हरियाणा: उम्रकैद में बदली फांसी की सजा, 20 साल तक रहना होगा जेल में; धड़ से अलग कर दिया था भाई का सिर
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने भाई की हत्या के दोषी अशोक कुमार की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला। अदालत ने कहा कि हर क्रूर हत्या 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' ...और पढ़ें

हरियाणा: उम्रकैद में बदली फांसी की सजा। सांकेतिक फोटो
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। यह स्पष्ट करते हुए कि हर क्रूर हत्या का मामला “रेयरेस्ट Eफ द रेयर” नहीं होता, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने ही भाई की हत्या कर उसका सिर धड़ से अलग करने के मामले में दोषी करार दिए गए अशोक कुमार की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। हालांकि अदालत ने सख्त शर्त लगाई कि दोषी को कम से कम 20 साल की वास्तविक कैद पूरी किए बिना किसी भी हालत में रिहा नहीं किया जाएगा।
जस्टिस अनूप चितकारा और जस्टिस एचएस ग्रेवाल की खंडपीठ ने हत्या और सबूत मिटाने के अपराध में दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए कहा कि यह मामला मृत्युदंड देने की श्रेणी में नहीं आता। अदालत ने कहा, “हत्या का कारण पारिवारिक संपत्ति विवाद था। यह व्यक्तिगत बदले का मामला है, सामाजिक प्रतिशोध का नहीं। साथ ही ऐसा कोई ठोस आधार नहीं है जिससे यह माना जाए कि दोषी समाज के लिए भविष्य में खतरा बनेगा।”
हालांकि अदालत ने अशोक की संलिप्तता पर कोई संदेह नहीं छोड़ा। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों का मूल्यांकन करते हुए पीठ ने कहा कि यह संदेह से परे साबित है कि अशोक ने अपने भाई दीपक की हत्या की और इसके बाद उसका सिर अलग कर ले गया, जबकि धड़ मौके पर छोड़ दिया।
इस मामले में जून 2020 में टोहाना सिटी थाने में हत्या सहित अन्य धाराओं के तहत एफआइआर दर्ज की गई थी। जनवरी 2025 में ट्रायल कोर्ट ने अशोक को फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद यह मामला सबसे तेजी से निपटाए गए डेथ रेफरेंस मामलों में शामिल हो गया, जहां असाधारण तेजी से सुनवाई और फैसला हुआ।
अदालत ने हत्या के पीछे लंबे समय से चले आ रहे पारिवारिक विवाद को कारण माना गया। पीठ ने यह दलील खारिज कर दी कि समय बीतने से नाराजगी खत्म हो जाती है। अदालत ने टिप्पणी की, “ऐसा कोई सामान्य नियम नहीं है कि सात साल बाद हर व्यक्ति अपने सारे गिले-शिकवे भूल जाए।” कोर्ट ने कहा कि मां द्वारा संपत्ति मृतक भाई के नाम किए जाने के बाद से ही अशोक गहरी नाराजगी पाले हुए था।
“लास्ट सीन” सिद्धांत पर भी अदालत ने भरोसा जताया। रिकार्ड के अनुसार, हत्या से एक रात पहले अशोक को दीपक के साथ आखिरी बार देखा गया था। सबूतों से यह भी सामने आया कि अशोक उसके घर गया था और वहीं शराब पी, जिसके बाद दीपक की लाश सिर कटी हालत में मिली।
खंडपीठ ने आइपीसी की धारा 302 और 201 के तहत सजा को बरकरार रखा, लेकिन धारा 457 (घर में घुसपैठ) और 506 (आपराधिक धमकी) के आरोपों से अशोक को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि इन धाराओं के समर्थन में कोई ठोस सबूत नहीं है। धारा 201 के तहत सजा को घटाया गया, लेकिन जुर्माना बढ़ा दिया गया।
सजा पर विचार करते हुए अदालत ने अमिक्स क्यूरी द्वारा रखे गए शमनकारी तथ्यों पर भी ध्यान दिया, जिनमें दोषी की उम्र (60 वर्ष से अधिक), स्वास्थ्य स्थिति और जेल में किसी भी तरह के हिंसक आचरण का अभाव शामिल था।
अंततः हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में परिवर्तित करते हुए स्पष्ट किया कि अशोक को 20 वर्ष की वास्तविक कैद पूरी करनी होगी। धारा 302 के तहत जुर्माना बढ़ाकर पांच लाख रुपये और धारा 201 के तहत दो लाख रुपये किया गया, जिसे मृतक के बच्चों या परिवार को मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया गया।
इस तरह मौत की सजा की पुष्टि के लिए दायर रेफरेंस को खारिज कर दिया गया, जबकि अशोक की अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए उसकी सजा में कमी की गई—यानी फांसी से तो बच गया, लेकिन लंबी कैद से नहीं।

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