डेराप्रमुख की सेवा में रहती थीं 200 साध्वियां, बाबा को चुनने में हुई बड़ी चूक
यौन शोषण मामले में दोषी करार दिये जाने पर डेरा प्रमुख को लेकर सनसनीखेज खुलासे हुए हैं। साधक मानते हैं कि तीसरे गद्दीनशीं यानी राम रहीम को चुनने में शाह सतनाम जी से चूक हुई।
जेएनएन, चंडीगढ़। अनुयायियों के आगे खुद को भगवान मानने वाले राम रहीम के सलाखों के पीछे जाते ही डेरा सच्चा सौदा के अंदर का सच बाहर आने लगा है। आडंबरों और विलासिता की जिंदगी के बीच डेरा प्रमुख की सेवा में 200 से अधिक साध्वियां लगी रहती थीं। इन साध्वियों के लिए मर्दों से बात करना तो दूर, इनके आठ-दस फीट के दायरे में आने तक पर भी प्रतिबंध था।
कहने को तो ये साध्वियां देवी जैसी हैं, लेकिन हकीकत कुछ और है। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और हाई कोर्ट को लिखे पत्र में यौन शोषण का मामला उठाने वाली साध्वी ने साध्वियों की स्थिति वेश्याओं जैसी बताई थी। अधिकतर साध्वियों की उम्र 35 से 40 से अधिक है जिनकी शादी की उम्र भी निकल चुकी। यही वजह है कि इन्होंने परिस्थितियों से समझौता कर लिया है।
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ज्यादातर साध्वियां बीए, एमए, बीएड सहित अन्य उच्च शिक्षा प्राप्त हैं, लेकिन परिवार वालों के अंधविश्वासी होने के कारण इनके पास नारकीय जीवन से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। इनके लिए सफेद कपड़े पहनने, सिर पर चुन्नी रखने के नियम के साथ ही किसी आदमी की तरफ आंख उठाकर देखने की पाबंदी है।
हालांकि ज्यादातर डेरा अनुयायी अब भी राम रहीम के खिलाफ मुंह खोलने को तैयार नहीं, लेकिन कुछ ने नाम न बताने की शर्त पर डेरे की सच्चाई उगलनी शुरू कर दी है। नाम उजागर न करने का निवेदन वे इसलिए करते हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि डेराप्रमुख के गुंडे उन्हें और उनके परिजनों की जान ले सकते हैंं।
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शुरू से रसिया किस्म का था राम रहीम
डेरे के साधक रहे कई लोग बताते हैं कि तीसरे गद्दीनशीं यानी राम रहीम को चुनने में शाह सतनाम जी से चूक हो गई। राम रहीम शुरू से ही न सिर्फ रसिया किस्म का लड़का था, बल्कि स्कूल के दिनों से ही लड़कियों को छेड़ना और आसपास के लोगों को परेशान करना उसकी आदतों में शुमार था।
छेड़खानी की वजह से ही कक्षा 9 में गुरमीत को स्कूल से भी निकाल दिया गया। दसवीं में इन्हीं हरकतों से वह फेल हो गया और कंपार्टमेंट आई। गद्दी संभालने के बाद राम रहीम अध्यात्म की जगह दुनिया की ग्लैमर की चकाचौंध, महंगी गाड़ियों, कपड़ों और ऐशो आराम की चीजों में ऐसा रंगा कि डेरे का स्वरूप ही बदलता चला गया।
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