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    53 वर्ष पहले हरियाणा ने पीयू में क्यों हटाई थी हिस्सेदारी, पढ़ें तब क्या हुई थी तकरार

    By Sohan Lal Edited By: Sohan Lal
    Updated: Sun, 16 Nov 2025 08:45 PM (IST)

    53 वर्ष पहले हरियाणा ने पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) से अपनी हिस्सेदारी हटा ली थी। इसका मुख्य कारण यह था कि तब दोनों राज्यों के तत्कालीन मुख्यमंत्री टकराए गए थे। उनके बीच ऐसी तकरार हुई थी कि हरियाणा ने पीयू से हिस्सेदारी ही देने से मना कर दिया था। अब एक बार फिर पीयू में हरियाणा की हिस्सेदारी की उम्मीद जगी है।

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    पंजाब यूनिवर्सिटी में हरियाणा मांग रहा अपनी हिस्सेदारी।

    सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) में हरियाणा की हिस्सेदारी की 53 वर्ष बाद फिर से उम्मीद जगी है। यह हिस्सेदारी 1972 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह और हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल के बीच हुई तकरार से टूटी थी।

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    सोमवार को फरीदाबाद में होने वाली नोर्दर्न जोनल काउंसिल की बैठक में गृह मंत्री अमित शाह के सामने अपनी मांग रखेंगे। इस बार दावेदारी मजबूत दिख रही है। हालांकि 2023 में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल की मांग को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान नकार चुके हैं।

    दीक्षा समारोह में कुर्सी से शुरू हुई थी तकरार

    पंजाब-हरियाणा की जमीन पर चंडीगढ़ बनने के जानकार बताते हैं कि 1972 में पंजाब यूनिवर्सिटी में दीक्षा समारोह था। दीक्षा समारोह में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह की कुर्सी उपराष्ट्रपति के साथ लगाई गई जबकि हरियाणा के तत्कालीन चौधरी सीएम बंसी लाल को मंच पर स्थान नहीं दिया गया।

    बंसी लाल ने अंबाला में रुकवा दी थी पंजाब रोडवेज की बसें

    मंच पर जगह नहीं मिलने के बाद दूसरी बार तकरार शहर के प्रेस लाइट प्वाॅइंट पर काफिला गुजारने के लिए हुई। बंसी लाल ने काफिला पहले गुजारा और कहा कि चंडीगढ़ में उसकी हिस्सेदारी है। काफिला गुजारने के बाद दोनों मुख्यमंत्री की बहस हुई। बंसी लाल ने दिल्ली जाने वाली पंजाब रोडवेज की बसों को अंबाला में रोक दिया।

    ज्ञानी जैल सिंह ने दी थी डेराबस्सी में कदम न रखने की धमकी

    बसों को रुकते देखकर ज्ञानी जैल ने राजधानी चंडीगढ़ में आने के लिए डेराबस्सी में कदम न रखने की धमकी दी। इस बात पर बंसी लाल ने छह महीने में अंबाला से नारायणगढ़ से होते हुए पंचकूला के गांव नाडा साहिब आने तक का रास्ता तैयार किया और विधानसभा सत्र में शामिल हुए। दोनों मुख्यमंत्री की तकरार इतनी बढ़ गई कि बंसी लाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी में हिस्सेदारी देने से इन्कार कर दिया।