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    14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को हरियाणा सरकार देगी चार लाख का मुआवजा, हाईकोर्ट से गर्भपात की नहीं मिली अनुमति

    Updated: Tue, 23 Sep 2025 06:29 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी क्योंकि गर्भावस्था 29 सप्ताह की हो चुकी है और स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है। अदालत ने हरियाणा सरकार को 4 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। मेडिकल बोर्ड के अनुसार भ्रूण चिकित्सकीय रूप से सुरक्षित नहीं है।

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    14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को हाईकोर्ट से गर्भपात की अनुमति नहीं। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था 29 सप्ताह की हो चुकी है और पीड़िता की सेहत की स्थिति गर्भपात के लिए उपयुक्त नहीं है।

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    हालांकि, अदालत ने पीड़िता को राहत देते हुए हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि उसे तुरंत न्यूनतम चार लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा दिया जाए। साथ ही हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी कहा गया है कि वह बीएनएसएस की धारा 396 (4) या किसी अन्य उपयुक्त योजना के तहत पीड़ित को अतिरिक्त मुआवजा और सहायता देने पर विचार करे।

    अदालत ने साफ किया कि यह राहत आदेश प्राप्त होने के दो महीने के भीतर दी जानी चाहिए। मेडिकल बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि भ्रूण लगभग 29 सप्ताह छह दिन का है और पीड़िता की नाड़ी व रक्तचाप असामान्य हैं। इस स्थिति में गर्भपात चिकित्सकीय रूप से सुरक्षित नहीं है।

    कोर्ट ने कहा कि ऐसी निर्णायक मेडिकल रिपोर्ट के बाद संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत गर्भपात की अनुमति देना संभव नहीं है। पीड़िता को चंडीगढ़ के पीजीआइ में भर्ती कराया जाएगा और बच्चे के जन्म तक उसे सभी जरूरी चिकित्सकीय सुविधाएं व सहायता उपलब्ध कराई जाएंगी।

    कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बच्चे के जन्म के बाद उसका डीएनए नमूना संरक्षित किया जाए और जांच अधिकारी को सौंपा जाए ताकि आपराधिक मामले की जांच आगे बढ़ सके।

    यदि पीड़िता बच्चा गोद देने की इच्छुक है, तो हरियाणा सरकार व उसकी एजेंसियां बच्चे की जिम्मेदारी लेंगी और कानूनी प्रक्रिया के अनुसार पालन-पोषण देखभाल या गोद लेने की व्यवस्था करेंगी।

    कोर्ट ने पीड़िता और उसके माता-पिता की पहचान को पूरी तरह गोपनीय रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी न्यायिक, पुलिस या प्रशासनिक प्रक्रिया के दौरान उनकी पहचान उजागर नहीं की जाएगी।