हरियाणा और पंजाब के बीच बार-बार बदला पानी का बंटवारा
हरियाणा और पंजाब के बीच जल बंटवारा बार-बार बदलता रहा है। कभी राज्य के हिस्से में अधिक पानी आया तो कभी दूसरे के हिस्से में। लेकिन यह सब बस कागजों मे ...और पढ़ें

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा और पंजाब के बीच जल बंटवारा बार-बार बदलता रहा है। कभी पंजाब के हिस्से में अधिक पानी आया तो कभी हरियाणा को अधिक पानी मिला। लेकिन यह सब बस कागजों में चलता रहा, लेकिन यह कभी हकीकत में नहीं बदला। दोनों राज्यों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर बार-बार समझौते बदलते रहे, लेकिन अभी तक हरियाणा को उसके हिस्से का पानी नहीं मिल पाया है।
रावी-ब्यास के जिस पानी के बंटवारे को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है, उसमें 1921 से 1960 के जल प्रवाह के आधार पर 17.17 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी की उपलब्धता थी। 31 दिसंबर 1981 को पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के बीच हुए समझौते के आधार पर पंजाब को 4.22 एमएएफ, हरियाणा को 3.50 एमएएफ, राजस्थान को सबसे अधिक 8.60 एमएएफ, जम्मू-कश्मीर को 0.65 एमएएफ और दिल्ली को 0.20 एमएएफ पानी का आवंटन किया गया।
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इससे पहले स्वतंत्र विशेषज्ञों की उच्च स्तरीय समिति ने फरवरी 1971 में हरियाणा को 3.79 एमएएफ पानी आवंटित किया था। योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष डीपी धरे के नेतृत्व वाली कमेटी ने 24 मार्च 1973 को हरियाणा को 3.74 एमएएफ, पंजाब को 3.26 एमएएफ और दिल्ली को 0.20 एमएएफ पानी आवंटित करने की सिफारिश की। हरियाणा ने अपने राज्य में अधिक सिंचित क्षेत्र होने के आधार पर 6.90 एमएएफ पानी हासिल करने का दावा पेश किया था, मगर उसका दावा माना नहीं गया।
केंद्र ने कई बार की सहमति बनाने की कोशिश
हरियाणा के अधिक पानी के दावे के बाद 24 मार्च 1976 को केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों को 3.5-3.5 एमएएफ पानी आवंटित कर दिया। तभी इस पानी के आवंटन के लिए एसवाइएल नहर के निर्माण का प्रस्ताव आया। पंजाब सरकार ने केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती देते हुए 11 जुलाई 1979 को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी। हरियाणा ने भी केंद्र के फैसले को लागू कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दी थी। तब यह विवाद फिर बढ़ गया।
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पंजाब को दिए गए थे एसवाइएल बनाने को दो साल
हरियाणा और पंजाब के बीच इस विवाद के चलते ही 31 दिसंबर 1981 को पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के सीएम के बीच समझौता हुआ था, जिसमें यह भी कहा गया था कि पंजाब दो साल के भीतर 31 दिसंबर 1983 तक एसवाईएल नहर का निर्माण कार्य पूरा कर लेगा। इस समझौते के बाद पंजाब के हिस्से में 0.73 एमएएफ पानी अधिक आ गया और उसने सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मुकदमे वापस ले लिए। तब हरियाणा के हिस्से के पानी में कोई बदलाव नहीं हुआ।
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रावी-ब्यास जल ट्रिब्यूनल ने महसूस की थी हरियाणा की जरूरत
5 नवंबर 1983 को पंजाब विधानसभा में 1981 के समझौते को अस्वीकार कर दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री और संत लौंगोवाल के बीच 24 जुलाई 1985 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। इसके तहत 2 अप्रैल 1986 को रावी ब्यास जल ट्रिब्यूनल का गठन किया गया।
इस ट्रिब्यूनल ने रिपोर्ट दी कि रावी-ब्यास नदी में 18.28 एमएएफ पानी की उपलब्धता है, जिसके आधार पर पंजाब को 5 एमएएफ, हरियाणा को 3.83 एमएएफ, राजस्थान 8.60 एमएएफ, जम्मू-कश्मीर 0.65 एमएएफ और दिल्ली को 0.20 एमएएफ पानी का आवंटन हुआ है। ट्रिब्यूनल ने माना था कि हरियाणा को अधिक पानी की जरूरत है।
इराडी ट्रिब्यूनल भी मान चुका हरियाणा को चाहिए अधिक पानी
विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। 30 जनवरी 1987 को इराडी ट्रिब्यूनल का गठन हुआ। इसने 18.28 एमएएफ पानी की उपलब्धता के आधार पर पंजाब को 5 एमएएफ और हरियाणा को 3.83 एमएएफ पानी आवंटित कर दिया। मगर हरियाणा साढ़े तीन एमएएफ पानी के बंटवारे वाले समझौते को ही लागू कराने की मांग कर रहा है।

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