हरियाणा ADA भर्ती के सिलेबस में बदलाव को लेकर हाईकोर्ट हुआ सख्त, सरकार को नोटिस भेजकर मांगा जवाब
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा एडीए भर्ती के सिलेबस में बदलाव पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पहले सिलेबस कानूनी विषयों पर आधारित था जिसे बदलकर अब सामान्य ज्ञान आधारित कर दिया गया है। याचिका में इस बदलाव को वकीलों के साथ अन्यायपूर्ण बताया गया है क्योंकि वे कानूनी ज्ञान में बेहतर होते हैं जबकि सामान्य ज्ञान में कमजोर हो सकते हैं।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट अटार्नी (एडीए) की भर्ती प्रक्रिया में हाल ही में किए गए बदलाव पर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस उस याचिका पर जारी हुआ है, जिसमें परीक्षा के सिलेबस को अचानक बदलने को चुनौती दी गई है।
पहले एडीए की स्क्रीनिंग परीक्षा का पाठ्यक्रम मुख्य रूप से कानूनी विषयों पर आधारित था, लेकिन अब इसे पूरी तरह सामान्य ज्ञान आधारित कर दिया गया है।
ये विषय किए गए शामिल
नए सिलेबस में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्व की समसामयिक घटनाएं, भारत का इतिहास, भारतीय एवं विश्व भूगोल, भारतीय संस्कृति, भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था, सामान्य मानसिक क्षमता, तर्कशक्ति, अंकगणित, डाटा इंटरप्रिटेशन तथा हरियाणा सामान्य ज्ञान एवं इतिहास जैसे विषय शामिल किए गए हैं।
कानून से जुड़े विषयों को पूरी तरह हटा दिया गया है। जस्टिस संदीप मौदगिल ने इस मामले में हरियाणा सरकार, हरियाणा लोक सेवा आयोग और अन्य अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता, जो कि एक विधि स्नातक हैं, उसने दलील दी है कि परीक्षा का पैटर्न बिना किसी तार्किक आधार के बदला गया है। भर्ती नियमों और संविधान के अनुच्छेद 320 के तहत हरियाणा सरकार और एचपीएससी के बीच उचित परामर्श के बिना यह बदलाव किया गया।
'नया सिलेबस प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं के लिए अन्याय'
याचिका में यह भी कहा गया कि नया सिलेबस प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ताओं के साथ अन्याय करता है, क्योंकि वे कानून के विषय में बेहतर ज्ञान रखते हैं, लेकिन सामान्य ज्ञान और अंकगणितीय क्षमता की परीक्षा में उन्हें कठिनाई हो सकती है। इस प्रकार यह बदलाव उन्हें प्रतियोगिता से बाहर कर सकता है।
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि स्क्रीनिंग का उद्देश्य योग्य उम्मीदवारों को छांटना है, लेकिन यह तभी संभव है जब मानदंड तार्किक और न्यायसंगत हों। वर्तमान पैटर्न न तो तार्किक है और न ही भर्ती प्रक्रिया के उद्देश्य के अनुरूप है।
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