डेरा सच्चा सौदा हिंसा केस में हाईकोर्ट करेगा हरियाणा सरकार की भूमिका की जाँच, साल 2017 में हुई थी 32 लोगों की मौत
2017 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह के दोषी ठहराए जाने के बाद हुई हिंसा पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा सरकार की भूमिका की जाँच करने का निर्णय लिया है। अदालत यह पता लगाएगी कि क्या सरकार हिंसा रोकने में विफल रही या उसकी कोई मिलीभगत थी। हिंसा में 32 लोगों की मौत हुई थी और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। 2017 में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत सिंह को दुष्कर्म मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद पंचकूला में हुई हिंसा पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट अब यह जांच करेगा कि क्या हरियाणा सरकार हिंसा रोकने में नाकाम रही थी या फिर समर्थकों की भीड़ जुटने में उसकी कोई मिलीभगत थी।
25 अगस्त 2017 को पंचकूला में फैली इस हिंसा में 32 लोगों की मौत हुई थी और 118 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति का नुकसान हुआ था। उस समय डेरा प्रमुख के समर्थक कथित तौर पर हथियारबंद होकर पहुंचे थे।चीफ जस्टिस शील नागू, जस्टिस विनोद एस भारद्वाज और जस्टिस विक्रम अग्रवाल की पूर्ण पीठ इस मामले से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
अमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम गुप्ता ने अदालत से आग्रह किया कि 2017 में अदालत द्वारा तय किए गए संवैधानिक प्रश्नों पर अब फैसला होना चाहिए। उन्होंने अदालत से हिंसा के मामलों में अभियुक्तों को बरी किए जाने और हरियाणा राज्य द्वारा डेरा सच्चा सौदा का समर्थन करने की घटनाओं पर गौर करने का अनुरोध किया।
उन्होंने कहा कि राज्य राजनीतिक कारणों से डेरा की मदद करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। इससे न्यायालय को मामले को निपटाने के बजाय सुनवाई जारी रखने पर मजबूर होना पड़ा। 2017 में राम रहीम को दोषी ठहराए जाने के बाद हुई आगजनी में 36 लोग मारे गए थे और लाखों रुपए की संपत्ति का नुकसान हुआ था
किन परिस्थितियों में कानून-व्यवस्था और जन-व्यवस्था से जुड़ा निवारक जनहित याचिका दायर करना संभव होगा? हिंसा से हुए नुकसान की भरपाई तय करने में अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दायरा क्या होगा? सार्वजनिक एवं निजी संपत्ति के नुकसान और सुरक्षा बलों की तैनाती पर हुए खर्च की भरपाई किससे वसूली जा सकती है? क्या 25-26 अगस्त 2017 को पंचकूला और अन्य जिलों में भीड़ जुटने से रोकने में हरियाणा सरकार विफल रही थी और क्या उसकी डेरा समर्थकों से कोई मिलीभगत थी?
चीफ जस्टिस ने कहा कि मुआवजा तय करने का अधिकार विशेष कानूनों के तहत गठित ट्रिब्यूनल का है। इस पर गुप्ता ने तर्क दिया कि विशेष कानून केवल मुआवजा राशि तय करने तक सीमित हैं, लेकिन संवैधानिक प्रश्नों पर अदालत को ही निर्णय लेना होगा।गुप्ता ने आरोप लगाया कि, राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से डेरा समर्थकों को सहयोग दे रही थी।
240 मामले दर्ज हुए, लेकिन 100 से अधिक में बरी हो चुके हैं।पंजाब सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता चंचल सिंगला ने कहा कि पंजाब ने हिंसा के दौरान 11 जिलों में सुरक्षा बलों की तैनाती और नियंत्रण पर 169 करोड़ रुपये खर्च किए, जिसमें 50 करोड़ रुपये सीआरपीएफ पर खर्च हुए। यह खर्च राज्य के विशेष कानूनों के दायरे में नहीं आता, इसलिए हाईकोर्ट को स्वतंत्र ट्रिब्यूनल गठित करना चाहिए।
अदालत ने पंजाब सरकार से यह भी पूछा कि क्या उसने सुरक्षा बलों की तैनाती पर हुए खर्च की भरपाई किसी अन्य संस्था से मांगी है, इस पर शपथ पत्र दायर किया जाए। 29 अगस्त 2017 को हाईकोर्ट ने हिंसा मामलों की निगरानी के लिए विशेष जांच टीमें गठित करने और बिना अनुमति किसी भी एफआईआर को रद्द न करने का आदेश दिया था।
अदालत ने तब यह भी सवाल उठाए थे कि पुलिस कब न्यूनतम बल और कब पूरी ताकत का इस्तेमाल करे तथा दंगा पीड़ितों को कितना मुआवजा दिया जाए। अप्रैल 2025 की पिछली सुनवाई में अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि इस मामले में अब और स्थगन स्वीकार नहीं होगा।
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