तीन साल या उससे अधिक के अपराध में आरोप तय होने पर नहीं दी जाएगी नियुक्ति, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस में कॉन्स्टेबल पद के उम्मीदवार की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी उम्मीदवार पर ऐसे अपराध का आरोप है जिसमें तीन साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है, तो उसे नियमों के अनुसार नियुक्त नहीं किया जा सकता। उम्मीदवार पर लंबित आपराधिक मामले के कारण नियुक्ति रोकी गई थी, और अदालत ने पुलिस विभाग के फैसले को सही ठहराया।

तीन साल या अधिक सजा वाले अपराध में चार्ज फ्रेम होने पर नहीं दी जा सकती नियुक्ति।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस में कॉन्स्टेबल के पद पर चयनित एक उम्मीदवार की याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि जब किसी उम्मीदवार पर ऐसे अपराध में चार्ज फ्रेम हो चुके हों, जिसकी सजा तीन साल या उससे अधिक हो, तो नियमों के अनुसार उसे नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
हिसार निवासी याचिकाकर्ता विनोद कुमार एससी श्रेणी में कॉन्स्टेबल पद के लिए चयनित हुए थे। उन्होंने लिखित परीक्षा और शारीरिक परीक्षण दोनों उत्तीर्ण कर ली थी। एसपी कैथल ने उन्हें 19 अक्टूबर 2024 को औपचारिक प्रक्रिया के लिए बुलाया था, लेकिन दो एफआईआर दर्ज होने के कारण उनकी नियुक्ति रोक दी गई थी।
पहली एफआईआर में विनोद कुमार को ट्रायल कोर्ट ने 15 नवंबर 2022 को बरी कर दिया था और अपील भी बाद में वापस ले ली गई थी। दूसरी एफआईआर में उनके खिलाफ तीन मई 2017 को चार्ज फ्रेम हुए थे और वेरिफिकेशन के समय ट्रायल लंबित था। विनोद ने पहले एक याचिका दायर की थी, जिसमें कोर्ट ने 13 दिसंबर 2024 को राज्य को दो महीने में निर्णय लेने का निर्देश दिया था। इसी के अनुपालन में पुलिस विभाग ने 10 फरवरी 2025 को उनका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि नियमों के कारण नियुक्ति संभव नहीं।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि वेरिफिकेशन के समय तक वह दोनों मामलों में बरी हो चुके थे, इसलिए उसका मामला क्लाज (सी) में फिट बैठता है, जिसके तहत बरी उम्मीदवार को नियुक्ति मिल सकती है। उन्होंने हाई कोर्ट के एक फैसले का भी हवाला दिया। राज्य ने प्रतिवाद में कहा कि वेरिफिकेशन के दिन मुकदमा लंबित था, इसलिए मामला सीधे-सीधे क्लाज (बी) में आता है, जो नियुक्ति पर स्पष्ट रोक लगाता है।
कोर्ट ने गहन विश्लेषण के बाद पाया कि जिस समय एसपी कैथल ने वेरिफिकेशन किया, उस समय एक एफआईआर का ट्रायल चल रहा था। चार्ज पहले ही 2017 में फ्रेम हो चुके थे। इसलिए नियुक्ति पर रोक लगाना कानूनन उचित था। अंतत हाई कोर्ट ने कहा कि विनोद कुमार का मामला क्लाज (सी) में नहीं बल्कि क्लाज (बी) में आता है और पुलिस विभाग द्वारा की गई नियुक्ति की अस्वीकृति पूरी तरह उचित है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।

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