हरियाणा की भूमि अधिग्रहण नीति 2025 पर विवाद, किसान की याचिका पर कोर्ट ने मांगा सरकार से जवाब
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति 2025 पर जवाब मांगा है। जींद के किसान सुरेश कुमार ने याचिका दायर कर नीति को रद्द करने की मांग की है, जिसमें किसानों के हितों के खिलाफ होने और पारदर्शिता की कमी का आरोप लगाया गया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह नीति मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। कोर्ट ने सरकार को 17 नवंबर तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।
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याचिका में आरोप है कि पालिसी लागू करने से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन नहीं करवाया गया
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की 'विकास परियोजनाओं के लिए सरकारी विभागों को स्वेच्छा से दी गई भूमि की खरीद की नीति 2025' को चुनौती देने वाली याचिका पर सरकार को 17 नवम्बर तक जवाब दायर करने का आदेश दिया है।
यह नीति नौ जुलाई 2025 को अधिसूचित की गई थी। जींद जिले के अलेवा गांव निवासी किसान सुरेश कुमार ने एक याचिका दायर कर इस नीति को रद करने की मांग की है। प्रदेश सरकार ने विभिन्न परियोजनाओं के साथ-साथ 10 आइएमटी बनाने के लिए यह जमीन अधिगृहित करनी थी।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह नीति किसानों के हितों के खिलाफ है और इसमें पारदर्शिता की कमी है। याचिकाकर्ता सुरेश कुमार ने कहा कि हरियाणा सरकार द्वारा घोषित यह नई नीति 'द राइट टू फेयर कंपनसेशन एंड ट्रांसपेरेंसी इन लैंड एक्विजिशन, रिहेबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट 2013' के अनिवार्य प्रविधानों की अनदेखी करती है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि यह नीति संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
याचिका के अनुसार इस नीति के तहत सरकार हरियाणा में विकास कार्यों के लिए 35,500 एकड़ उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव रखती है। इस नीति के तहत सरकार ने भूमि मालिकों से सीधे खरीद के लिए ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए हैं।
याचिकाकर्ता ने इस बात पर जोर दिया कि नई नीति में भूमि के लिए अधिकतम मुआवजे की दर कलेक्टर रेट के तीन गुणा तक तय की गई है। यह लैंड एक्विजिशन, रिहेबिलिटेशन एंड रिसेटलमेंट एक्ट 2013 के प्रविधानों से काफी कम है। याचिका में 'एग्रीगेटर्स' या बिचौलियों की भूमिका को भी उजागर किया गया है। नीति के अनुसार, ये बिचौलिए 1% सुविधा शुल्क के हकदार होंगे।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और एक ही क्षेत्र में अलग-अलग भू-मालिकों को अलग-अलग मुआवजा मिल सकता है। यह नीति किसानों को भूखंडों के गैर-मौद्रिक आवंटन के साथ छोड़ देती है, जिससे उन्हें पुनर्वास या आजीविका सहायता के लिए कोई स्पष्ट तंत्र नहीं मिलता है।
सुरेश कुमार ने अपनी याचिका में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट से इस नीति को रद करने और सरकार को इसके तहत किसी भी तरह की कार्रवाई करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की है।
उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण से पर्यावरण और सामाजिक ताने-बाने पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर तब जब यह सबसे उपजाऊ भूमि पर किया जा रहा हो। याचिका में कहा गया कि इसको लागू करने से पहले सोशल इंपैक्ट असमेंट और इन्वायर्नमेंट असेसमेंट नहीं करवाया गया।

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