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जोगिया सब जानता है: फिर बनी मनोहर व बराला की केमिस्‍ट्री, पढ़ें हरियाणा की सियासत की रोचक खबरें

हरियाणा की राजनीति में पर्दे के पीछे भी काफी कुछ चलता रहता है। राजनीतिक दलों में भी नेताओं के बीच समीकरण बनते-बिगड़ते रहते हैं। सीएम मनोहरलाल और सुभाष बराला के बीच पुरानी केमिस्‍ट्री सामने आई है। जोगिया सब जानता है स्‍तंभ के तहत पढ़ें हरियाणा की सियासत की रोचक खबरें।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 10 Nov 2020 02:27 PM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 02:27 PM (IST)
डा् अनिल जैन के साथ हरियाणा के सीएम मनोहरलाल और सुभाष बराला। (फाइल फोटो)

चंडीगढ़, [बिजेंद्र बंसल]। छह साल पहले टोहाना से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते सुभाष बराला मुख्यमंत्री मनोहर लाल के लिए एक साधारण कार्यकर्ता की तरह थे। हालांकि विधायक बनने के बाद प्रदेशाध्यक्ष बने सुभाष बराला और मनोहर लाल की केमिस्ट्री इतनी जबरदस्त रही कि दोनों का एक दूसरे के पूरक बन गए। अब दोनों का एक-दूसरे के बिना दिल भी नहीं लगता। बराला अब प्रदेशाध्यक्ष नहीं हैं और 2019 के विधानसभा चुनाव में भी वे 52 हजार मतों से हार गए। ऐसे में दोनों एक साथ कैसे रहें,इसके लिए मंथन होने लगा।

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मुख्यमंत्री ने सुभाष बराला को हरियाणा सार्वजनिक उपक्रम ब्यूरो का चेयरमैन बनाकर न सिर्फ अपने नजदीक बुला लिया बल्कि उनके दामन पर लगा हार का दाग भी धोने का सार्थक प्रयास किया है। खैर, मुख्यमंत्री मनोहर लाल के बारे में यह कहा जाने लगा है कि उन्हें जो पसंद आ जाता है, उसे वे राजनीति के जीवंत परिदृश्य में रखते हैं।

बढ़िया हाल, चोखा बित्या पहला साल

सूबे की मनोहर लाल सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल भी पूरा कर लिया है। सरकार की तरफ से इस एक साल की उपलब्धियों का खूब बखान किया जा रहा है। हरियाणवी में नया श्‍लोगन भी दिया गया है कि "चोखा बित्या पहला साल, हरियाणे का बढ़िया हाल'। वैसे कोरोना संक्रमण से बचाव को लागू रहे लंबे लाकडाउन से बिगड़ी अर्थव्यवस्था में सुधार भी हुआ है। इससे सरकार के चिंतक और रणनीतिकार काफी खुश हैं।

हालांकि इनकी यह चिंता बरकरार है कि उपलब्धियां तब ही सरकार के अनुकूल कही जा सकती हैं जब आम जनमानस को भी इनका फायदा हो रहा हो। इसलिए यह अनुकूलता अगले चार साल तक बरकरार रहने पर भी सरकार को फायदा होगा अन्यथा अनुकूलता प्रतिकूलता में बदल जाती है। यूं तो प्रशासनिक उपलब्धियों के इतर देखें तो मनोहर सरकार के लिए बरोदा उपचुनाव की पहली राजनीतिक कसौटी पर खरा उतरना ही जरूरी था।

खूब चल रहा है पदोन्नति का खेल

सूबे में यूं तो 11 बड़े शहरों में मूलभूत सुविधाएं देने के लिए नगर निगम हैं मगर चर्चा गुरुग्राम और फरीदाबाद की ही होती है। इनकी ही चर्चा क्यों होती है इस बारे में जोगिया सहित आम लोग भी सब जानते हैं। इनमें मलाईदार पदों पर काम करने वाले पहले तो जहां जगह मिल जाती थी वहीं बैठकर मलाई खा लिया करते थे। अब इनके ट्रेंड में बदलाव आया है। जेई को भी लगता है कि वह अब साफ सुथरे कपड़े पहनकर अपने अलग कार्यालय में बैठकर मलाई खाने का आनंद ले। इसलिए वह भी अपनी पदोन्नति के लिए आर्थिक व्यवस्था का खेल करता है। इस खेल के सभी खिलाड़ियों से मैच फिक्सिंग करता है। फिर एसडीओ के स्तर का काम आए या नहीं मगर उसकी कुर्सी पर बैठकर मलाई खाना शुरू कर देता है। ईमानदार शासकों को यह पता है, बावजूद इसके पदोन्नति का खेल खूब चल रहा है।

फिजूलखर्ची रोकने वाला पांचवां धाम अग्रोहा

अग्रोहाधाम के शासक महाराजा अग्रसेन के समाजवाद के सिद्धांत के तहत उनके राज्य में आने वाले प्रत्येक नए परिवार को पहले से रह रहा परिवार एक रुपया और एक ईंट देकर अपने बराबर बना लेता था। मौजूदा परिवेश में भी समाज के सभी मध्यमवर्गीय परिवारों और खासतौर पर वैश्य बिरादरी की सबसे बड़ी समस्या शादियों में होने वाली फिजूलखर्ची बनी हुई। देश भर के वैश्यों को अब इस समस्या का समाधान अपने उद्गम स्थल अग्रोहा में मिलेगा। अग्रोहा को फिजूलखर्ची रोकने वाले पांचवें धाम के रूप में विकसित किया जा रहा है।

यहां शादी करने वाले किसी भी जरूरतमंद जोड़े को समाज की तरफ से डेढ़ लाख रुपये का घरेलू जरूरत का सामान मिलेगा। अग्रोहाधाम के कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग बताते हैं कि इसके लिए एक वेबसाइट बना दी गई है। इस पर पंजीकरण करने के बाद जरूरतमंद वैश्य युवक- युवती के विवाहोत्सव की तारीख तय कर दी जाएगी।

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