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    हरियाणा चुनाव: हुड्डा को नजरअंदाज नहीं कर सकती कांग्रेस, सैलजा को मनाना फिर क्यों है मजबूरी? राहुल गांधी के साथ आज करेंगी प्रचार

    Updated: Thu, 26 Sep 2024 07:48 AM (IST)

    Haryana Election 2024 हरियाणा में कांग्रेस भूपेंद्र हुड्डा को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। क्योंकि हुड्डा ने लोकसभा में 5 सीट पर जीत दर्ज कर अपना दम दिखाया दिया है। कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी करना है तो उसे हुड्डा की बात माननी पड़ेगी। कुमारी सैलजा नाराज चल रही हैं राहुल गांधी ने भूपेंद्र हुड्डा से सलाह लेकर सैलजा को मनाने की कोशिश की है।

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    Haryana Election 2024: भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी सैलजा, फाइल फोटो।

    अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा में कांग्रेस भले ही अंतर्कलह से जूझ रही है, लेकिन पार्टी के बड़े चेहरे के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अनदेखी नहीं कर सकती। नौ लोकसभा सीटों में से पांच पर जीत दर्ज कराकर कांग्रेस हाईकमान को यह संदेश दे दिया कि राज्य में हुड्डा के बिना कांग्रेस के सत्ता में लौटने की संभावना नहीं है।

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    यही वजह है कि कांग्रेस ने कई दिनों तक नाराज चली सांसद कुमारी सैलजा को आरंभ में मनाने की कोशिश नहीं की, लेकिन चुनाव में दलित वर्ग का भरोसा जीतने की रणनीति से बंधी कांग्रेस के लिए सैलजा को मनाना मजबूरी हो गया था।

    भूपेंद्र सिंह हुड्डा से चर्चा के बाद ही राहुल गांधी ने सैलजा को मनाने में रुचि दिखाई है। हुड्डा इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि जब राज्य में कांग्रेस को बहुमत मिलेगा और विधायकों द्वारा अपना नेता चुने जाने की बात आएगी तो वहां नंबर गेम काम आयेगा।

    हुड्डा के बिना वैतरणी पार नहीं की जा सकती

    72 सीटों पर हुड्डा समर्थकों को टिकट मिले हैं, जबकि 10 पर सैलजा समर्थकों की संख्या सिमट गई है। दो टिकट रणदीप सुरजेवाला और चार से पांच टिकट कांग्रेस हाईकमान ने अपनी समझ से दिये हैं। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को करीब 44 प्रतिशत वोट मिले हैं।

    कांग्रेस हाईकमान के यह समझ में आ रहा है कि बिना हुड्डा के चेहरे के हरियाणा में चुनाव की वैतरणी पार नहीं की जा सकती। इसकी एक वजह यह है कि हुड्डा का जाटों के साथ-साथ दलितों, ब्राह्मणों, वैश्यों, पंजाबियों और ओबीसी के साथ रोड व राजपूतों में भी समान प्रभाव है।

    विघटन की आशंका के चलते पार्टी भले ही हुड्डा को चुनाव पूर्व सीएम का चेहरा घोषित करने का रिस्क नहीं ले रही, लेकिन कई राज्यों के उदाहरण उसके सामने हैं, जिसमें पार्टी से ज्यादा चेहरों को वोट मिले और यही चेहरे सत्ता में लाने में कामयाब रहे हैं।

    राहुल गांधी के साथ मंच साझा करेंगी सैलजा

    कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी वीरवार को करनाल के असंध और हिसार के बरवाला में चुनावी रैलियों को संबोधित करेंगे। चुनाव प्रचार से 12 दिनों तक दूर रहने वाली कांग्रेस महासचिव एवं सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा असंध में मंच साझा करेंगी। मंगलवार को उनका जन्मदिन था और बुधवार को उन्होंने चुनाव प्रचार के कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया।

    कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा सैलजा को उनके जन्मदिन के अवसर पर केक खिलाने की जो फोटो इंटरनेट मीडिया पर वायरल हुआ, उसमें सैलजा संतुष्ट नजर आ रही हैं। सैलजा ने 13 सितंबर को अंतिम बार सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लिया था। कुमारी सैलजा को बीती रात राहुल गांधी का फोन आया, जिसके बाद वह खरगे से मिली। कुमारी सैलजा असंध रैली में भाग लेंगी।

    शमशेर गोगी सैलजा समर्थक हैं। इसके बाद टोहाना और हिसार में जनसभाओं को संबोधित करेंगी। सैलजा की तरफ से जारी किए गए कार्यक्रम में बरवाला रैली में भाग लेने का उल्लेख नहीं किया गया है। बरवाला में हुड्डा समर्थकों द्वारा रैली का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें सैलजा के शामिल होने को लेकर अभी संशय बना हुआ है।

    महाराष्ट्र-बंगाल की गलती यहां नहीं दोहराएगी कांग्रेस

    कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि काडर बेस्ड पार्टियां भाजपा व माकपा तक को चेहरा सामने करने पर कामयाबी मिली है। भाजपा में वाजपेयी और मोदी तथा माकपा में ज्योति बसु और बुद्धदेब भट्टाचार्य इसके बड़े उदाहरण हैं। बसु और भट्टाचार्य के चेहरों पर कम्युनिस्ट पार्टियों ने 33 साल तक बंगाल पर राज किया।

    इन दोनों के जाने के बाद वहां एक भी विधायक कम्युनिस्ट पार्टी का नहीं है। हुड्डा एक ऐसा चेहरा हैं, जिसके पीछे बड़ा वोट बैंक है। उन्होंने पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल तक को चुनाव हराया है। पवार और ममता बनर्जी के बिना महाराष्ट्र व बंगाल में कांग्रेस कमजोर पड़ गई। कांग्रेस पुरानी गलतियों को नहीं दोहाएगी।

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