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    'मस्जिद से हटाया तिरंगा, लगाया भगवा झंडा.... अब हाई कोर्ट ने आरोपी को जमानत देने से किया इनकार

    Updated: Sat, 02 Aug 2025 03:20 PM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने गुरुग्राम में एक मस्जिद से राष्ट्रीय ध्वज हटाकर भगवा झंडा लगाने के आरोपी विकास तोमर को गिरफ्तारी से राहत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह मामला सार्वजनिक व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित करता है इसलिए अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

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    मस्जिद से हटाया तिरंगा, लगाया भगवा झंडा: हाई कोर्ट ने आरोपित को अग्रिम जमानत देने से किया इनकार

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने गुरुग्राम के उटोन गांव की एक मस्जिद से राष्ट्रीय ध्वज हटाकर उसकी जगह भगवा झंडा लगाने के आरोपित विकास तोमर को गिरफ्तारी से राहत देने से इनकार कर दिया है।

    जस्टिस मनीषा बत्रा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल व्यक्तिगत आचरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा प्रभाव सार्वजनिक व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द पर पड़ता है।

    कोर्ट ने दो टूक शब्दों में कहा कि वर्तमान स्थिति में कोई ऐसी असाधारण परिस्थिति सामने नहीं आई है जो आरोपित को अग्रिम जमानत दिए जाने को न्यायोचित ठहराए।

    'राष्ट्रीय ध्वज हटाकर लगाया भगवा झंडा'

    7 जुलाई को पुलिस को शिकायत प्राप्त हुई कि एक मस्जिद से राष्ट्रीय ध्वज हटाकर भगवा झंडा लगा दिया गया है। शिकायतकर्ता ने पुलिस को इस संबंध में ऑडियो और वीडियो साक्ष्य भी सौंपे। आरोपित विकास तोमर ने 15 जुलाई को अग्रिम जमानत के लिए सत्र न्यायालय का रुख किया था, जहां अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने जमानत देने से इनकार कर दिया था।

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    तोमर की ओर से पेश हुए वकील ने हाई कोर्ट के समक्ष दलील दी कि याची का इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है और न ही उनका नाम एफआईआर में दर्ज है।

    लेकिन शिकायतकर्ता और राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने इस तर्क का विरोध करते हुए कहा कि आरोपित और अन्य व्यक्तियों की बातचीत से यह स्पष्ट होता है कि उनका उद्देश्य क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव फैलाना था।

    अग्रिम जमानत को लेकर कोर्ट ने क्या कहा?

    दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कोई ऐसा तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है जो अग्रिम जमानत की मांग को उचित ठहरा सके।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि मौजूदा परिस्थितियों में आरोपित से हिरासत में पूछताछ आवश्यक है ताकि मामले की निष्पक्ष और गहन जांच संभव हो सके। कोर्ट ने अग्रिम जमानत की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसे संवेदनशील मामलों में अभियुक्त को जांच से दूर रखना समाज और न्याय के हित में नहीं है।