गुरुग्राम कोर्ट का आदेश रद: हाई कोर्ट ने कहा ट्रायल जज की प्रक्रिया कानून के अनुरूप नहीं
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने गुरुग्राम की एक स्थानीय अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें डीएसपी के खिलाफ चालान पेश करने के निर्देश थे। हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया कानून में कहीं वर्णित नहीं है। अदालत ने हाई कोर्ट नियमावली के नियमों का पालन करने का निर्देश दिया।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने गुरुग्राम की एक स्थानीय अदालत के उस आदेश को रद कर दिया है, जिसमें फरवरी 2022 में एक डीएसपी रैंक के अधिकारी के खिलाफ चालान पेश करने के निर्देश दिए गए थे।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया कानून में कहीं वर्णित नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट नियमावली (अध्याय 1, भाग एच, नियम 6) के अनुसार, यदि किसी पुलिस अधिकारी या अन्य सरकारी अधिकारी के आचरण की आलोचना करनी हो या उसके खिलाफ कार्रवाई करनी हो, तो निर्धारित प्रक्रिया का पालन जरूरी है।
इस नियम के तहत, संबंधित अदालत को अपना निर्णय जिला मजिस्ट्रेट को भेजना होता है, जो इसे गृह सचिव के 15 अप्रैल 1936 के परिपत्र के संदर्भ में हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को अग्रसारित करता है। जस्टिस जसजीत सिंह बेदी ने यह आदेश हरियाणा पुलिस के डीएसपी वीर सिंह की याचिका पर सुनवाई के बाद पारित किए। डीएसपी ने फरवरी 23, 2022 को तत्कालीन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, गुरुग्राम द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी थी।
उस आदेश में चार अन्य पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराते हुए गृह सचिव और डीजीपी (सीआईडी और विजिलेंस) को याचिकाकर्ता के खिलाफ चालान दाखिल करने और दो महीने में कार्यवाही पूरी करने के निर्देश दिए गए थे। डीएसपी के वकील ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट यदि आवश्यक समझती, तो धारा 193 या 319 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आरोप तय कर सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
इसके बजाय, अदालत ने मुकदमे के अंत में सह -आरोपितों को सजा सुनाते हुए चालान दाखिल करने का आदेश दे दिया, जो कानूनी रूप से गलत है।दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि 23 फरवरी 2022 के फैसले के पैराग्राफ 28 में दिए गए निर्देशों और उनसे जुड़ी सभी कार्यवाहियों को रद किया जाता है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया कानून में वर्णित नहीं है, इसलिए ऐसे आदेश टिक नहीं सकते।
मामला वर्ष 2009 के एक आपराधिक प्रकरण से जुड़ा है, जिसमें गुरुग्राम के सिविल लाइंस थाने में धारा 420, 465, 468 और 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। बाद में शिकायतकर्ता हंस राज राठी ने पुलिस अधिकारियों पर झूठे केस में फंसाने और मारपीट के आरोप लगाए। इस शिकायत के आधार पर वर्ष 2010 में एक और एफआईआर दर्ज हुई, जिसमें कई पुलिसकर्मी आरोपित बनाए गए।
जांच के दौरान डीएसपी वीर सिंह को निर्दोष पाया गया, परंतु 2022 में गुरुग्राम की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने मामले में चार पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराते हुए डीएसपी वीर सिंह और अन्य पर भी चालान दाखिल करने के निर्देश दे दिए।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।