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    90% भारतीय समझते हैं राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का सही भाव, दैनिक जागरण के सर्वे में हुए ये चौंकाने वाले खुलासे

    Updated: Sun, 14 Dec 2025 02:48 PM (IST)

    दैनिक जागरण द्वारा किए गए एक देशव्यापी सर्वे में पाया गया कि लगभग 90% प्रतिभागी राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान की मूल पहचान को सही पहचानते हैं। 87% लोगों को ...और पढ़ें

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    एक संयुक्त ऑनलाइन-ऑफलाइन सर्वे में पाया गया कि 90% भारतीय राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान से जुड़े ज्ञान रखते हैं (फोटो: जागरण)

    जागरण टीम, हरियाणा। 'वंदे मातरम्' और 'जन गण मन' ये दोनों गीत हमारे केवल राष्ट्रीय प्रतीक नहीं, बल्कि सामूहिक चेतना के शाश्वत स्वर हैं।

    इनमें पीढ़ियां अपनी पहचान और उत्तरदायित्व का बोध पाती आई हैं। 'शस्य-श्यामलम्, मातरम्' की मातृ-वंदना से लेकर 'जन-गण-मन अधिनायक जय हे' की सर्वभौम पुकार तक, इन पंक्तियों का स्थान भारतीय स्मृति में किसी सीखे हुए कथन का नहीं, बल्कि जीवन में प्रतिष्ठित संस्कार का है।

    इसी अंतर्निहित सांस्कृतिक शक्ति को परखने के लिए दैनिक जागरण ने देशव्यापी परिषद में एक व्यापक सर्वे किया। सर्वे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों माध्यम में किया गया और दैनिकजागरण की टीम हरियाणा के साथ दैनिक जागरण डिजिटल टीम ने इसमें सहयोग किया।


    90% प्रतिभागियों ने पहचाना मूल

    इस सर्वे के संयुक्त डेटा के अनुसार लगभग 90% प्रतिभागियों ने राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान की मूल पहचान किसी भी प्रकार के भ्रम के बिना सही पहचानी। लगभग 87% लोगों ने राष्ट्रगान की निर्धारित समय-अवधि की बिना किसीसंकेत के बताया, जबकि 82% उत्तरदाताओं ने इन प्रतीकों के सांस्कृतिक स्वरूप को स्पष्ट रूप से समझा।

    इतना ही नहीं, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि संबंधी जानकारियां 75% प्रतिभागियों में और मौलिक सांस्कृतिक अर्थों की पहचान 80% से अधिक प्रतिभागियों में सहज स्मृति की तरह मौजूद मिली।

    इन आंकड़ों की यह संगति बताती हैकि भारत में राष्ट्रीय गीत देश-भावना के औपचारिक प्रतीक भर नहीं, बल्कि जनता की आत्मिक स्मृति और संस्कार के अंग हैं, एक ऐसा भाव जो पीढ़ियों को जोड़ता है और वर्तमान को निरंतर अर्थ देता है। इस सर्वे के विस्तृत परिणाम, विश्लेषण और अंतर्निहित सांस्कृतिक संकेत पेज नंबर 2 पर विस्तार से पढ़ें।
     
    राष्ट्र गीतों के प्रति समाज का समझ कैसी है-यह प्रश्न केवल जानकारी की परख नहीं, बल्कि सांस्कृतिक स्मृति की निरंतरता को समझने का आधार भी है।

    देश विशेषज्ञों ने किए गए संयुक्त ऑनलाइन-ऑफलाइन सर्वे ने बताया कि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान से जुड़ा ज्ञान आज भी भारत के सामाजिक चेतना में स्थिर रूप से उपस्थित है।


    अध्ययन में सामने आई ये बातें

    अध्ययन से दो स्पष्ट संकेत उभरकर आए-पहला, राष्ट्रीय गीतों की मूल पहचान लगभग अक्षरशः बनी हुई है, दूसरा, इन भावों के साथ सामाजिक आचरण व व्यवहार में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं।

    नई पीढ़ी से लेकर वरिष्ठ पीढ़ियों तक, सभी समूहों में मिली सटीकता यह दर्शाती है कि राष्ट्रीय गीतों का महत्व भारत में सांस्कृतिक शिक्षण नहीं, बल्कि सामाजिक अनुश्रुति का हिस्सा है।

