'अनुशासन सर्वोपरि, बार-बार ड्यूटी से अनुपस्थित होना अस्वीकार्य'; हाईकोर्ट ने खारिज की कॉन्स्टेबल की याचिका
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस के एक कांस्टेबल की बर्खास्तगी के खिलाफ याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि वर्दीधारी बल में अनुशासन सबसे ऊपर है और बार-बार ड्यूटी से अनुपस्थित रहना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। याचिकाकर्ता पवन कुमार ने बर्खास्तगी को चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने विभागीय जांच में लंबी अनुपस्थिति को देखते हुए याचिका खारिज कर दी।

हाईकोर्ट ने खारिज की कॉन्स्टेबल की याचिका। सांकेतिक फोटो
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने हरियाणा पुलिस के एक कांस्टेबल की सेवा से बर्खास्तगी के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि वर्दीधारी बल में अनुशासन सर्वोपरि है और बार-बार ड्यूटी से अनुपस्थित रहना किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
जस्टिस जगमोहन बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश रोहतक निवासी पवन कुमार की याचिका को खारिज करते हुए दिया। पवन कुमार ने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती देते हुए यह दलील दी थी कि उन्हें गलत ढंग से अनुपस्थित दिखाया गया है जबकि वह वास्तविक रूप से ड्यूटी पर थे।
याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया था कि उनके खिलाफ वर्ष 2011, 2013 और 2014 में पारित दंड आदेशों को निरस्त किया जाए जिनके तहत पहले दो बार उनकी वेतनवृद्धि रोकी गई थी और तीसरी बार उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
अदालत के समक्ष रिकार्ड में यह पाया गया कि पवन कुमार ने वर्ष 2004 में हरियाणा पुलिस में कांस्टेबल के रूप में ज्वाइन किया था। परंतु उनके खिलाफ तीन विभागीय जांच चलीं जिनमें बार-बार लंबी अनुपस्थिति का आरोप साबित हुआ। पहले वह 153 दिन और बाद में 403 दिन तक बिना अनुमति ड्यूटी से गायब रहे। दो बार उन्हें इन्क्रीमेंट रोकने की सजा दी गई और तीसरी बार सेवा से बर्खास्त किया गया।याचिकाकर्ता का कहना था कि मैनुअल रोजनामचा में उन्हें अनुपस्थित बताया गया है जबकि कंप्यूटराइज्ड रोजनामचा में वह उपस्थित दर्शाए गए हैं।
इस पर कोर्ट ने कहा कि केवल दो तिथियों (20 अप्रैल 2010 और 13 मई 2010) के अंतर के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि 403 दिन की अनुपस्थिति झूठी है। कोर्ट ने यह भी पाया कि न तो किसी अधिकारी से व्यक्तिगत शत्रुता का कोई प्रमाण है और न ही विभागीय प्रक्रिया में कोई त्रुटि हुई।
सरकार की तरफ से कहा गया कि पुलिस एक अनुशासित बल है और इतनी लंबी अवधि तक अनुपस्थित रहने वाला कर्मचारी विभाग में नहीं रह सकता। जस्टिस बंसल ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि अदालतें अनुशासनात्मक मामलों में सजा की मात्रा में हस्तक्षेप नहीं करतीं जब तक प्रक्रिया में गंभीर त्रुटि न हो। उन्होंने कहा कि पुलिस या सशस्त्र बल में रहने वाले व्यक्ति के लिए ड्यूटी से अनुपस्थिति सबसे गंभीर दुराचार है।
कोर्ट ने कहा कि वर्दीधारी व्यक्ति द्वारा ड्यूटी से अनुपस्थिति सबसे घोर अनुशासनहीनता है।इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए अदालत ने पाया कि विभाग ने उचित प्रक्रिया का पालन किया, साक्ष्यों का समुचित मूल्यांकन किया गया और याचिकाकर्ता एक आदतन अनुपस्थित रहने वाले कर्मचारी था।
इस प्रकार हाई कोर्ट ने पवन कुमार की याचिका को पूर्णत निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और कहा कि अदालत ऐसे मामलों में न तो विभागीय निष्कर्षों में हस्तक्षेप करेगी और न ही सजा को कम करेगी। कोर्ट ने कहा कि अनुशासन वर्दीधारी बल की पहचान है, और जो इसे बार-बार तोड़ेगा, वह सेवा में बने रहने का अधिकारी नहीं।

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