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    पोल्ट्री फार्मों में क्रूरता की हदें पार, ग्राइंडर में पीसे जा रहे नर चूजे

    By Kamlesh BhattEdited By:
    Updated: Fri, 21 Jul 2017 03:34 PM (IST)

    देश में तिल-तिल 220 मिलियन मुर्गे-मुर्गियां और चूजे तिल-तिल मरने को मजबूर हैं। पोल्ट्री फार्मों में नर चूजों ग्राइंडर में पीसकर मुर्गियों को खिलाया जाता है।

    पोल्ट्री फार्मों में क्रूरता की हदें पार, ग्राइंडर में पीसे जा रहे नर चूजे

    चंडीगढ़ [सुधीर तंवर]। इनकी जिंदगी पिंजरों में शुरू होती है और पिंजरों में ही दम तोड़ जाती है। एक छोटा सा पिंजरा मुर्गियों से ठसाठस भरा। चोंच तोड़न से कराहते मासूम चूजे। पिंजरों में पंख खोलने तक की जगह नहीं। चारों तरफ फैली तीखी दुर्गंध के बीच भिनभिनाती मक्खियां और पलायन को मजबूर आसपास के गांवों के लोग।

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    यह तस्वीर है हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश के अधिकतर राज्यों की, जहां पोल्ट्री फार्मों में पशु क्रूरता की तमाम हदें पार की जा रही हैं। इस अमानवीय कृत्य को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद पशु कल्याण बोर्ड ने वर्ष 2010 और 2013 में कई अहम सिफारिशें केंद्र और राज्य सरकारों के समक्ष की, लेकिन कहीं इन पर अमल नहीं हुआ। देश भर में करीब 220 मिलियन (एक मिलियन बराबर 1,000,000 यानी दस लाख) मुर्गे-मुर्गियां और चूजे रोज तिल-तिल मरने को मजबूर हैं।

    अंडे देने वाली पांच-छह मुर्गियों को तार के छोटे-छोटे पिंजरों में रखा जाता है, जिनकी दीवारों से टकराकर ये जख्मी होती रहती हैं। चूजों को सेते समय पता लगा लिया जाता है कि कौन नर है और कौन मादा। इसके बाद नर चूजों को एक बैग में डाल दिया जाता है, जिससे इनकी मौत हो जाती है। मरे चूजों को ग्राइंडर में पीसकर इनका मांस मुर्गियों को खिलाया जाता है।

    तर्क यह कि इससे मुर्गियों में प्रोटीन सहित अन्य पोषक तत्वों की कमी पूरी होती है। बेहद प्रतिकूल माहौल में इन मुर्गियों को जिंदा रखने के लिए हर दिन एंटीबायोटिक्स की डोज दी जाती है जिनके अंडों के सेवन से मानवीय जीवन पर भी बुरे प्रभाव पडऩे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। पूरी दुनिया में एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल में भारत दूसरे स्थान पर पहुंच गया है।

    कृत्रिम गर्भाधान का अमानवीय तरीका

    नर और मादा मुर्गियों को पिंजरों में अलग-अलग रखा जाता है। मुर्गों के जननांग से शुक्राणु निकाल कर इन्हें मुर्गियों के जननांगों में डाला जाता है। इसकी पूरी प्रक्रिया बेहद पीड़ादायक है। इसके बाद निषेचित अंडे को हैचरी में सेने की प्रक्रिया शुरू होती है। फार्मों में करीब 20 हजार से डेढ़ लाख तक मुर्गियां होती हैं जिनका जीवन काल करीब दो साल का होता है। ए-4 साइज के करीब 67 इंच के पिंजरे में पांच-छह मुर्गियां रखी जाती हैं, वहीं इससे कुछ बड़े पिंजरों में चूजों की संख्या एक दर्जन के पार हो जाती है। जन्म के दूसरे-तीसरे दिन ही चूजों की चोंच को काट दिया जाता है ताकि वे एक-दूसरे को नुकसान नहीं पहुंचा सकें।

    प्रतिबंध के बावजूद बैटरी पिंजरों का उपयोग

    अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका के अधिकतर देशों में बैटरी पिंजरे बीते जमाने की बात हो चुके हैं। हमारे देश में भी इन पिंजरों को अमानवीय बताते हुए इन पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। इसके बावजूद ज्यादातर राज्यों में इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। इसी तरह मुर्गी पर होने वाली क्रूरता और पोल्ट्री फार्म के आसपास फैले प्रदूषण को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइंस का कहीं पालन होता नहीं दिखता।

    मुर्गों को ओवरडोज

    मुर्गी पालन तीन चरणों में होता है। अंडे के लिए मुर्गियां, मांस के लिए मुर्गे और हैचरी में बच्चे। मुर्गों का वजन तेजी से डेढ़ किलोग्राम तक ले जाने के लिए उन्हें ओवरडोज दी जाती है और 40 दिन बाद इन्हें कटने के लिए भेज दिया जाता है। वहीं, मुर्गियों की अंडा उत्पादन क्षमता धीमी होने पर इनका उपयोग भी मांस के लिए होता है।

    पशुपालन विभाग ने मूंदी आंखें

    पंचकूला के बरवाला निवासी महेंद्र सिंह कहते हैं कि कस्बे के 25 किलोमीटर क्षेत्र में ही करीब 150 मुर्गी फार्म हैं। इनमें उठती दुर्गंध के कारण आसपास के ग्रामीणों का जीना मुहाल हो गया है। पशु पालन विभाग के अधिकारियों ने भी आंखें मूंद रखी हैं जिस कारण नियमों की किसी को परवाह नहीं। करनाल के रसूलपुर निवासी रमेश ने बताया कि पोल्ट्री फार्मों के कारण मक्खियों की भरमार और उससे होने वाली बीमारियों से कई ग्रामीणों को पलायन करना पड़ा। लाख प्रयासों के बावजूद स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं आया है।

    प्रताड़ना के खिलाफ जुटे दिग्गज वकील

    पोल्ट्री फार्मों में बेजुबानों पर अत्याचार के खिलाफ देश के जाने-माने वकील उतर आए हैं। सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता अंबिका पीपुल्स फॉर एनीमल और पशु कल्याण बोर्ड के साथ जुड़कर हरियाणा, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में रिसर्च कर रही हैं ताकि स्थिति में सुधार लाया जा सके। तीन साल पूर्व संस्था ने विभिन्न अदालतों में चार केस फाइल किए।

    पिछले साल से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल, आर्यम सुंदरम, सिद्धार्थ लूथरा सिस्टम को सुधारने और कड़े नियम बनाने की पैरवी कर रहे हैं। यहां तक कि वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और डॉ. मनु अभिषेक सिंघवी भी खुद ही अभियान से जुड़ गए। इन सभी वकीलों ने पैरवी के लिए कोई पैसा तक नहीं लिया है।

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