असंतुष्ट नेताओं और हाईकमान के बीच दूरियां खत्म कराने का प्रयास कर रहे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हाईकमान हरियाणा में बड़ी जिम्मेदारी दे सकता है। इस बात की संभावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि हुड्डा को राज्य में अपने हिसाब से फिल्डिंग जमाने के लिए पावर दे दी जाए।
हुड्डा को सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट कराने की कोशिश करेंगे समर्थक
हरियाणा में कांग्रेस लंबे समय से खेमों में बंटी हुई है। पिछले आठ साल से राज्य में ब्लाक, जिला और प्रदेश स्तर का संगठन नहीं बन पाया है। कुमारी सैलजा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि राज्य में संगठन तैयार हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। प्रदेश के कांग्रेसियों को एकजुट करने व संगठन तैयार कराने में नाकाम हो चुके प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल ने इसकी जिम्मेदारी खुद पर लेकर हाईकमान को पूरी रिपोर्ट सौंप दी है।
दिल्ली के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से हाईकमान ने विवेक बंसल की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया है। विवेक बंसल ने हाईकमान से कहा है कि राज्य में एक मजबूत नेतृत्व उभारने के साथ ही संगठन तैयार होना बेहद जरूरी है।
कांग्रेस के पास राज्य में 31 विधायक हैं, जिनमें 26 हुड्डा समर्थक हैं। बताया जाता है कि आज की बैठक में राहुल गांधी राज्य के सभी नेताओं से आपसी मतभेद भुलाकर काम करने का आग्रह करेंगे। इस बैठक में बनने वाली सहमति अलग है, लेकिन हुड्डा खेमे की अपनी रणनीति तय हो चुकी है। चर्चा के विपरीत हुड्डा कांग्रेस विधायक दल के नेता बने रहना चाहेंगे।
इसके साथ ही हुड्डा समर्थकों की कोशिश रहेगी कि उन्हें समय रहते हरियाणा में सीएम चेहरा प्रोजेक्ट कर दिया जाए। 1986 के बाद हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर जो भी नेता काबिज हुआ, वह कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। इसलिए हुड्डा अपने किसी बेहद भरोसेमंद साथी को प्रदेश अध्यक्ष बनवाने की कोशिश करेंगे।
राज्य में जाट 27 प्रतिशत, दलित 17 प्रतिशत और ब्राह्रण 10 से 12 प्रतिशत हैं। हुड्डा स्वयं जाट हैं, इसलिए अध्यक्ष के पद पर किसी दलित और कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर किसी ब्राह्मण नेता को काबिज करा सकते हैं। दलित चेहरे के रूप में हुड्डा के पास गीता भुक्कल और शकुंतला खटक मजबूत दावेदार हैं, लेकिन हुड्डा के हिसाब से काम करने में फूलचंद मुलाना पूरी तरह से फिट बैठते हैं।
किसी वैश्य समुदाय के नेता को यदि प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात हुई को पूर्व मंत्री सावित्री जिंदल हुड्डा खेमे की पहली सर्वमान्य पसंद रहेंगी। ब्राह्मण नेताओं में हुड्डा के पास कुलदीप शर्मा, नीरज शर्मा, कुलदीप वत्स और जितेंद्र भारद्वाज बड़े चेहरे हैं, लेकिन उनके सबसे भरोसेमंद जितेंद्र भारद्वाज और नीरज शर्मा हो सकते हैं।
अपने लिए कोई परेशानी नहीं आने देंगे हुड्डा
हुड्डा अहम पदों पर ऐसे किसी नेता को काबिज कराने की गलती नहीं करेंगे, जिनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बाद में उनके खुद के लिए परेशानी का कारण बन जाए। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के साथ कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष का फार्मूला सेट कर वंचित नेताओं को एडजेस्ट किया जा सकता है। ठाकुरों में भिवानी के संदीप सिंह, यादवों में राव दान सिंह और राव नरेंद्र, मुस्लिमों में आफताब अहमद तथा गुर्जरों में धर्म सिंह छौकर के विकल्प हुड्डा के पास मौजूद हैं।
राव दान सिंह और राव नरेंद्र को राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का नेता कहा जा सकता है। कैप्टन अजय यादव इस पैमाने पर हुड्डा खेमे में एडजेस्ट नहीं हो सकते। इसके अलावा, पार्टी बड़े नेताओं का संतुलन साधने के लिए सैलजा, कुलदीप और किरण को अन्य पदों पर एडजेस्ट कर सकती है। रणदीप सुरजेवाला पहले ही हाईकमान की गुडबुक में हैं। अपने बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा को राज्य के संगठन में कोई जिम्मेदारी दिलाकर हुड्डा पार्टी पर पूरी तरह से काबिज होने के आरोप अपने सिर पर बिल्कुल भी नहीं लेंगे।
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