हरियाणा में BJP बनी नंबर-1 तो कांग्रेस '0' पर आउट, ऐसे समझें निकाय चुनाव में जीत और हार का खेल
हरियाणा निकाय चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा है। गुटबाजी संगठन की कमी और पार्टी नेताओं की निष्क्रियता को इस हार का प्रमुख कारण माना जा रहा है। भाजपा को केंद्र और राज्य में अपनी सरकारों के होने का फायदा मिला जबकि कांग्रेस को एक बार फिर से अपनी कमियों का खामियाजा भुगतना पड़ा। आइए जानते हैं दोनों पार्टियों की हार और जीत के मुख्य कारण
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के कांग्रेस नेताओं ने गुटबाजी की वजह से विधानसभा चुनाव में हुए नुकसान से शहरी निकाय चुनाव में कोई सबक नहीं लिया। कांग्रेस नेताओं ने इस चुनाव को बहुत ही हलके अंदाज में लिया और अधिकतर शहरी निकायों में उन्होंने अपने उम्मीदवारों को खुद के भरोसे छोड़ दिया।
रोहतक और सोनीपत नगर निगम को छोड़कर कांग्रेस नेता बाकी किसी शहरी निकाय में चुनाव लड़ने को लेकर गंभीर नजर नहीं आए। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, सांसद कुमारी सैलाज, रणदीप सिंह सुरजेवाला और कैप्टन अजय यादव को शहरी निकाय चुनाव में ना तो किसी मंच पर एकसाथ देखा गया और ना ही अलग-अलग यह नेता बहुत ज्यादा सक्रिय नजर आए।
भाजपा को इस चुनाव में केंद्र व राज्य में अपनी सरकारों के होने के साथ-साथ जनकल्याण के फैसलों का लाभ मिला है, लेकिन कांग्रेस को एक बार फिर से अपनी गुटबाजी, संगठन की कमी तथा पार्टी नेताओं की निष्क्रियता का खामियाजा भुगतना पड़ा है।
निकाय चुनाव में कांग्रेस संगठन में खली कमी
कांग्रेस के उम्मीदवार को विधानसभा चुनाव के बाद निकाय चुनाव में भी संगठन की कमी खली। प्रदेश में 11 साल से पार्टी का संगठन नहीं है। बिना संगठन ग्राउंड पर वर्कर एकजुट नहीं हो पाए।
हालांकि, कांग्रेस हाईकमान ने संगठन बनाने की बजाय निकाय चुनाव के लिए नियुक्तियों संबंधी चार सूचियां जरूर जारी की, लेकिन अधिकतर नेताओं में पार्टी के स्टार प्रचारक वाली सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए मारामारी मची रही।
हिसार और करनाल समेत कई जिलों में ऐसे शहरी निकाय ऐसे थे, जहां कांग्रेस को उम्मीदवार ही नहीं मिले। कांग्रेस ने निर्दलीयों को समर्थन देकर अपनी साख बचाई।
दीपक बाबरिया को पद से हटाना
फरीदाबाद में कांग्रेस की उम्मीदवार आखिरी वक्त में पार्टी छोड़ गई। प्रदेश में पांच फरवरी को निकाय चुनाव की घोषणा हुई थी। हाईकमान ने 14 फरवरी को प्रभारी दीपक बाबरिया को हटा दिया। ऐसे में पहले ही गुटबाजी में फंसी पार्टी और बिखर गई तथा नये प्रभारी बीके हरिप्रसाद राज्य के कांग्रेस उम्मीदवारों के लिए कोई करिश्मा नहीं कर पाए।
कांग्रेस को अभी तक विधानसभा में विपक्ष का नेता नहीं मिल पाया है। इससे कांग्रेस विधायकों खासकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा में काफी निराशा का माहौल है। इसलिए कांग्रेस विधायकों ने इस चुनाव में ज्यादा रुचि नहीं ली। सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा का चुनाव प्रचार रोहतक तक सीमित रहा, जबकि वे सोनीपत में पार्टी प्रत्याशी के बहुत अनुरोध पर गए।
पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा ने तो यहां तक कह दिया था कि वे हर चुनाव में प्रचार करने के लिए नहीं जाते हैं। वह सिर्फ बड़े चुनाव लोकसभा और विधानसभा पर ही फोकस करते हैं। नेताओं की प्रचार से दूरी से जनता में मैसेज गया कि कांग्रेस की खुद इस चुनाव में दिलचस्पी नहीं है, ऐसे में उन्हें जिताया तो आगे काम भी नहीं होंगे।
इन प्रमुख कारणों की वजह से निकाय चुनाव जीती भाजपा
- निगम चुनाव में भाजपा का ट्रिपल इंजन की सरकार का नारा चला।
- प्रदेश में साढ़े पांच माह से भाजपा की तीसरी बार सरकार बनी है। लोगों को समझ में आया कि केंद्र व राज्य में भाजपा की सरकार है तो शहरी निकायों में भी भाजपा उम्मीदवारों के चुनाव जीतने पर काम होंगे।
- भाजपा ने इस चुनाव को बहुत ही गंभीरता से लड़ा। बूथ लेवल तक मैनेजमेंट हुआ। भाजपा संगठन की टीम हर घर पर कम से कम चार बार पहुंची।
- भाजपा ने वार्ड लेवल पर छोटी-छोटी टीमें बनाईं जो लोगों से मिलकर वोट की अपील करती रही।
- प्रदेश स्तर पर उन लोगों को कमान दी गई, जिन्हें चुनाव लड़ने का लंबा अनुभव है।
- सीएम नायब सैनी और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नायब सैनी ने खुद चुनाव में मोर्चा संभाला।
- केंद्रीय मंत्रियों के साथ राज्य सरकार के मंत्रियों, सांसदों और विधायकों ने भी इस चुनाव को लोकसभा तथा विधानसभा की तरह गंभीरता से लड़ा।
- भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बगावत करने वालों को वापस नहीं लिया।
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