    जन-समझ का आधारसर्वे ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय गीतों की पहचान किसी औपचारिक पाठ्य-क्रमों का परिणाम नहीं, बल्कि सामूहिक सामाजिक स्मृति का हिस्सा है।

    लगभग 90% प्रतिभागियों द्वारा दिए गए सही उत्तर इस बात का प्रमाण है कि राष्ट्रगीत-राष्ट्रगान को लेकर समाज में भ्रम बहुत कम है। 

    इसी तरह अन्य संकेतों में भी विशेषज्ञों ने 85-90% तक की सटीकता पाई है कि नई पीढ़ी इस सांस्कृतिक समझ में पीछे नहीं है।

    यह समझ समाज में मजबूत है। इससे यह संकेत मिलता है कि राष्ट्रीय गीतों से जुड़े ज्ञान स्कूलों में नहीं, बल्कि जीवन-प्रवाह में संरक्षित है। 90% सटीकता बताती है। 90% सटीकता बताती है कि राष्ट्रीय गीतों को लेकर समाज में भ्रम बहुत कम है।

    87% प्रतिभागियों की जानकारी अभी भी बनी हुई है कि राष्ट्रगान का प्रोटोकॉल व्यवहार में फर्क डालता है।82% सांस्कृतिक समझ संकेत देती है कि अर्थ-अभी सामाजिक अनुश्रुति का हिस्सा है।

    75% सटीकता बताती है कि राष्ट्रीय गीतों की रचना का ज्ञान भी व्यापक रूप से प्रचलित है। सांस्कृतिक अर्थ और व्यवहार की निरंतरता सर्वे में 80% से अधिक प्रतिभागियों ने राष्ट्रीय गीतों के भावात्मक अर्थ और सामाजिक मूल्यों को समझा।

    यह उस सांस्कृतिक धरोहर की पुष्टि है जो घर-विद्यालय-समाजों की परंपरा से आगे बढ़ती है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की पहचान में 75% प्रतिभागियों सटीक रही, जबकि ऑनलाइन प्रतिभागियों में समझ-अभी और उपस्थिति संबंधी जानकारी अधिक स्पष्ट दिखी।

    यह संयुक्त पैटर्न दर्शाता है कि समाज में राष्ट्रीय गीत मूल्य और व्यवहार-दोनों स्तरों पर जीवित है।


    पूछे गए थे ये पांच सवाल

     
    ● वंदे मातरम क्या है ?
     
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    ● राष्ट्रगान किसने लिखा था ?

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    ● किसे संवैधानिक दर्जा प्राप्त है?

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    ● किसे 52 सेकंड की समयावधि में गाना तय है?

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    ● संसद के मौजूदा सत्र में किस पर बहस छिड़ी है?

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    लोगों की राष्ट्रगीत-राष्ट्रगान की मूल पहचान साफ-साफ ज्ञात है। इस संदर्भ में लोगों को रचनाकार व उक्ति के संदर्भ ज्ञात डिजिटल-ऑफलाइन पैटर्न ऑनलाइन प्रतिभागियों में भावगत पहचान अधिक रही।
     
    सामाजिक अभ्यास और परंपरा राष्ट्रगान-राष्ट्रगीत की स्मृति-बोध में स्पष्टता 10-25% लोगों के बीच लक्ष्य स्तरों का अनुपात रहना दर्शाता है कि भ्रम सीमित और निर्धारित स्तर पर है।

    25% तक त्रुटि वाले प्रश्न में यह संकेत देते हैं कि जानकारी का स्रोत अधिक भावात्मक है70% से ऊपर सभी संकेतों को रक्षा करता है कि राष्ट्रीय गीतों पर जनजान एक सशक्त-बोध जाना है।


    प्रस्तुति-अवधि और नियम

     
    ● राष्ट्रगान की 52 सेकंड समय-अवधि 87% प्रतिभागियों को पता
    ● विशेषज्ञों में भी नियमों की समझ स्पष्ट
    ● ऑनलाइन प्रतिभागी प्रोटोकॉल पर अधिक आकृष्ट पैडिंग तुलना बता रही युवाओं में खूब जागरूकता
    ● युवा पीढ़ी भावात्मक अर्थ में मजबूत, राष्ट्रीय मानस का सांकेतिक चित्र70-90% लोग संकेत की स्पष्ट दायरे में
    ● राष्ट्रीय गीत एक एकीकृत सांस्कृतिक धरोहर की तरह व्यवहारित किसी भी क्षेत्र में समझ में नीचे नहीं
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