शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने के आरोपी को हाई कोर्ट ने दी जमानत, कहा- दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध थे
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म के आरोपी को जमानत दी। अदालत ने पीड़िता और आरोपी के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध को ध्यान में रखा। महिला ने आरोपी के प्रति दीवानगी जताई थी और उसे किसी और से शादी न करने देने की धमकी दी थी। महिला ने शादी का वादा टूटने पर गर्भपात होने का आरोप लगाया था।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने के आरोपित व्यक्ति को जमानत प्रदान कर दी, क्योंकि पीडि़ता और आरोपित के बीच लंबे समय से सौहार्दपूर्ण संबंध थे और इस संबंध में कोई शर्त नहीं होने की संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता। आरोपित और महिला के बीच हुई बातचीत की प्रतिलिपि को पढ़ते हुए जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने यह फैसला सुनाया।
अदालत ने लिखित बातचीत से यह भी पाया कि शिकायतकर्ता ने आरोपित के प्रति अपनी दीवानगी व्यक्त की है और धमकी दी है कि जब तक वह स्वयं किसी और से शादी नहीं कर लेती और अपना जीवन नहीं बसा लेती, तब तक वह उसे किसी और से शादी नहीं करने देगी।
प्रतिलेख में आगे बताया गया कि उसे पता था कि याचिकाकर्ता पिछले 12 वर्षों से किसी अन्य लडक़ी के साथ संबंध में है और वह उक्त लडक़ी के साथ वैवाहिक संबंध बनाने पर विचार कर रहा था। उसने याचिकाकर्ता को उक्त लडक़ी के सामने उजागर करने की धमकी भी दी थी।
शिकायत के अनुसार, महिला और आरोपित गुरुग्राम स्थित एक कंपनी में वरिष्ठ कर्मचारी के रूप में काम करते हैं। यह आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने उसे विश्वास दिलाया कि वह उससे शादी करेगा और उसके बाद वे लगभग 2-3 महीने तक एक-दूसरे के साथ प्रेम-संबंध बनाते रहे और कई अवसरों पर शारीरिक संबंध भी बनाए। शिकायतकर्ता ने यह भी कहा कि वह गर्भवती हो गई और जब उसने आरोपित से शादी के लिए कहा तो उसने इनकार कर दिया। कथित तौर पर तनाव के कारण शिकायतकर्ता का गर्भपात हो गया।
प्रस्तुतियां सुनने के बाद न्यायालय ने अभियुक्त और अभियोक्ता के बीच वाट्सएप चैट की प्रतिलिपि से नोट किया कि शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया याचिका के सुझाव को बल और ताकत देते हैं कि इसमें स्वतंत्र इच्छा का तत्व था और कोई प्रतिबद्धता नहीं थी।
न्यायालय ने कहा कि शिकायतकर्ता के याचिकाकर्ता के साथ संबंध के परिणामस्वरूप गर्भवती होने का आरोप प्रथम दृष्टया स्वीकार कर लिया जाता है, फिर भी यह विवादित नहीं है कि भ्रूण के समापन में याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं थी। जैसा भी हो, गर्भावस्था अधिक से अधिक पक्षों के बीच शारीरिक अंतरंगता का सबूत हो सकती है, जिस तथ्य को याचिकाकर्ता द्वारा विवादित या अस्वीकार नहीं किया गया है।
जस्टिस भारद्वाज ने इस बात पर प्रकाश डाला कि इस मामले में अपराध शारीरिक अंतरंगता के कारण नहीं है, बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि क्या विवाह करने के धोखे से यौन संबंध बनाए गए थे या नहीं। इसलिए, अपराध के घटक को स्थापित करने की आवश्यकता पक्षों के बीच संबंध से पहले होनी चाहिए।
वर्तमान मामले में जांच पहले ही पूरी हो चुकी है और आरोप-पत्र दायर किया जा चुका है। यह देखते हुए कि मामला आरोप तय करने के लिए तय है और इसे अंतिम रूप से पूरा होने में लंबा समय लगेगा, अदालत ने जमानत याचिका को मंजूरी दे दी।
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