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    हरियाणा: मुकदमे के दौरान भी सुलह की अनुमति, चेक बाउंस मामले में हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

    Updated: Sat, 04 Oct 2025 05:29 PM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि चेक बाउंस का मामला मुकदमे के किसी भी स्तर पर सुलझाया जा सकता है भले ही मजिस्ट्रेट और सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई हो। जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि नए न्याय संहिता और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार यदि विवाद निजी है और दोनों पक्ष सहमत हैं तो हाईकोर्ट सजा रद्द कर सकता है।

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    चेक बाउंस से जुड़े मामलों में किसी भी चरण पर सुलह-सफाई संभव। सांकेतिक फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि चेक बाउंस से जुड़ा अपराध (धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम) मुकदमेबाजी के किसी भी चरण पर सुलह-सफाई (कंपाउंड) में तबदील किया जा सकता है।

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    यह अधिकार तब भी लागू रहेगा, जब आरोपित को मजिस्ट्रेट दोषी ठहरा चुका हो और उसकी अपील सेशन कोर्ट द्वारा भी खारिज कर दी गई हो।

    जस्टिस सुमित गोयल ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय न्याय संहिता के नये प्रविधानों और सर्वोच्च न्यायालय के स्थापित फैसलों के आलोक में हाई कोर्ट के पास पूर्ण अधिकार है कि वह ऐसे मामलों में सजा को रद कर सके, जहां विवाद मूल रूप से निजी प्रकृति का हो और दोनों पक्ष आपसी समझौते पर पहुंच गए हों।

    हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 359 बीएनएनएस, धारा 147 परक्राम्य लिखत अधिनियम और धारा 528 बीएनएनएस को साथ पढ़ने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि चेक बाउंस का मामला मुकदमे की हर अवस्था में सुलह योग्य है।

    कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की अंतर्निहित शक्तियां केवल प्रक्रियात्मक नहीं बल्कि न्याय की रक्षा और दुरुपयोग रोकने के लिए उसकी असल आत्मा हैं। जस्टिस गोयल ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट का दायित्व है कि वह ऐसे हालात में हस्तक्षेप करे, जहां कानून की धारा स्पष्ट रूप से समाधान न देती हो।

    कोर्ट ने कहा कि न्यायालय का अस्तित्व न्याय की निरंतरता और अन्याय को रोकने के लिए है। इसलिए उसके पास असीमित शक्तियां होनी चाहिएं, ताकि न्याय से कोई समझौता न हो। हाईकोर्ट का यह आदेश उस याचिका पर आया, जिसमें गुरुग्राम की अदालत ने जुलाई 2022 में आरोपित को दोषी ठहराया था और जून में सेशन कोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी थी।

    हालांकि, हाई कोर्ट में लंबित पुनरीक्षण याचिका के दौरान दोनों पक्ष समझौते पर पहुंच गए। समझौते को देखते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि मामले की कार्यवाही जारी रखने का अब कोई औचित्य नहीं बचता। कोर्ट ने आरोपित को बरी करते हुए कहा कि सुलह के आलोक में अपराध को कंपाउंड करना ही न्यायसंगत होगा।