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    मोरनी हिल्स जैसे संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र में उदासीनता अस्वीकार्य, हाईकोर्ट ने क्यों कहा ऐसा, पढ़िये पूरा मामला

    Updated: Sun, 21 Sep 2025 06:58 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मोरनी पहाड़ियों के वन क्षेत्र के सीमा निर्धारण के लिए अतिरिक्त अधिकारियों की नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने हरियाणा सरकार से इस कदम का कारण स्पष्ट करने को कहा है क्योंकि मोरनी हिल्स ट्राईसिटी के लिए महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा कि मोरनी हिल्स जैसे संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र में किसी भी प्रकार की उदासीनता अस्वीकार्य है।

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    हाईकोर्ट ने कहा कि मोरनी हिल्स ट्राईसिटी का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद अहम।

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट मोरनी पहाड़ियों के वन क्षेत्र के सीमा निर्धारण और लोगों के अधिकारों के निपटान के लिए वन निपटान अधिकारी (एफएसओ) के अतिरिक्त दो और अधिकारियों की नियुक्ति के निर्णय पर सवाल उठाया है। कोर्ट ने हरियाणा सरकार से इस कदम के पीछे के कारणों को स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। 

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    कोर्ट ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि मोरनी हिल्स ट्राईसिटी के फेफड़े हैं और यहां किसी भी प्रकार की राजनीतिक या प्रशासनिक लापरवाही या टालमटोल बर्दाश्त नहीं की जाएगी। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से आगाह किया कि मोरनी हिल्स जैसे संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र में किसी भी प्रकार की उदासीनता अस्वीकार्य है। मोरनी हिल्स ट्राईसिटी का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद अहम है और यहां की हरियाली व जैव विविधता पूरे क्षेत्र के पर्यावरण के लिए जीवनदायी है। 

    चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमित गोयल की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि हमें समझ नहीं आ रहा कि 2018 में पहले से नियुक्त वन निपटान अधिकारी को भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अध्याय II के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने देने के बजाय तीन सदस्यीय निकाय की आवश्यकता क्यों पड़ी। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि अतिरिक्त उपायुक्त, पंचकूला और जिला राजस्व अधिकारी, पंचकूला को तीन सदस्यीय निकाय में शामिल करने से एफएसओ के काम में बाधा उत्पन्न होगी, क्योंकि ये अधिकारी अपने मूल कार्यों में व्यस्त रहते हैं।

    खंडपीठ ने हरियाणा सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव को एक हलफनामा दायर कर 1927 के अधिनियम की धारा 4(3) के तहत तीन सदस्यीय निकाय गठन के कारणों का खुलासा करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी।

    याचिकाकर्ता बोला- सरकार का कदम मामले को और उलझाने वाला 

    याचिकाकर्ता के वकील संदीप सिंह सांगवान ने तर्क दिया कि नए सदस्यों को शामिल करने से मोरनी हिल्स से जुड़े विवादों के निपटारे की गति धीमी पड़ जाएगी। उनका कहना था कि यह कदम मामले को और उलझाने वाला है, न कि सुलझाने वाला। इससे पहले जून 2025 में पारित अपने आदेश में हाईकोर्ट ने एफएसओ को तत्काल कदम उठाकर अपनी रिपोर्ट शीघ्र प्रस्तुत करने और राज्य सरकार को 31 दिसंबर तक भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 20 के तहत भूमि को आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित करने का निर्देश दिया था।

    गैर-वन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध का भी आदेश

    हाईकोर्ट ने मोरनी पहाड़ियों में इस प्रक्रिया के पूरा होने तक सभी गैर-वन गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध का भी आदेश दिया था। इस मामले में याचिकाकर्ता विजय ने जनहित याचिका दाखिल कर मोरनी हिल्स क्षेत्र की राजस्व और वन सीमाओं का स्पष्ट सीमांकन करने की मांग की थी। दावा किया गया कि क्षेत्र के पारंपरिक वनवासी वर्षों से अधिकारों से वंचित हैं। याचिका के अनुसार सरकार ने न तो सीमांकन की प्रक्रिया पूरी की और न ही आरक्षित वन की अंतिम अधिसूचना जारी की।