Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट HSVP पर सख्त, सस्ती आवास योजना खत्म करने पर लगाया एक लाख रुपये जुर्माना

    Updated: Thu, 18 Dec 2025 06:39 PM (IST)

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सस्ती आवास योजना के लिए तय लेआउट को उच्च मूल्य वाले प्लॉटों में बदलने पर हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण की आलोचना की है। अ ...और पढ़ें

    Hero Image

    सस्ती आवास योजना खत्म करने पर एचएसवीपी पर एक लाख रुपये जुर्माना। फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सस्ती आवास योजना के लिए तय लेआउट को उच्च मूल्य वाले प्लॉटों में बदलने पर हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (एचएसवीपी) की आलोचना की है। अदालत ने इसे 'संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए शोषण और भेदभाव' करार दिया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दो जुड़ी याचिकाएं स्वीकार करते हुए जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस दीपक मनचंदा की खंडपीठ ने प्लाट आवंटन रद करने को 'अनुचित, मनमाना और स्पष्ट रूप से मलाफाइड' बताया और प्रत्येक मामले में एक लाख रुपए जुर्माना भी लगाया। अदालत ने एचएसवीपी को निर्देश दिया कि तीन महीने के भीतर संशोधित योजना में नया प्लाट काटकर या किसी उपयुक्त विकल्प के जरिए उसी क्षेत्र में याचिकाकर्ताओं का आवंटन बहाल किया जाए।

    एक याचिका सीआरपीएफ के एक कमांडेंट की ओर से दाखिल की गई थी, जिन्होंने ई-नीलामी में हिस्सा लेकर सेक्टर-पांच पिंजौर में 162 वर्ग मीटर का प्लाट लिया था। पूरी राशि जमा करने के बाद दो दिसंबर 2023 को उन्हें कब्जा पत्र जारी हुआ और प्रतीकात्मक कब्जा भी दे दिया गया।

    लेकिन विकास न होने के कारण भौतिक कब्जा नहीं मिला। इसके बाद एचएसवीपी ने छोटे प्लाट हटाकर केवल 1000 वर्ग गज के प्लाट विकसित करने का फैसला लिया और 20 फरवरी 2024 को बिना किसी नोटिस या कारण बताए राशि लौटा दी।

    मामले में मुख्य सवाल यह था कि पूरी भुगतान प्रक्रिया और कब्जा पत्र जारी होने के बावजूद बिना नोटिस, कारण या स्पीकिंग आर्डर के आवंटन कैसे रद किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि एचएसवीपी एक सार्वजनिक प्राधिकरण है, जिसका उद्देश्य ‘नो प्राफिट-नो लास’ आधार पर सस्ती आवास सुविधा देना है। इसके विपरीत उसका आचरण लाभ-प्रेरित दिखता है, जो मध्यम और निम्न आय वर्ग के नागरिकों के हितों के खिलाफ है और उसके वैधानिक उद्देश्य से टकराता है।

    रिकार्ड और दलीलों का हवाला देते हुए खंडपीठ ने पाया कि मूल प्लॉटों का विज्ञापन करते समय पर्याप्त जांच नहीं की गई और बाद में रदीकरण के लिए कोई ठोस कारण भी नहीं दिया गया। अदालत ने इसे ‘वेडनसबरी सिद्धांत’ के तहत विवेकाधिकार का दुरुपयोग, मनमानी और अविवेकपूर्ण निर्णय बताया।

    जस्टिस मनचंदा ने कहा कि आठ मरला, 14 मरला और एक कनाल के प्लाट हटाकर केवल 1000 वर्ग गज के प्लाट रखने का कोई ठोस कारण सामने नहीं आया। इससे मनमानी और दुर्भावना की आशंका और गहरी होती है। याचिकाकर्ता की परिस्थितियों पर गौर करते हुए अदालत ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी ने जीवन भर की बचत घर बनाने के लिए लगाई थी, लेकिन बिना कारण बताए उसका आवंटन रद कर दिया गया।

    यह सस्ती आवास से वंचित करने जैसा है और संपत्ति मूल्यों में 2023 से 2025 के बीच हुई तेज वृद्धि के संदर्भ में यह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का भी उल्लंघन है। एचएसवीपी की नीतिगत धाराओं और पहाड़ी भू-भाग के तर्क को भी अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि वही जमीन बड़े प्लॉटों के लिए समतल कर विकसित की गई है, ऐसे में यह दलील 'अविवेकपूर्ण और असंगत' है।