'ईमानदारी पर उंगली उठे तो शासन को खतरा...', जींद पुलिसकर्मी की जबरन सेवानिवृत्ति पर हाईकोर्ट का अहम फैसला
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस के एक कर्मचारी को जबरन सेवानिवृत्ति देने के आदेश को सही ठहराया है। अदालत ने कहा कि जिस अधिकारी की ईमानदारी ...और पढ़ें

55 की उम्र में पुलिस कर्मचारी को सेवा से बाहर करने का हरियाणा सरकार का फैसला बरकरार।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा पुलिस जींद के एक कर्मचारी को जबरन सेवानिवृत्ति के आदेश को पूरी तरह सही ठहराते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि 'जिस अधिकारी की ईमानदारी पर ऊपरी अधिकारी उंगली उठा दें, उसे सरकारी तंत्र में बनाए रखना, पूरी प्रशासनिक मशीनरी की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगा देता है।'
याची कर्मचारी ने हरियाणा पुलिस में 1988 में कांस्टेबल के रूप में कदम रखा था। लगभग 37 वर्षों की सेवा के दौरान उन्होंने कई पदोन्नति हासिल की, मगर अनुशासनहीनता, लापरवाही और कार्य में कोताही के आरोप उनकी फाइल से कभी मिट न सके।
17 नवंबर 2025 को पुलिस विभाग ने उन्हें 55 वर्ष पूरे होने पर रूल 9.18 (1)(सी), पंजाब पुलिस रूल्स के तहत अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया। इससे पहले अगस्त में नोटिस भेजा गया था। इसके खिलाफ दायर याचिका में कर्मचारी ने कहा कि विभागीय जांच में अधिकतम सजा चार वेतन वृद्धि रोकने तक सीमित रहीस उसने एसीआर में दिए गए नकारात्मक टिप्पणियों को चुनौती दी व कहा कि फिर भी रिटायरमेंट का आदेश देना मनमाना और दंडात्मक कदम है।
उनका कहना था कि यह फैसला सेवा नियमों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। इस पर सरकार की तरफ से कहा गया कि उसके काम में बार-बार लापरवाही, कई बार गैरहाजिरी, इंटेग्रिटी संदिग्ध है। हरियाणा सरकार के वकील ने रिकॉर्ड पेश करते हुए बताया कि बार-बार लापरवाही, अनुशासनहीनता और लगातार गैरहाजिरी से विभाग बुरी तरह परेशान था।
एसीआर में इंटेग्रिटी को ‘अविश्वसनीय’ दर्ज किया गया था और यही सरकारी निर्देशों के अनुसार अनिवार्य सेवानिवृत्ति का सबसे महत्वपूर्ण आधार है। सुनवाई के दौरान राज्य ने मूल फाइल कोर्ट में पेश की। इस पर जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा कि रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि कर्मचारी की पूरी सेवा दंडात्मक कार्रवाई और एसीआर की समीक्षा करने के बाद ही निर्णय लिया गया। इस आदेश में कोई दुर्भावना या व्यक्तिगत शत्रुता का आरोप साबित नहीं होता।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि सरकारी सेवा में 'डेड वुड' हटाना जरूरी है व अनिवार्य सेवानिवृत्ति कोई सजा नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुधार का उपाय है। हाई कोर्ट ने माना कि इस मामले में पुलिस विभाग ने ठीक इसी सिद्धांत के अनुरूप कार्रवाई की। इसी के साथ कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।

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