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    Haryana Election 2024: जात-पात की राजनीति अब चुनाव में जीत की गारंटी नहीं, जानिए क्या है हरियाणा का जातिगत समीकरण

    Updated: Thu, 29 Aug 2024 11:24 AM (IST)

    Haryana Assembly Election 2024 हरियाणा विधानसभा चुनाव का मैदान सज गया है। इस मैदान में मतदाताओं ने यह साफ कर दिया है कि जात-पात की राजनीति जीत की गारंटी नहीं देगी। इस बार राजनीतिक दल बहुत सोच समझकर कदम उठा रहे हैं। राज्य के क्षेत्रीय दल जननायक जनता पार्टी (जजपा) और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने भी यही रणनीति अपनाई है।

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    Haryana Election 2024: जात-पात की राजनीति से नहीं जीत सकते चुनाव।

    सुधीर तंवर, चंडीगढ़। जात-पात की राजनीति अब चुनाव में जीत की गारंटी नहीं हो सकती। यह संदेश तीन महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में हरियाणा के जागरूक मतदाताओं ने दिये थे। लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए ही उम्मीदवार उतारे थे, मगर जाट और गैर जाट का फैक्टर ज्यादा काम नहीं कर पाया और मतदाताओं ने अच्छी छवि वाले दूसरी जातियों के प्रत्याशियों को भी चुनकर लोकसभा भेजा।

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    प्रदेश के मतदाता जातिवाद की बेड़ियां तोड़ने में काफी हद तक सफल रहे। अब एकबार फिर विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के सामने जातिवादी राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को सबक सिखाने का बड़ा मौका मिला है। विधानसभा चुनाव के लिए टिकट बंटवारे को लेकर पहले आप-पहले आप की रणनीति पर चल रही कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे के प्रत्याशी घोषित होने का इंतजार कर रही हैं ताकि सोशल इंजीनियरिंग के सहारे जीत सुनिश्चित की जा सके।

    जातिगत कार्ड को नकारने की अच्छी पहल

    क्षेत्रीय दल जननायक जनता पार्टी (जजपा) और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने भी यही रणनीति अपनाई है। प्रदेश की राजनीति से जुड़े अधिकतर विशेषज्ञ भी मानते हैं कि संसदीय चुनावों में मतदाताओं ने राजनीतिक दलों द्वारा खेले जाने वाले जातिगत कार्ड को नकारने की अच्छी पहल की है, जिसे आगे भी जारी रखने की जरूरत है। वर्ष 2019 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों में जातिगत समीकरणों का पूरा असर रहा।

    भाजपा ने इसका पूरा लाभ उठाया

    मोदी लहर पर सवार भाजपा ने इसका पूरा लाभ उठाते हुए न केवल लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटें जीती थी, बल्कि विधानसभा चुनाव में भी सबसे ज्यादा सीटें हासिल करते हुए प्रदेश में सरकार बनाई थी। तीन महीने पूर्व हुए लोकसभा चुनाव में 10 में से छह सीटों पर कांग्रेस ने भाजपा प्रत्याशियों के सामने उसी जाति के प्रत्याशी उतारे थे।

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    बदले समीकरणों ने बिगाड़ा राजनीतिक दलों का गणित

    • जाट बाहुल्य सोनीपत संसदीय क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही प्रत्याशी ब्राह्मण समाज से थे। भाजपा के मोहन लाल बड़ौली को ब्राह्मणों के साथ ही वैश्य समाज के खूब वोट मिले, जबकि कांग्रेस के सतपाल ब्रह्मचारी की जीत में जाट और अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने अहम भूमिका निभाई।
    • भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर भाजपा ने जाट प्रत्याशी धर्मबीर सिंह और कांग्रेस ने अहीर प्रत्याशी राव दान सिंह को मैदान में उतारा। राव दान सिंह अपने ही हलके महेंद्रगढ़ के साथ ही अटेली, नारनौल और नांगल चौधरी में हार गए, जहां यादव वोट सबसे ज्यादा हैं। वहीं, भिवानी जिले की जाट बाहुल्य सीटों बाढ़ड़ा, लोहारू और चरखी दादरी में चौधरी धर्मबीर सिंह पिछड़ गए। यादव बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों के सहारे धर्मबीर लोकसभा पहुंचने में सफल रहे।
    • रोहतक से कांग्रेस सांसद बने दीपेंद्र हुड्डा को कोसली और झज्जर में अहीरों ने दिल खोलकर वोट दिए। ब्राह्मणों, सैनी समाज और अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने भी जाट चेहरे दीपेंद्र को खूब समर्थन दिया।
    • करनाल से एनसीपी के उम्मीदवार वीरेंद्र मराठा अपने रोड़ समाज के दम पर मैदान में उतरे थे, लेकिन समाज ने उन्हें नकार दिया। रोड़ समाज के पौने दो लाख मतदाता होने के बावजूद मराठा को सिर्फ 30 हजार वोट मिले।
    • कुरुक्षेत्र में सबसे अधिक साढ़े चार लाख जाट मतदाता होने के बावजूद इनेलो के अभय चौटाला तीसरे स्थान पर रहे, जबकि जाट बहुल विधानसभा क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी डा. सुशील गुप्ता और सांसद नवीन जिंदल को लीड मिली। इस चुनाव में नवीन जिंदल ने जीत हासिल की थी।
    • आरक्षित अंबाला और सिरसा में अनुसूचित जाति और सामान्य जाति के साथ सिख, जाट और एससी मतदाताओं की एकजुटता ने दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में डाल दी।
    • हिसार सीट पर तमाम बड़े प्रत्याशी जाट चेहरे थे, लेकिन यहां पर भी बिश्नोई समाज, पिछड़ा समाज और एससी समाज ने कांग्रेस को वोट देकर अपने हलकों में लीड दिलाई।

    मतदाता अब पहले से जागरूक हो गया है। केवल जातिवाद जीत का आधार नहीं रह गया। प्रत्याशियों के लिए अच्छी छवि जरूरी है। जातियां अब समूह के रूप में काम करती हैं, जिसने आधुनिक प्रक्रिया को अपना लिया है। सांस्कृतिक और धार्मिक चरित्र पर आर्थिक लाभ हावी हैं। प्रजातंत्र को मजबूत करने के लिए मतदाताओं को प्रत्याशी की जाति न देखकर उसकी योग्यता और छवि देखकर मतदान करना चाहिए।

    -प्रोफेसर राजेंद्र शर्मा, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक

    ये है हरियाणा में जातिगत समीकरण

    1. जाट 22.2 प्रतिशत
    2. अनुसूचित जाति 21 प्रतिशत
    3. पंजाबी 8 प्रतिशत
    4. ब्राह्मण 7.5 प्रतिशत
    5. अहीर 5.14 प्रतिशत
    6. वैश्य 5 प्रतिशत
    7. जाट सिख 4 प्रतिशत
    8. मेव और मुस्लिम 3.8 प्रतिशत
    9. राजपूत3.4 प्रतिशत
    10. गुर्जर3.35 प्रतिशत
    11. बिश्नोई 0.7 प्रतिशत
    12. अन्य 15.91 प्रतिशत

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