शिक्षा के व्यापारीकरण पर हाईकोर्ट चिंतित, डिस्टेंस एजुकेशन सेंटरों पर तत्काल रोक लगाने के आदेश
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने शिक्षा व्यवस्था के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने अवैध शैक्षणिक संस्थानों और नियामक संस्थाओं की लापरवाही पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने शिक्षा के व्यापारीकरण पर चिंता जताते हुए सख्त निगरानी की जरूरत बताई है। बिना स्वीकृति वाले डिस्टेंस एजुकेशन सेंटरों पर रोक लगाने और तकनीकी शिक्षा में व्यावहारिक प्रशिक्षण के महत्व पर भी जोर दिया गया है।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। देश में शिक्षा व्यवस्था और नियमन के गिरते स्तर पर गंभीर चिंता जताते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अवैध और अनियंत्रित रूप से संचालित हो रहे शैक्षणिक संस्थानों पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि ऐसे संस्थान उन युवाओं की मजबूरी का फायदा उठा रहे हैं, जो सरकारी नौकरी पाने की उम्मीद में किसी भी कीमत पर डिग्री हासिल करना चाहते हैं।
जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ की एकल पीठ ने अवैध शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि शिक्षा नियामक संस्थान न्यूनतम शैक्षणिक मानकों को लागू करने में विफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि अदालतों और नियामक निकायों को बार-बार दिए गए निर्देशों के बावजूद इन संस्थाओं ने अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाने में असफलता दिखाती है।
कोर्ट ने कहा कि नियामक संस्थाओं की लापरवाही ने न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, बल्कि विद्यार्थियों के भविष्य और जनहित को भी खतरे में डाल दिया है। पीठ ने शिक्षा के व्यापारीकरण पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि जब व्यावसायिक हित शैक्षणिक मानकों पर हावी हो रहे हों, तब अदालत मूकदर्शक नहीं रह सकती। कोर्ट ने कहा कि अगर नियामक संस्थाएं समय पर और ईमानदारी से कार्रवाई नहीं करतीं, तो पूरा शिक्षा तंत्र अपनी विश्वसनीयता खो देगा।
अदालत ने स्पष्ट किया कि अब समय आ गया है कि अधिकारी “प्रोएक्टिव और पारदर्शी निगरानी तंत्र” अपनाएं, ताकि केवल वही संस्थान संचालित हों जो वास्तव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। साथ ही कोर्ट ने चेतावनी दी कि आगे की लापरवाही उन लोगों को प्रोत्साहित करेगी जो शिक्षा प्रणाली का दुरुपयोग कर रहे हैं, जिससे संविधान द्वारा सुनिश्चित समान अवसर का सिद्धांत कमजोर हो जाएगा।
हाई कोर्ट ने बिना स्वीकृति वाले डिस्टेंस एजुकेशन सेंटरों पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि ऐसे अनधिकृत केंद्रों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण जरूरी है, ताकि विद्यार्थी धोखाधड़ी का शिकार न हों। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इंजीनियरिंग जैसे तकनीकी पाठ्यक्रमों में केवल सैद्धांतिक ज्ञान पर्याप्त नहीं है, बल्कि व्यावहारिक प्रशिक्षण इनकी रीढ़ है।
जस्टिस बराड़ ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि व्यावहारिक सत्रों को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से बदला नहीं जा सकता। सैद्धांतिक शिक्षा को प्रयोगात्मक कक्षाओं से सुदृढ़ किया जाना आवश्यक है। पीठ ने कहा कि यदि तकनीकी शिक्षा प्रणाली में कोई बदलाव या संशोधन किया जाना है, तो इसके लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद की स्वीकृति आवश्यक होगी।
अदालत ने साफ किया कि डिस्टेंस एजुकेशन से प्राप्त इंजीनियरिंग डिग्री या डिप्लोमा एआइसीटीई की मंजूरी के बिना मान्य नहीं होंगे। अदालत ने एआईसीटीई को यह जिम्मेदारी सौंपी कि वह सुनिश्चित करे कि केवल मान्यता प्राप्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने वाले संस्थान ही संचालित हों, जबकि छात्रों और आम जनता को गैर-अनुमोदित संस्थानों से सतर्क रहने की आवश्यकता है।
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