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    'प्रधान पति' की संस्कृति पर मानवाधिकार आयोग सख्त, महिलाओं की जगह पति, भाई और बेटा नहीं ले सकते फैसले

    Updated: Sat, 13 Dec 2025 05:05 PM (IST)

    राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने पंचायतों और स्थानीय निकायों में महिला प्रतिनिधियों की जगह पुरुष रिश्तेदारों द्वारा 'चौधर' चलाने पर संज्ञान लिया है। आयोग ...और पढ़ें

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    'प्रधान पति' की संस्कृति पर मानवाधिकार आयोग सख्त। सांकेतिक फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। अधिकतर पंचायतों और स्थानीय निकायों में महिला प्रतिनिधियों की जगह पुरुष रिश्तेदार 'चौधर' चलाते हैं। विकास कार्यों से लेकर बैठकों तक में महिलाओं की जगह पति, भाई या बेटा सहित अन्य पुरुष प्रतिनिधि फैसले ले रहे हैं, जिस पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है।

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    'प्रधान पति' की संस्कृति पर नाराजगी जताते हुए आयोग ने सभी राज्यों के पंचायत एवं स्थानीय विभागों के प्रधान सचिवों को समन जारी किया है। 22 दिसंबर तक रिपोर्ट जमा नहीं की तो अतिरिक्त प्रधान सचिवों को 30 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ेगा।

    आयोग ने यह कदम हरियाणा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व सदस्य सुशील वर्मा की शिकायत पर उठाया है।

    आरोप है कि देशभर में अधिकतर स्थानों पर निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति अथवा अन्य पुरुष रिश्तेदार वास्तविक सत्ता का प्रयोग कर रहे हैं, जोकि संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध है।

    यह प्रथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी असंवैधानिक करार दी जा चुकी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रियांक कानूनगो की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने जांच में पाया कि यह प्रथा अनुच्छेद 14, 15(3) और 21 के तहत प्रदत्त समानता, गरिमा और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। यह 73वें एवं 74वें संविधान संशोधनों की भावना के विपरीत है, जिनका उद्देश्य महिलाओं को वास्तविक सशक्तीकरण प्रदान करना है।

    ऐसे कृत्य भारतीय न्याय संहिता 2023 के अंतर्गत आपराधिक दायित्व को भी जन्म दे सकते हैं। आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पंचायती राज विभाग एवं शहरी स्थानीय निकाय विभाग के प्रधान सचिवों से इस विषय पर कार्यवाही रिपोर्ट मांगी थी।

    आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड तथा उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों को छोड़कर अधिकतर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कोई संतोषजनक जवाब प्राप्त नहीं हुआ है। इस गंभीर लापरवाही को देखते हुए आयोग ने सभी प्रमुख सचिवों को 30 दिसंबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने हेतु सशर्त समन जारी किए हैं।

    हालांकि यदि 22 दिसंबर तक विस्तृत कार्यवाही रिपोर्ट आयोग को प्राप्त हो जाती है तो व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जा सकती है। अन्यथा अनुपालन न करने पर वारंट भी जारी किया जा सकता है।

    प्राक्सी शासन लोकतंत्र पर सीधा प्रहार

    आयोग ने दोटूक कहा है कि महिला आरक्षण का उद्देश्य केवल प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि वास्तविक नेतृत्व और निर्णयकारी भूमिका सुनिश्चित करना है। किसी भी प्रकार का प्राक्सी शासन लोकतंत्र पर सीधा प्रहार है।

    महिलाओं के लिए आरक्षित पदों पर किसी भी प्रकार का प्राक्सी प्रतिनिधित्व, चाहे वह ‘सरपंच पति’ या ‘प्रधान पति’ के रूप में हो या किसी अन्य अनौपचारिक माध्यम से, संविधान की मूल भावना के विपरीत है।

    लोकतंत्र में निर्वाचित महिला प्रतिनिधि ही अपने पद की वैधानिक, प्रशासनिक और निर्णयकारी अधिकारिता की वास्तविक धारक हैं।