पिता की मौत के 30 साल बाद मिला नौकरी, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने परिवार को अनुकंपा लाभ जारी करने का भी दिया आदेश
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अनुकंपा सहायता की मांग को खारिज किया गया था। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी की बर्खास्तगी रद्द होने पर उसके परिवार को करुणामय सहायता से इनकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने विभाग को 2006 के नियमों के तहत वित्तीय सहायता देने का आदेश दिया और कहा कि अनुकंपा सहायता कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है।

30 साल बाद मृतक कर्मचारी के बेटे को मिला न्याय, हाईकोर्ट का अनुकंपा लाभ का आदेश।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अनुकंपा सहायता की मांग से जुड़े मामले में फैसला सुनाते हुए हरियाणा सरकार के उस आदेश को रद कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता चंद्रमोहन ने अनुकंपा लाभ मांगे थे। जस्टिस संदीप मौदगिल की एकल पीठ ने कहा कि जब वर्ष 2010 में कर्मचारी की बर्खास्तगी को इस अदालत ने निरस्त कर दिया था, तो उसे सेवा में निरंतर माना जाएगा और उसके परिवार को करुणामय सहायता देने से इनकार नहीं किया जा सकता। मामला हरियाणा फूड एंड सप्लाई विभाग के इंस्पेक्टर रहे स्व. राम किशन का है, जिन्हें 1989 में सेवा से हटाया गया था।
याचिकाकर्ता ने उनका पुत्र होने के नाते 22 फरवरी 1995 को मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया। विभाग ने 2012 में यह कहते हुए मांग खारिज कर दी कि 2006 के नियमों के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति बंद कर दी गई है। याचिकाकर्ता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि आवेदन 1996 में ही कर दिया गया था और देरी सरकारी विभाग ने की है। हाईकोर्ट ने सरकार की दलीलें खारिज करते हुए कहा कि 2006 के अनुकंपा नियम स्पष्ट रूप से लंबित मामलों पर लागू होते हैं और वित्तीय सहायता देने से विभाग पीछे नहीं हट सकता।
हाई कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा सहायता कोई अनुग्रह नहीं बल्कि कल्याणकारी राज्य की जिम्मेदारी है और तकनीकी आधार पर इसे टाला नहीं जा सकता। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी सहायता का उद्देश्य परिवार को संकट के समय सहारा देना है। इसलिए विभाग का आदेश न केवल अस्पष्ट और गैर-विचारित है बल्कि संवैधानिक सिद्धांतों के भी विपरीत है।
हाईकोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को 2006 के नियमों के तहत वित्तीय सहायता दी जाए और आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने से चार सप्ताह के भीतर यह प्रक्रिया पूरी की जाए। अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि सरकारी देरी और तकनीकी आधार पर मदद से इनकार राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना है।

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